बिलासपुर: बिलासपुर लोकसभा सीट भाजपा का अभेद्य किला बन गया है. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से लेकर अब तक भाजपा के उम्मीदवार ने इस सीट पर जीत दर्ज की है. खास बात यह है कि मुंगेली जिला के उम्मीदवार ही भाजपा की जीत का कारण बनते हैं. बिलासपुर लोकसभा सीट में साल 1998 से लेकर साल 2019 के चुनाव तक मुंगेली जिला के प्रतिनिधि भाजपा के उम्मीदवार रहे हैं. हर बार भारी मतों से बीजेपी जीत हासिल करती रही है. यही कारण है कि बीजेपी के इस अभेद्य किले को भेदने के लिए कांग्रेस ने कई बार प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो पाई.
कांग्रेस ने दिग्गज नेता देवेन्द्र यादव को दिया टिकट: इस बार कांग्रेस ने पार्टी के दिग्गज युवा नेता और भिलाई विधायक देवेंद्र यादव को चुनावी मैदान में उतारा है. वहीं, बीजेपी ने तोखन साहू पर भरोसा जताया है. दोनों ही दल के उम्मीदवार बिलासपुर से नहीं हैं. ऐसे में इस बार के चुनाव में बीजेपी अपने गढ़ को वापस बचा पाती है या फिर कांग्रेस के दिग्गज नेता बीजेपी के अभेद्य किले को भेदेंगे, ये तो चुनावी परिणाम ही बताएगा. आइए एक नजर डालते हैं बिलासपुर लोकसभा सीट के चुनावी इतिहास पर.
पिछले 7 चुनावों से जीत हासिल करती आ रही बीजेपी: बिलासपुर लोकसभा भाजपा का अभेद किला बन गया है. हालांकि एक समय में यह सीट कांग्रेस की झोली में रही है. भाजपा इसे हथियाने का प्रयास साल 1977 से शुरू कर दी थी. अब यह सीट पूरी तरह भाजपा के पाले में आ गई है. यहां से लगातार 7 बार बीजेपी लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करती आ रही है. इस अभेद किला को भेदने के लिए कांग्रेस ने देवेंद्र यादव को बिलासपुर लोकसभा सीट से टिकट दिया है. हालांकि दोनों ही दलों के नेता बिलासपुर से खुद को वोट नहीं कर पाएंगे, क्योंकि दोनों ही बिलासपुर के नहीं हैं. वैसे तो बिलासपुर लोकसभा शुरुआत में सामान्य सीट रही, लेकिन इसके बाद यह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दी गई थी. साल 2009 में बिलासपुर लोकसभा सीट सामान्य सीट हो गई. साल 2009 से 2014 तक दिलीप सिंह जूदेव सामान्य वर्ग के सांसद रहे, लेकिन इसके बाद भाजपा ने साल 2014 से साल 2024 तक पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों को अपना प्रत्याशी बनाया है.
पॉलिटिकल एक्सपर्ट की राय: ईटीवी भारत ने पॉलिटिकल एक्सपर्ट अखिल वर्मा से बातचीत की. उन्होंने बताया कि, "बिलासपुर लोकसभा के अस्तित्व में आने के बाद लगातार कांग्रेस के प्रत्याशी जीत दर्ज करते रहें हैं, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के समय हुए चुनाव और उपचुनाव से लेकर साल 2019 तक यहां भाजपा ने जीत दर्ज की है. ऐसे में यह कहना थोड़ा मुश्किल होगा कि बिलासपुर लोकसभा सीट किसका गढ़ है, लेकिन यह बात भी है कि राज्य के गठन से लेकर अब तक भाजपा ने यहां जीत दर्ज की है. साल 2009 में पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव ने कांग्रेस के रेणु जोगी को चुनाव में हराया था. इसके बाद फिर साल 2014 और साल 2019 में भाजपा ने सामान्य सीट होने के बावजूद भी पिछड़े वर्ग के उम्मीदवार को अपना प्रत्याशी बनाया. इस बार साल 2024 में भी भाजपा ने पिछड़े वर्ग के उम्मीदवार तोखन साहू को अपना प्रत्याशी बनाया है. ऐसे में यह तो नहीं कहा जा सकता कि जीत किसकी होगी? लेकिन कांग्रेस ने रणनीति के तहत भिलाई के विधायक देवेंद्र यादव, जो कि पिछड़ा वर्ग से हैं और पहले वह भिलाई में चुनाव भी जीत चुके हैं. यही वजह है कि कांग्रेस बिलासपुर लोकसभा में उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया है.
बिलासपुर लोकसभा सीट का दंगल दिलचस्प होने जा रहा है. दोनों ही उम्मीदवार पिछड़ा वर्ग के हैं और इनमें सामान्य वर्ग और अनुसूचित जाति और जनजाति के मतदाता भी हैं. यही तीनों समाज गेम चेंजर के रूप में भी सामने आ सकता है. इनका वोट जिन्हें मिलेगा उसकी जीत तय होगी.-अखिल वर्मा, पॉलिटिकल एक्सपर्ट
यानी कि बिलासपुर सामान्य सीट पर पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों के बीच इस बार लोकसभा चुनाव में दिलचस्प लड़ाई होगी. दोनों ही दल अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं. ऐसे में देखना होगा कि जनता किस पर भरोसा करती है.