लखनऊ : पश्चिम उत्तर प्रदेश में पहले चरण की आठ सीटों पर मतदान बढ़ने की जगह घट गया है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने जो प्लान बनाया था कहीं ना कहीं वह कमजोर होता दिख रहा है. भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश के हर पोलिंग स्टेशन पर 370 अतिरिक्त वोट डालने का एलान किया था. ऐसे में बीजेपी की सीटें बढे़ंगी या घटेंगी इसको लेकर बड़ा सवालिया निशान खड़ा हो गया है. भाजपा नेतृत्व में इस बात को लेकर नाराजगी है. सभी नेताओं को यह हिदायत दी गई है कि बचे हुए 6 राउंड में अधिक से अधिक वोटिंग करने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएं.
5 वर्षों में वोटर लिस्ट में 1.07 करोड़ नए वोटर जुड़े : बीजेपी ने इस बार एक बूथ पर 370 वोट बढ़ाने का लक्ष्य रखा था. यह एजेंडा पहले चरण में कामयाब होता नजर नहीं आ रहा है. जिसका असर पहले चरण में नजर आया. वोट प्रतिशत में कमी आई है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें हैं. पहले चरण में 61.11% वोटिंग हुई है. पिछली बार के मुकाबले यह 5.36% कम है. इस चरण में 1.44 लाख वोटरों को अपने मताधिकार का इस्तेमाल करना था, लेकिन इसके मुकाबले 88,00,782 ही मतदान के लिए निकले. यानी इस बार 3,60,122 कम वोटर बूथ तक पहुंचे हालांकि, इसमें पोस्टल बैलेट घटा दिए जाएं तो यह अंतर और भी कम नजर आएगा. सियासी दलों से लेकर विश्लेषक तक मतदान के ट्रेंड को लेकर मंथन कर रहे हैं. पिछली बार के मुकाबले 5% से कम मतदान से किसका नफा-नुकसान होगा, इसके अपने-अपने हिसाब हैं. हालांकि, पिछली बार के मुकावले बूथ तक पहुंचने वाले वोटरों का हिसाब देखें तो 2019 के मुकाबले यह अंतर महज 3.60 लाख वोटों का ही है. इसके पीछे बड़ी वजह कुल वोटरों की संख्या में इजाफा है. 2019 में यूपी में कुल 14.27 करोड़ वोटर थे. इस बार यह संख्या बढ़कर 15.34 करोड़ हो गई है. यानी 5 वर्षों में वोटर लिस्ट में 1.07 करोड़ नए वोटर जुड़े हैं. यूपी की 80 सीटों पर अगर औसत निकाला जाए तो यह बढ़ोतरी लगभग 1.33 लाख प्रति लोकसभा है, इसलिए मतदान के प्रतिशत में आई गिरावट कुल संख्या में उतनी नजर नहीं आ रही है.
पोस्टल बैलेट जुड़ने के बाद और घटेगा अंतर : 2019 में पहले चरण की इन सीटों पर 66.47% वोट पड़े थे. इसे संख्या में बदलें तो बूथ तक कुल 91,60,904 वोटर पहुंचे थे. इसमें करीब 31 हजार पोस्टल बैलेट हैं. ऐसे में पिछली बार के पोस्टल बैलेट को हटा दें तो वोटिंग में कुल अंतर लगभग 3.29 लाख वोटों का ही है.
रामपुर, मुजफ्फरनगर और बिजनौर में चिंता : 2019 के मुकाबले सबसे कम वोटिंग रामपुर, बिजनौर और मुजफ्फरनगर में हुई है. रामपुर की सियासी मैदान से इस बार आजम खान सजायाफ्ता होने के चलते बाहर हैं. इसका असर यहां की वोटिंग पर भी दिखा है. लगभग 8% कम वोट पड़े हैं. सबसे कम वोटिंग इस लोकसभा की रामपुर विधानसभा में ही हुई है, जिसकी नुमाइंदगी आजम खान करते थे. इसी तरह बिजनौर में भी लगभग 8% वोटिंग घटी है. वहीं, ठाकुरों की नाराजगी के सेंटर रहे मुजफ्फरनगर में पिछली बार के मुकाबले 9% कम वोट पड़े हैं. सबसे कम मतदान ठाकुर बाहुल्य विधानसभा सरधना में हुआ है. कैराना में भी वोटिंग में 5% की गिरावट आई है. विपक्ष इस ट्रेंड में सत्तारूढ़ दल के वोटरों की उदासीनता और अपने वोटरों की बूथ पर सक्रियता देख रहा है. हालांकि, सत्तारूढ़ दल के दावे भी कुछ इसी तरह के हैं. महिला वोटरों का रुख भी मुरादाबाद, नगीना व बिजनौर में असर दिखाएगा. नगीना की सभी विधानसभाओं में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों से अधिक है. जबकि बिजनौर व मुरादाबाद की भी कुछ विधानसभाओं में महिलाओं ने बढ़त बनाई है.
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता मनीष शुक्ल ने बताया कि निश्चित तौर पर भारतीय जनता पार्टी के मतदाता भारी संख्या में मत करने के लिए निकले हैं. विपक्ष के नेता उदासीन थे उनको अपनी हार का पूरा भरोसा है. इसलिए वे अपने मतदाताओं के बीच नहीं गए, इसलिए विपक्ष का वोट प्रतिशत कम हुआ है. उन्होंने मतदाताओं से अपील की है की आने वाले चरण में लोग जमकर मतदान करें.
यह भी पढ़ें : अटल बिहारी स्टेडियम को अखिलेश की देन बता रैना ने दी सियासत को हवा - Suresh Raina News