पटना : लोकसभा चुनाव को लेकर छोटे दल भी अपने तरीके से चंदा इकट्ठा करने में लगे हैं. चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव में बड़े राज्यों के लिए पिछले 15 सालों में जो चुनावी खर्च हैं, उम्मीदवार के लिए उसे चार गुना बढ़ा दिया है. बड़े राज्यों में यह 95 लाख तक पहुंच चुका है. वहीं छोटे राज्यों में 75 लाख रुपए तय किया गया है. छोटी पार्टियों के लिए चुनावी खर्च एक बड़ी चुनौती है. इसके कारण बड़े दलों से उनके उम्मीदवार प्रचार में पीछे रह जाते हैं.
लगातार बढ़ रहा है खर्चा का ग्राफ : चुनाव आयोग की तरफ से पिछले 15 सालों में चुनावी खर्च को 4 गुना बढ़ा दिया गया है. 2009 में सीमा 25 लाख रुपए थी जिसे 2011 में चुनाव आयोग ने बढ़ाकर 40 लाख रुपए कर दिया, 2014 में बढ़ाकर 70 लाख, 2020 में 77 लाख वहीं 2022 में इसे बढ़ाकर 95 लाख रुपए कर दिया है.
'जिसके पास पावर, उसके पास पैसा' : विधानसभा चुनाव में भी लगातार खर्च की राशि बढ़ रही है. इलेक्शन वॉच और एडीआर के राजीव कुमार का कहना है कि जो दल सत्ता में रहते हैं उन्हें चंदा अधिक मिलता है. बिहार में जदयू पिछले कई सालों से सत्ता में है और इसलिए चंदा उगाही के मामले में जदयू बिहार में नंबर एक पार्टी है.
BJP खर्चा करने में सबसे आगे : इलेक्शन वॉच और ए डी आर की रिपोर्ट के अनुसार बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में सभी दलों ने कुल 150 करोड़ खर्च किया था. इसमें भाजपा 103.70 करोड़, समाजवादी पार्टी 15.65 करोड़, जदयू 13.63 करोड़, कांग्रेस ने 9.8 करोड़ की राशि चुनाव प्रचार में खर्च की थी. 2020 विधानसभा चुनाव में इलेक्शन वॉच और ADR की रिपोर्ट के अनुसार 9 राजनीतिक दलों ने कुल 503 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा था. इन सभी राजनीतिक दलों ने अपने प्रत्याशियों की जीत के लिए 81.86 करोड रुपए खर्च किए थे, जबकि चंदा 185.14 करोड़ की उगाही की थी.
2020 में विधानसभा चुनाव के दौरान प्रमुख दलों को मिले चंदा:-
A. जदयू को 55.61 करोड़
B. बसपा को 44.58 करोड़
C. कांग्रेस को 44.53 करोड़
D. भाजपा को 35.48 करोड़ चंदा
छोटी पार्टियों के लिए चुनाव लड़ना आसान नहीं : राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी, एआइएमआइएम और वामपंथी दल को कितना चंदा मिला उसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. लेकिन इन छोटे दलों के लिए चुनाव लड़ना आसान नहीं है.
क्या कहता है पिछले लेकसभा का आंकड़ा? : 2019 में बिहार में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने पहले तो 40 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. हालांकि काराकाट, कटिहार शिवहर, हाजीपुर, नालंदा और गया में ही उम्मीदवार को उतारा. जबकि जन अधिकार पार्टी की ओर से भी कई सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही गई थी लेकिन सिमटकर मधेपुरा से ही पप्पू यादव चुनाव लड़े थे. हम की ओर से जीतन राम गया से चुनाव लड़े थे. बहुजन समाज पार्टी जरूर 40 सीटों पर चुनाव लड़ी थी.
''चुनाव आयोग ने उम्मीदवारों के खर्च की जो सीमा तय की है, उतना भी हम लोग अपने उम्मीदवार पर खर्च नहीं कर पाते हैं जबकि सत्ताधारी दल और बड़ी पार्टियां करोड़ों खर्च करती हैं. चुनाव आयोग की सीमा से अधिक खर्च उनका होता है. हम लोग हेलीकॉप्टर जैसे साधन का इस्तेमाल तक नहीं कर पाते हैं.''- रामबाबू गुप्ता, सीपीआई नेता
AIMIM ने जनता के बल का किया जिक्र: एआइएमआइएमके प्रदेश अध्यक्ष और विधायक अख्तरुल इमान का कहना है कि, ''जिस प्रकार से चुनाव में बड़े दल पैसा खर्च करते हैं हम लोग कहीं टिक नहीं पाते हैं. यही कारण है कि अधिक सीटों पर चुनाव नहीं लड़ पाते हैं. हम लोग चुनाव जनता के बल पर ही लड़ते हैं धन के बल पर नहीं.''
BJP-RJD के अपने राग : आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद का का भी यही आरोप है कि बीजेपी से मुकाबला करना क्षेत्रीय दलों के लिए आसान नहीं है. वहीं बीजेपी के प्रवक्ता अरविंद सिंह कह रहे हैं कि चुनाव आयोग ने सब कुछ तय कर रखा है, हम लोग उसका पालन करते हैं.
बिहार में JDU को मिलता है सबसे ज्यादा चंदा : जदयू को 2004-05 से 2014-15 के बीच चंदा और अन्य माध्यमों से जो आय हुई उसमें भी साफ दिख रहा है कि सबसे बड़ी पार्टी जदयू रही है. जदयू 54 करोड़, राजद 23 करोड़, लोजपा 7 करोड़ मिला था. 2021 में 66 करोड़ और 2022 में 70 करोड़ जदयू को चंदा से मिला था. इस तरह चंदा इकट्ठा करने के मामले में जदयू बिहार की नंबर एक पार्टी बनी हुई है.
करोड़पति उम्मीदवारों की भरमार : इलेक्शन वॉच और ए डी आर की रिपोर्ट के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार में जीते 40 सांसदों में से 38 सांसद करोड़पति हैं लोकसभा चुनाव में जितने उम्मीदवार लड़े थे उसमें से 202 उम्मीदवार करोड़पति थे.
प्रचार में पिछड़ जाते हैं छोटे दल :-
1. अधिकांश छोटे दल हेलीकॉप्टर का प्रयोग नहीं कर पाते हैं.
2. अधिक संख्या में जनसभा भी छोटे दल नहीं करते हैं.
3. बड़े पैमाने पर समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक चैनल में प्रचार नहीं कर पाते हैं.
4. स्टार प्रचारकों के मामले में भी पिछड़ जाते हैं छोटे दल.
उड़न खटोले की राह ताकते छोटे दल : कुल मिलाकर, लोकसभा चुनाव में जिस प्रकार से हेलीकॉप्टर और अन्य माध्यमों से चुनाव प्रचार हो रहे हैं. आधुनिक टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया जा रहा है. चुनाव प्रचार लगातार खर्चीला होता जा रहा है. जिन दलों को चंदा कम मिलता है उनके लिए चुनाव लड़ना एक बड़ी चुनौती है.
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