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आखिर BJP को क्यों रास आती है काशी, कैसे बन गई भगवा का गढ़, आइए डालते हैं एक नजर - Loksabha Election Result 2024 - LOKSABHA ELECTION RESULT 2024

इस चुनाव में भी वाराणसी सीट पर सबकी नजरें हैं. बनारस का चुनावी इतिहास भी बेहद रोचक रहा है. कभी कांग्रेस के लिए मुफीद रही यह सीट कैसे बन गई भगवा का गढ़, आइए जानते हैं.

वाराणसी लोकसभा सीट.
वाराणसी लोकसभा सीट. (PHOTO CREDIT ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jun 3, 2024, 1:02 PM IST

वाराणसी: नतीजे आने में अब कुछ ही समय बचा है. कल यानी मंगलवार 8.30 बजे से ही रुझान आने शुरू हो जाएंगे. इसी के साथ हॉट सीट में शुमार वाराणसी की स्थिति भी साफ हो जाएगी. इस सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं. इसलिए भी सबकी नजरें इस सीट पर हैं. वाराणसी के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो यह पहले भी हमेशा चर्चा में रही है. इस सीट का प्रतिनिधित्व पूर्व सीएम कमलापति त्रिपाठी, पूर्व पीएम चंद्रशेखर ने भी किया है. इस बार के चुनाव में भी वाराणसी फिर से चर्चा के केंद्र में हैं. आइए नजर डालते हैं, बनारस के अब तक के चुनाव नतीजों और यहां से जीते दिग्गजों पर.

वाराणसी लोकसभा सीट का राजनीतिक इतिहास.
वाराणसी लोकसभा सीट का राजनीतिक इतिहास. (PHOTO CREDIT ETV BHARAT)

भाजपा ने 7 और कांग्रेस ने 6 बार दर्ज की जीत

वाराणसी सीट पर 1952 से लेकर अब तक भाजपा सात बार जीत दर्ज कर चुकी है. वहीं कांग्रेस 6 बार, जनता दल ने 1 बार, सीपीएम ने 1 बार और भारतीय लोक दल ने भी 1 बार वाराणसी से जीत दर्ज की है. बनारस सीट पर बीजेपी को सबसे मजबूत और प्रबल दावेदार बनाता है. यह इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि यहां दो बार के विधानसभा चुनावों में 8 की 8 सीटें बीजेपी ने जीती है. लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी का ही जलवा 2009 से कायम है. इतना ही नहीं हाल ही में हुए नगर निकाय चुनाव में बीजेपी के 65% से ज्यादा पार्षद और मेयर ने भी जीत दर्ज की है. पंचायत चुनाव में बीजेपी का क्रेज देखने को मिला है, यानी कुल मिलाकर बनारस की हर सीट पर भाजपा ही काबिज है. इसलिए कहते हैं बनारस भारतीय जनता पार्टी की पूरे देश में सबसे सुरक्षित सीट है.

भाजपा के लिए सुरक्षित क्यों ?

वाराणसी बीजेपी के लिए सुरक्षित क्यों है? इस पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस के सीनियर प्रोफेसर हेमंत कुमार मालवीय कहते हैं, बनारस सबसे बड़ा धार्मिक शहर माना जाता है. काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी का मुद्दा हमेशा चर्चा में रहता है. भारत में धार्मिक दृष्टि से राजनीति का बेहद महत्व माना जाता है. चाहे अयोध्या हो या मथुरा, काशी हो या उज्जैन, यह कुछ ऐसे धार्मिक शहर हैं, जो बीजेपी के एजेंडे में सबसे ऊपर रहते हैं. इन शहरों में होने वाला हर छोटा-छोटा बदलाव बीजेपी को और मजबूत कर रहा है. समय के साथ हो रहे विकास और पुराने शहर का बदल रहा स्वरूप यहां के वोटर्स के साथ बाहर से आने वाले सैलानियों को भी पसंद आ रहा है. यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी अपने वोट प्रतिशत को बढ़ाने के लिए बनारस को सबसे मजबूत किला मानती है.

2019 का मत प्रतिशत

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वाराणसी से अकेले 63.86% वोट मिले थे. कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ी थी और 14.44 प्रतिशत मत ही हासिल कर सकी थी. समाजवादी पार्टी को 18.47% और बीएसपी को तो महज 0.84 पर्सेंट वोट मिले थे. 2014 में भी प्रधानमंत्री को बड़ी जीत मिली थी. तीसरी बार भी प्रधानमंत्री मोदी ही उम्मीदवार हैं. बनारस में जिस तरह से 10 सालों में लाखों-करोड़ों का काम हुआ है, उससे माना जा रहा है कि भाजपा को पीएम की छवि के साथ इसका भी लाभ मिलेगा.

इस सीट से जीते ये दिग्गज

प्रो हेमंत मालवीय बताते हैं कि 1952 में सबसे पहले हुए चुनाव में कांग्रेस ने उस वक्त रघुनाथ सिंह को प्रत्याशी बनाया था और जीत दर्ज की थी. यहां से चंद्रशेखर जैसे दिग्गज भी जीत का चुके हैं. वाराणसी से कमलापति त्रिपाठी, चंद्रशेखर, लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री, रघुनाथ सिंह ने भी जीत दर्ज की लेकिन, समय बदला और धीरे-धीरे यह सीट भाजपा का गढ़ बन गई. भारतीय जनता पार्टी से प्रत्याशी बनाए गए शंकर प्रसाद जायसवाल ने लगातार तीन बार बनारस सीट से जीत दर्ज करते हुए रिकॉर्ड ही बना डाला.

2009 से भाजपा के पास है बनारस

प्रोफेसर हेमंत मालवीय बताते हैं कि इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद 1984 में कांग्रेस के श्याम लाल यादव वाराणसी से चुनाव जीते थे, लेकिन 1989 में हुए चुनावों में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री ने कांग्रेस से सीट को छीन लिया और जनता दल के प्रत्याशी के तौर पर उन्होंने बड़ी जीत दर्ज की. शंकर प्रसाद जायसवाल ने 1996 से लगातार तीन बार जीत दर्ज की. हालांकि 2004 में कांग्रेस के राजेश मिश्रा ने बीजेपी को शिकस्त दे दी. 2009 में मुरली मनोहर जोशी ने वाराणसी की संसदीय सीट को फिर से बीजेपी की झोली में डाल दिया. तब से यह सीट बीजेपी के पास है और बीजेपी इस सीट को गुजरात की सीट से भी ज्यादा मजबूत और अपने लिए सुरक्षित मानती है.

यह भी पढ़ें :क्या कम वोटिंग पीएम मोदी के रिकॉर्ड जीत में बनेगी बाधक, किस वजह से घर से नहीं निकले मतदाता?, पढ़िए डिटेल - Varanasi Lok Sabha Seat

यह भी पढ़ें :काशी में भाजपा का 10 लाख का नारा कितना होगा साकार, क्या पीएम मोदी बना पाएंगे नया रिकॉर्ड, पढ़िए डिटेल - Varanasi Lok Sabha Seat

वाराणसी: नतीजे आने में अब कुछ ही समय बचा है. कल यानी मंगलवार 8.30 बजे से ही रुझान आने शुरू हो जाएंगे. इसी के साथ हॉट सीट में शुमार वाराणसी की स्थिति भी साफ हो जाएगी. इस सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं. इसलिए भी सबकी नजरें इस सीट पर हैं. वाराणसी के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो यह पहले भी हमेशा चर्चा में रही है. इस सीट का प्रतिनिधित्व पूर्व सीएम कमलापति त्रिपाठी, पूर्व पीएम चंद्रशेखर ने भी किया है. इस बार के चुनाव में भी वाराणसी फिर से चर्चा के केंद्र में हैं. आइए नजर डालते हैं, बनारस के अब तक के चुनाव नतीजों और यहां से जीते दिग्गजों पर.

वाराणसी लोकसभा सीट का राजनीतिक इतिहास.
वाराणसी लोकसभा सीट का राजनीतिक इतिहास. (PHOTO CREDIT ETV BHARAT)

भाजपा ने 7 और कांग्रेस ने 6 बार दर्ज की जीत

वाराणसी सीट पर 1952 से लेकर अब तक भाजपा सात बार जीत दर्ज कर चुकी है. वहीं कांग्रेस 6 बार, जनता दल ने 1 बार, सीपीएम ने 1 बार और भारतीय लोक दल ने भी 1 बार वाराणसी से जीत दर्ज की है. बनारस सीट पर बीजेपी को सबसे मजबूत और प्रबल दावेदार बनाता है. यह इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि यहां दो बार के विधानसभा चुनावों में 8 की 8 सीटें बीजेपी ने जीती है. लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी का ही जलवा 2009 से कायम है. इतना ही नहीं हाल ही में हुए नगर निकाय चुनाव में बीजेपी के 65% से ज्यादा पार्षद और मेयर ने भी जीत दर्ज की है. पंचायत चुनाव में बीजेपी का क्रेज देखने को मिला है, यानी कुल मिलाकर बनारस की हर सीट पर भाजपा ही काबिज है. इसलिए कहते हैं बनारस भारतीय जनता पार्टी की पूरे देश में सबसे सुरक्षित सीट है.

भाजपा के लिए सुरक्षित क्यों ?

वाराणसी बीजेपी के लिए सुरक्षित क्यों है? इस पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस के सीनियर प्रोफेसर हेमंत कुमार मालवीय कहते हैं, बनारस सबसे बड़ा धार्मिक शहर माना जाता है. काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी का मुद्दा हमेशा चर्चा में रहता है. भारत में धार्मिक दृष्टि से राजनीति का बेहद महत्व माना जाता है. चाहे अयोध्या हो या मथुरा, काशी हो या उज्जैन, यह कुछ ऐसे धार्मिक शहर हैं, जो बीजेपी के एजेंडे में सबसे ऊपर रहते हैं. इन शहरों में होने वाला हर छोटा-छोटा बदलाव बीजेपी को और मजबूत कर रहा है. समय के साथ हो रहे विकास और पुराने शहर का बदल रहा स्वरूप यहां के वोटर्स के साथ बाहर से आने वाले सैलानियों को भी पसंद आ रहा है. यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी अपने वोट प्रतिशत को बढ़ाने के लिए बनारस को सबसे मजबूत किला मानती है.

2019 का मत प्रतिशत

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वाराणसी से अकेले 63.86% वोट मिले थे. कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ी थी और 14.44 प्रतिशत मत ही हासिल कर सकी थी. समाजवादी पार्टी को 18.47% और बीएसपी को तो महज 0.84 पर्सेंट वोट मिले थे. 2014 में भी प्रधानमंत्री को बड़ी जीत मिली थी. तीसरी बार भी प्रधानमंत्री मोदी ही उम्मीदवार हैं. बनारस में जिस तरह से 10 सालों में लाखों-करोड़ों का काम हुआ है, उससे माना जा रहा है कि भाजपा को पीएम की छवि के साथ इसका भी लाभ मिलेगा.

इस सीट से जीते ये दिग्गज

प्रो हेमंत मालवीय बताते हैं कि 1952 में सबसे पहले हुए चुनाव में कांग्रेस ने उस वक्त रघुनाथ सिंह को प्रत्याशी बनाया था और जीत दर्ज की थी. यहां से चंद्रशेखर जैसे दिग्गज भी जीत का चुके हैं. वाराणसी से कमलापति त्रिपाठी, चंद्रशेखर, लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री, रघुनाथ सिंह ने भी जीत दर्ज की लेकिन, समय बदला और धीरे-धीरे यह सीट भाजपा का गढ़ बन गई. भारतीय जनता पार्टी से प्रत्याशी बनाए गए शंकर प्रसाद जायसवाल ने लगातार तीन बार बनारस सीट से जीत दर्ज करते हुए रिकॉर्ड ही बना डाला.

2009 से भाजपा के पास है बनारस

प्रोफेसर हेमंत मालवीय बताते हैं कि इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद 1984 में कांग्रेस के श्याम लाल यादव वाराणसी से चुनाव जीते थे, लेकिन 1989 में हुए चुनावों में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री ने कांग्रेस से सीट को छीन लिया और जनता दल के प्रत्याशी के तौर पर उन्होंने बड़ी जीत दर्ज की. शंकर प्रसाद जायसवाल ने 1996 से लगातार तीन बार जीत दर्ज की. हालांकि 2004 में कांग्रेस के राजेश मिश्रा ने बीजेपी को शिकस्त दे दी. 2009 में मुरली मनोहर जोशी ने वाराणसी की संसदीय सीट को फिर से बीजेपी की झोली में डाल दिया. तब से यह सीट बीजेपी के पास है और बीजेपी इस सीट को गुजरात की सीट से भी ज्यादा मजबूत और अपने लिए सुरक्षित मानती है.

यह भी पढ़ें :क्या कम वोटिंग पीएम मोदी के रिकॉर्ड जीत में बनेगी बाधक, किस वजह से घर से नहीं निकले मतदाता?, पढ़िए डिटेल - Varanasi Lok Sabha Seat

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