रांची: झारखंड के लिहाज से 18वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम को कई मायनों में याद किया जाएगा. एक तो तमाम कोशिशों के बावजूद आदिवासी बहुल इलाकों में भाजपा कमल खिलाने में असफल रही. दूसरा ये कि इस चुनाव में झामुमो और मजबूत होकर उभरा. तीसरा यह कि कई नये प्रत्याशियों को जनता का आशीर्वाद मिला. निराश करने वाला एक पहलू यह भी रहा कि संसद में महिला प्रतिनिधित्व नहीं बढ़ पाया.
एनडीए को झारखंड में लगा झटका
2019 के चुनाव में झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से 12 पर एनडीए की जीत हुई थी. इसमें एक सीट सहयोगी आजसू की भी है. इस बार भी आजसू ने गिरिडीह सीट निकालने में सफलता हासिल की. आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी ने झामुमो प्रत्याशी मथुरा महतो को हरा दिया. हालांकि गिरिडीह में युवा नेता के रुप में उभरे जयराम महतो ने भी अच्छी खासी वोट बटोरी. इसका सीधा नुकसान मथुरा महतो को हुआ. लेकिन भाजपा अपनी सभी तीन एसटी रिजर्व सीटें मसलन, खूंटी, दुमका और लोहरदगा को गंवा बैठी.
संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व रहा जस का तस
इस बार के चुनाव में उम्मीद लगायी जा रही थी कि झारखंड से संसद में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. 2019 के चुनाव की तरह ही सिर्फ दो महिलाएं चुनाव जीत पाई. सीटें भी वही रहीं. सिर्फ एक सीट पर चेहरा बदल गया. 2019 में कोडरमा से भाजपा की टिकट पर अन्नपूर्णा देवी की जीत हुई थी. उन्होंने इस बार भी उसे बरकरार रखा. अन्नपूर्णा ने इंडिया गठबंधन के भाकपा माले प्रत्याशी विनोद कुमार सिंह को शिकस्त दी. दूसरी लड़ाई सिंहभूम में थी. भाजपा की गीता कोड़ा का सामना झामुमो की जोबा मांझी से था. लेकिन 2019 के चुनाव में कांग्रेस की एकमात्र सांसद रहीं गीता कोड़ा को भाजपा की टिकट पर सफलता नहीं मिली. उनकी जगह अब झामुमो की जोबा मांझी संसद में झारखंड के मसले उठाएंगी. उम्मीद जतायी जा रही थी कि सीता सोरेन के जीतने पर संसद में झारखंड से महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा, जो नहीं हो पाया.
पांच नये प्रत्याशियों को आशीर्वाद, कई ने दोहराई जीत
इस बार के चुनाव में झारखंड से तीन नये चेहरे संसद में झारखंड का प्रतिनिधित्व करेंगे. ये तीनों चेहरे भाजपा से जुड़े हैं. धनबाद से ढुल्लू महतो, हजारीबाग से मनीष जायसवाल और चतरा से कालीचरण सिंह को भाजपा ने टिकट दिया था. धनबाद में पीएन सिंह, चतरा में सुनील सिंह और हजारीबाग में जयंत सिन्हा जैसे कई बार के विजयी सांसदों का टिकट कटा था.
झारखंड में भाजपा के इस फैसले की खूब चर्चा भी होती रही. लेकिन पार्टी का यह फैसला सकारात्मक साबित हुआ. हजारीबाग में पुराने भाजपाई यशवंत सिन्हा के चुनावी गणित के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी जेपी पटेल मात खा गये. धनबाद में भाजपा विधायक राज सिन्हा से टकराव और भीतरघात की संभावना के बावजूद बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो ने कांग्रेस की अनुपमा सिंह को हरा दिया. यही स्थिति चतरा में दिखी. भाजपा प्रत्याशी कालीचरण सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी के.एन.त्रिपाठी को हराकर संसद जाने का रास्ता खोल लिया.
इंडिया गठबंधन के लिहाज से देखें तो पहली बार खूंटी से कांग्रेस के कालीचरण मुंडा और लोहरदगा से सुखदेव भगत ने जीत हासिल की. कई संघर्ष के बाद दोनों को जीत मिली. झामुमो की जोबा मांझी और नलिन सोरेन भी पहली बार लोकसभा का चुनाव जीतने में सफल रहे. वहीं भाजपा के निशिकांत दूबे ने गोड्डा सीट से चौथी बार जीत हासिल की. जबकि भाजपा के वीडी राम ने पलामू सीट से तीसरी बार और भाजपा के विद्युत वरण महतो ने जमशेदपुर सीट से हैट्रिक लगाया. कोडरमा से भाजपा प्रत्याशी अन्नपूर्णा देवी, गिरिडीह सीट से आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी रांची से भाजपा प्रत्याशी संजय सेठ, राजमहल से झामुमो प्रत्याशी विजय हांसदा भी लगातार तीसरी बार जीतने में सफल रहे.
कांग्रेस से ज्यादा मजबूत बनकर उभरा झामुमो
इस चुनाव में एनडीए को तीन सीटें गंवानी पड़ी. वहीं इंडिया गठबंधन के तहत झामुमो के खाते में राजमहल, दुमका और सिंहभूम सीट आ गई. वहीं कांग्रेस ने खूंटी और लोहरदगा सीट पर जीत हासिल की. 2019 के चुनाव में झामुमो को सिर्फ राजमहल और कांग्रेस को सिर्फ सिंहभूम सीट पर सफलता मिली थी. लेकिन इस बार के चुनाव में इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग के तहत कांग्रेस ने सात, झामुमो ने पांच, राजद ने एक और भाकपा-माले ने एक सीट पर चुनाव लड़ा था. इस लिहाज से झामुमो का परफॉर्मेंस सबसे बेहतर रहा. सिर्फ पांच सीटों पर चुनाव लड़कर झामुमो ने तीन सीटों पर जीत हासिल की. वहीं कांग्रेस ने सात सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ दो पर जीत मिली. जबकि भाजपा ने 13 सीटों पर चुनाव लड़ा और तीन सीटें गंवाकर आठ सीटों को बचाने में सफल रही. इस मामले में आजसू ने दोबारा गिरिडीह सीट पर जीत दर्ज की.
खास बात है कि इस चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा अपने बूते बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई. मोदी की गारंटी में कहीं न कहीं कुछ कमी रह गई. वहीं विपक्ष का महंगाई, बेरोजगारी, अग्निवीर का मुद्दा असर दिखा गया. अब देखना है कि नई सरकार की रुपरेखा किस तरह का स्वरूप लेकर सामने आती है.
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