लखनऊ: बिहार में हुए राजनीतिक बदलाव के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव यूपी में जातीय और सियासी समीकरण दुरुस्त करने में जुटे हुए हैं. बिहार के सीएम नीतीश कुमार के सहारे गठबंधन और यूपी की कुर्मी बिरादरी के साथ आने को लेकर अखिलेश यादव आश्वस्त थे. लेकिन, अब नीतीश के भाजपा में जाने के बाद अखिलेश यादव कुर्मी जाति से जुड़े नेताओं को सक्रिय करके अपने सियासी समीकरण ठीक करने पर ध्यान दे रहे हैं.
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इंडिया गठबंधन का साथ छोड़कर भारतीय जनता पार्टी के साथ जाने वाले नीतीश कुमार के बाद अपनी यूपी की चुनावी बिसात अब जातीय गोलबंदी के आधार पर करने पर जुट गए हैं. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 16 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित किए हैं और इसमें पूरी तरीके से पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक समाज की छाप नजर आ रही है. नीतीश कुमार कुर्मी बिरादरी से आने वाले बड़े नेता हैं. उनका उनके समाज के लोगों के बीच अच्छी पकड़ है. इंडिया गठबंधन के साथ अगर वह होते तो उत्तर प्रदेश में उसका फायदा समाजवादी पार्टी को होता. लेकिन, अब जब वह नहीं हैं तो समाजवादी पार्टी या इंडिया गठबंधन को कुर्मी बिरादरी के वोटरों को लुभाने के लिए कुछ नए काम करने होंगे. इसी कड़ी को देखते हुए अखिलेश यादव ने 16 सीटों में से चार सीटों पर अभी कुर्मी बिरादरी के बड़े नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा है और यह चारों सपा के बड़े नेता हैं. कुर्मी समाज में उनका अच्छा खासा दखल है. जब यह लोग लोकसभा चुनाव लड़ेंगे तो उनके समाज के वोट बैंक के साथ ही पिछड़ी जातियों का वोट बैंक भी समाजवादी पार्टी को मिल सकेगा.
अखिलेश की पिछड़ों के सहारे जीत हासिल करने की कोशिश
अखिलेश यादव की कोशिश है कि पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक समाज के सहारे लोकसभा चुनाव 2024 में जीत दर्ज की जाए. ऐसे में अखिलेश यादव न सिर्फ एक तरफ जातीय सम्मेलन करने की शुरुआत कर रहे हैं, बल्कि लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों के चयन में भी पिछड़े और दलित पर ज्यादा फोकस है. खासकर अति पिछड़ी जातियों पर अखिलेश यादव ज्यादा फोकस कर रहे हैं, जिससे उन्हें पिछड़ी जातियों का भरपूर साथ मिल सके. कुर्मी जाति से आने वाले लालजी वर्मा को अंबेडकर नगर से चुनाव मैदान में उतारा है. बांदा से शिव शंकर सिंह पटेल, लखीमपुर खीरी से उत्कर्ष वर्मा और बस्ती से राम प्रसाद चौधरी को चुनाव मैदान में उतार कर अखिलेश यादव कुर्मी वोटरों पर अपना एकाधिकार जताने और नीतीश की काट को लेकर काम करना शुरू कर चुके हैं.
जातीय समीकरण का हिसाब
जानकार बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी फैक्टर की चुनाव जीतने में बड़ी भूमिका होती है. इसलिए सभी दलों की नजर इसी वर्ग पर रहती है. प्रदेश में लगभग 25 करोड़ की आबादी में लगभग 54% पिछड़ी जातियां हैं. इनमें मुस्लिम समाज के अंतर्गत आने वाली पिछड़ी जातियों की हिस्सेदारी लगभग 12% मानी जाती है. अगर मुस्लिम समाज की पिछड़ी जातियों को पिछड़ी जातियों की कुल आबादी से हटा दिया जाए तो हिंदू आबादी में लगभग 42% पिछड़ी जातियां आती हैं. इनमें सबसे अधिक 20% यादव और दूसरे नंबर पर करीब 9% कुर्मी समाज के लोग हैं.
इसी वोट बैंक को अपने साथ जोड़ने के लिए अखिलेश यादव कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं. प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में 24 से अधिक ऐसी लोकसभा सीटें हैं, जिन पर कुर्मी मतदाताओं की संख्या चुनावी परिणामों को प्रभावित करने वाली है. यही कारण है कि अखिलेश यादव कुर्मी समाज से आने वाले वरिष्ठ नेताओं को चुनाव मैदान में उतारने का काम कर रहे हैं. समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रविदास मेहरोत्रा कहते हैं कि हम पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक समाज को साथ लेकर आगे बढ़ रहे हैं. पिछड़ी जातियों में कुर्मी वोटरों को साधने के लिए हम उस समाज से आने वाले नेताओं को लोकसभा चुनाव में उतार रहे हैं. अखिलेश यादव ने पूरी रणनीति तैयार करके चुनाव जीतने का काम किया है. इंडिया गठबंधन उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों पर जीत दर्ज करने का काम करेगा. उन्होंने कहा कि वे जाति समीकरण पर पूरा फोकस कर रहे हैं.
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