पूर्णिया: पूर्णिया से 3 बार सांसद रहे पप्पू यादव के नामांकन के बाद पूर्णिया लोकसभा सीट अब एक हॉट सीट बन चुकी है. जाहिर है इस सीट को लेकर न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश में चर्चा का एक दौर चल रहा है. सियासी पंडित पूर्णिया में हार-जीत के समीकरणों पर मंथन करने लगे हैं. तो चलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं आखिर पूर्णिया का ताजा सियासी समीकरण क्या गुल खिलानेवाला है.
पूर्णिया लोकसभा सीट का इतिहासः पूर्णिया लोकसभा सीट कई राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की कर्मभूमि रही है.स्वतंत्रता सेनानी फणि गोपाल सेन गुप्ता, स्वतंत्रता सेनानी और संविधान सभा के सदस्य मोहम्मद ताहिर के साथ-साथ इस लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व सीमांचल के कद्दावर नेता मोहम्मद तस्लीमुद्दीन और बाहुबली पप्पू यादव ने भी किया है. फिलहाल इस सीट पर NDA का कब्जा है और जेडीयू के संतोष कुशवाहा यहां के मौजूदा सांसद हैं.
बेहद ही दिलचस्प होगा त्रिकोणीय मुकाबलाः वैसे तो बिहार की अधिकांश सीटों पर इस बार NDA और महागठबंधन के बीच सीधी लड़ाई है, लेकिन पूर्णिया की तस्वीर थोड़ी जुदा है. यहां से NDA के संतोष कुशवाहा और महागठबंधन की बीमा भारती के अलावा इस इलाके के बड़े नेता पप्पू यादव के चुनावी मैदान में आ जाने के बाद मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. ऐसे में निश्चित रूप से पूर्णिया का सियासी रण बेहद ही रोचक रहनेवाला है.
20 सालों से बीजेपी-जेडीयू का कब्जाः एक जमाने में कांग्रेस के गढ़ के रूप में विख्यात पूर्णिया लोकसभा सीट पर पिछले 20 सालों से बीजेपी-जेडीयू का कब्जा है. फिलहाल पूर्णिया सीट से जेडीयू के संतोष कुशवाहा सांसद हैं और 2024 के चुनाव में भी NDA ने संतोष कुशवाहा पर ही अपना भरोसा जताया है, जिनका मुकाबला आरजेडी कैंडिडेट बीमा भारती और निर्दलीय पप्पू यादव से होगा.
पूर्णिया लोकसभा सीटः 2009 से अब तकः इस सीट पर 2009 में हुए चुनाव में NDA प्रत्याशी के तौर पर बीजेपी के उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उतरीं पप्पू यादव की मां शांति प्रिया को हराकर जीत दर्ज की. हालांकि 2014 में उदय सिंह अपनी जीत का सिलसिला बरकरार नहीं रख पाए और NDA से अलग हुए जेडीयू कैंडिडेट संतोष कुशवाहा के हाथों हार गये.
पक्ष बदल गये, परिणाम रहा बरकरारः 2019 की बात करें तो एक बार फिर संतोष कुशवाहा और उदय सिंह के बीच मुकाबला हुआ, हालांकि इस बार पक्ष बदल गये थे. संतोष कुशवाहा NDA कैंडिडेट के रूप में चुनाव मैदान में थे तो उदय सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे. बाजी लगी संतोष कुशवाहा के हाथ और उन्होंने एक बार फिर उदय सिंह को मात दे दी.
पूर्णियाःगौरवशाली विरासतः बिहार के सबसे पुराने जिलों में से एक पूर्णिया 1770 में ब्रिटिश राज के दौरान ही जिला बन गया था. जिले का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था कि पूर्णिया से लेकर नेपाल तक डकैतों का आतंक था. हालांकि अब पूर्णिया बिहार के एक बड़े शहर के रूप में उभर रहा है. शहर की गुलाबबाग मंडी एशिया की सबसे बड़ी अनाज मंडी मानी जाती है.
बड़ा मेडिकल हब : पटना के बाद पूर्णिया सबसे बड़ा मेडिकल हब बनता जा रहा है. नेपाल और बंगाल से सटे पूर्णिया शहर के बीचोंबीच गुजरता NH-31 ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर का हिस्सा है जो पूर्वोत्तर को उत्तर भारत से जोड़ता है. खेती में बदलाव के लिए बिख्यात पूर्णिया में इन दिनों मक्के और मखाने की खेती बड़े पैमाने पर हो रही है. पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र में कस्बा,बनमनखी,रूपौली, धमदाहा,पूर्णिया और कोरहा ये 6 विधानसभा सीटें हैं.
पूर्णिया में जातिगत समीकरण: पूर्णिया में मतदाताओं की कुल संख्या 18 लाख 90 हजार 597 है. जिनमें 9 लाख 74 हजार 762 पुरुष मतदाता जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 9 लाख 15 हजार 762 है.जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा संख्या में करीब 4 लाख 30 हजार मुस्लिम वोटर्स हैं. इसके अलावा यादव मतदाताओं की संख्या भी डेढ़ लाख के आसपास है. जबकि अति पिछड़े और दलित मतदाताओं को मिलाकर 5 लाख के आसपास वोटर्स हैं. साथ ही राजपूत मतदाता सवा लाख और ब्राह्मण मतदाता भी सवा लाख के आसपास हैं.
क्या जीत की हैट्रिक लगा पाएंगे संतोष कुशवाहा ?: पिछले कुछ चुनावों पर नजर डालें तो पूर्णिया लोकसभा सीट अब NDA का गढ़ है. 2004 और 2009 में इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा तो पिछले 10 साल से जेडीयू के संतोष कुशवाहा पूर्णिया से जीत दर्ज कर रहे हैं. इस बार भी NDA के घटक दल जेडीयू ने संतोष कुशवाहा पर ही दांव लगाया है.
पप्पू को खारिज करना मुश्किलः महागठबंधन के सीट बंटवारे में ये सीट आरजेडी के हिस्से में आई है. आरजेडी ने यहां से रूपौली की विधायक बीमा भारती को मैदान में उतार दिया है तो पूर्णिया सीट से 3 बार सांसद रह चुके पप्पू यादव भी निर्दलीय ही सही चुनावी रण में कूद चुके हैं. इलाके के आम लोगों की बात करें तो मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है, हां एक बात सब स्वीकार कर रहे हैं कि पप्पू यादव को यहां से खारिज करना मुश्किल होगा.
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