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बनारस में कांग्रेस-बसपा की अजब रणनीति, क्या पीएम मोदी को मिलेगा इसका फायदा, देखें रिपोर्ट - Lok Sabha Election 2024

Varanasi Lok Sabha Seat Polling Date: बनारस की इस सबसे हॉट सीट से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं. माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी 13 या 14 मई को अपना नामांकन दाखिल करेंगे. हालांकि, अभी आधिकारिक घोषणा होना बाकी है, लेकिन पीएम मोदी के नामांकन को लेकर भी तैयारियां तेज हो गई है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 1, 2024, 12:35 PM IST

वाराणसी के रण पर चर्चा करते राजनीतिक विश्लेषक अरुण मिश्र.

वाराणसी: Varanasi Lok Sabha Seat Result Date: धर्म, अध्यात्म, शिक्षा और अब राजनीति के एक बड़े केंद्र के रूप में स्थापित हो चुके बनारस का चुनाव अंतिम चरण यानी 1 जून को होना है. पूर्वांचल की कई सीटों के साथ बनारस में होने वाले लोकसभा चुनाव का एक अलग ही महत्व है.

क्योंकि, बनारस की इस सबसे हॉट सीट से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं. माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी 13 या 14 मई को अपना नामांकन दाखिल करेंगे. हालांकि, अभी आधिकारिक घोषणा होना बाकी है, लेकिन पीएम मोदी के नामांकन को लेकर भी तैयारियां तेज हो गई है.

इन सबसे अलग पीएम मोदी को भाजपा 10 लाख वोटों से जिताने का नारा अलग से बनारस में लेकर चल रही है. पिछले बार के जीत के अंतर को और बड़ा करने और विकास कार्यों के बल पर बड़ी जीत हासिल करने का दवा बीजेपी का है 19 लाख से ज्यादा वोटरों में से 10 लाख वोट के अंतर से जितना कुछ मुश्किल है, लेकिन भाजपा अपने दावों पर अलग है और कहीं ना कहीं से इन दावों को अब विपक्ष भी खुद बल दे रहा है.

इसकी बड़ी वजह यह है कि भाजपा के इस एजेंडे के खिलाफ इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी अजय राय और बहुजन समाज पार्टी की तरफ से मुस्लिम कैंडिडेट नियाज अली मंजू के अलावा ओवैसी और अपना दल कमेरावादी गठबंधन के प्रत्याशी गगन यादव भी मैदान में है.

पीएम मोदी के खिलाफ विपक्ष के इन चेहरों से निश्चित तौर पर बीजेपी को बड़ा फायदा होने जा रहा है, क्योंकि मुस्लिम यादव और पटेल वोट के बंटवारे आपस में ही होंगे. जिसका बड़ा फायदा कहीं ना कहीं से बीजेपी को मिल सकता है. विपक्ष का यह वोट डायवर्ट होकर पीएम मोदी को लाभ पहुंचा सकता है.

इस बारे में लंबे वक्त तक राजनीतिक पत्रकारिता करने वाले वरिष्ठ पत्रकार अरुण मिश्र का कहना है कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी के जीत की बड़ी भूमिका खुद विपक्ष तैयार कर रहा है, क्योंकि अब जो बनारस में 19 लाख से ज्यादा वोटर में ढाई लाख से ज्यादा मुस्लिम और लगभग तीन लाख से ज्यादा वैश्य पटेल और भूमिहार और यादव वोट बंटने जा रहा है.

बीजेपी संबंधित विपक्ष के अलग-अलग प्रत्याशियों में बैठने जा रहा है. अगर अजय राय प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अकेले कैंडिडेट होते तो शायद कुछ स्थिति और थी, लेकिन अजय राय सपा कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी हैं और बहुजन समाज पार्टी ने मुस्लिम कार्ड खेल कर नियाज अली मंजू को मैदान में उतार दिया है, जो मुस्लिम वोटर्स के बीच ठीक-ठाक पैठ रखते हैं.

इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी ने बनारस में जिस तरह से जनसभा करके हजारों मुस्लिम मतदाताओं की भीड़ जुटाया और अपने प्रत्याशी गगन यादव को मैदान उतारा है उसका सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस के कैंडिडेट को हो सकता है, क्योंकि पहले से ही बहुजन समाज पार्टी ने मुस्लिम कार्ड खेला है, मुस्लिम मतदाता सपा और बसपा के बीच कन्फ्यूजन की स्थिति में थे और अब ओवैसी की एंट्री के साथ मुस्लिम मतदाता तीन भागों में बट जाएंगे.

वहीं अपना दल का जो कोर वाटर पटेल है वह भी कांग्रेस सपा और ओवैसी गठबंधन के बीच बंटने का काम करेगा. ऐसा ही हाल बाकी जाति के मतदाताओं पर भी देखने को मिलेगा. जिसका बड़ा लाभ सीधे-सीधे भाजपा को मिलेगा, क्योंकि विपक्ष के वोटर बटेंगे तो वोट परसेंटेज बीजेपी के लिए तो बढ़ेगा, जबकि बाकी के लिए घटेगा. इसलिए विपक्ष कहीं ना कहीं से आपसी खींचतान की वजह से बनारस के चुनाव को अपने हाथ से खुद जाने दे रहा है.

अरुण मिश्रा का कहना है कि यह पहली बार नहीं है. इसके पहले 2009 में भी मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ बसपा से मुख्तार अंसारी, सपा से अजय राय और कांग्रेस से उसे वक्त राजेश मिश्रा चुनाव मैदान में थे जो वोटर को बांटने का काम कर चुका था.

2014 के चुनाव में भी अरविंद केजरीवाल और समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. जिसकी वजह से तीनों पार्टियों में वोट बढ़ गया था और पीएम मोदी को बड़ी जीत मिल गई थी. 2019 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था.

उस वक्त मायावती और समाजवादी पार्टी एक हो गए थे, लेकिन कांग्रेस अलग थी और मुस्लिम मतदाताओं को कंफ्यूज करने के लिए अतीक अहमद ने भी बनारस से पर्चा दाखिल कर दिया था हालांकि बाद में अतीत ने चुनाव न लड़ने की घोषणा की थी, लेकिन तब तक जेल में बंद अति का चुनाव आगे बढ़ चुका था और महज 833 वोट पाने वाले अतीक ने वोटर्स के लिए कन्फ्यूजन पैदा जरूर किया था.

इस बार भी अलग-अलग पार्टियों के अलग-अलग कैंडीडेट्स बनारस के चुनाव को एक तरफ करने का काम कर रहे हैं, जो पीएम मोदी के लिए जीत की बड़ी भूमिका खुद बना रहे हैं. अरुण मिश्रा का कहना है कि विपक्ष एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी को हराने के लिए एकजुट होने की बात तो करता है.

लेकिन वही खुद उनके संसदीय क्षेत्र में ही विपक्ष का यह रवैया आपसी खींचतान की सबसे बड़ी मिसाल पेश करता है. जब पीएम मोदी को उनके संसदीय क्षेत्र में ही बड़े अंतर से विपक्ष नहीं हर पा रहा है तो देश में क्या हालात हैं यह समझदार के लिए इशारा ही काफी है.

ये भी पढ़ेंः पीएम मोदी के सामने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने उतारा कैंडिडेट, जानिए कौन है?

वाराणसी के रण पर चर्चा करते राजनीतिक विश्लेषक अरुण मिश्र.

वाराणसी: Varanasi Lok Sabha Seat Result Date: धर्म, अध्यात्म, शिक्षा और अब राजनीति के एक बड़े केंद्र के रूप में स्थापित हो चुके बनारस का चुनाव अंतिम चरण यानी 1 जून को होना है. पूर्वांचल की कई सीटों के साथ बनारस में होने वाले लोकसभा चुनाव का एक अलग ही महत्व है.

क्योंकि, बनारस की इस सबसे हॉट सीट से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं. माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी 13 या 14 मई को अपना नामांकन दाखिल करेंगे. हालांकि, अभी आधिकारिक घोषणा होना बाकी है, लेकिन पीएम मोदी के नामांकन को लेकर भी तैयारियां तेज हो गई है.

इन सबसे अलग पीएम मोदी को भाजपा 10 लाख वोटों से जिताने का नारा अलग से बनारस में लेकर चल रही है. पिछले बार के जीत के अंतर को और बड़ा करने और विकास कार्यों के बल पर बड़ी जीत हासिल करने का दवा बीजेपी का है 19 लाख से ज्यादा वोटरों में से 10 लाख वोट के अंतर से जितना कुछ मुश्किल है, लेकिन भाजपा अपने दावों पर अलग है और कहीं ना कहीं से इन दावों को अब विपक्ष भी खुद बल दे रहा है.

इसकी बड़ी वजह यह है कि भाजपा के इस एजेंडे के खिलाफ इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी अजय राय और बहुजन समाज पार्टी की तरफ से मुस्लिम कैंडिडेट नियाज अली मंजू के अलावा ओवैसी और अपना दल कमेरावादी गठबंधन के प्रत्याशी गगन यादव भी मैदान में है.

पीएम मोदी के खिलाफ विपक्ष के इन चेहरों से निश्चित तौर पर बीजेपी को बड़ा फायदा होने जा रहा है, क्योंकि मुस्लिम यादव और पटेल वोट के बंटवारे आपस में ही होंगे. जिसका बड़ा फायदा कहीं ना कहीं से बीजेपी को मिल सकता है. विपक्ष का यह वोट डायवर्ट होकर पीएम मोदी को लाभ पहुंचा सकता है.

इस बारे में लंबे वक्त तक राजनीतिक पत्रकारिता करने वाले वरिष्ठ पत्रकार अरुण मिश्र का कहना है कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी के जीत की बड़ी भूमिका खुद विपक्ष तैयार कर रहा है, क्योंकि अब जो बनारस में 19 लाख से ज्यादा वोटर में ढाई लाख से ज्यादा मुस्लिम और लगभग तीन लाख से ज्यादा वैश्य पटेल और भूमिहार और यादव वोट बंटने जा रहा है.

बीजेपी संबंधित विपक्ष के अलग-अलग प्रत्याशियों में बैठने जा रहा है. अगर अजय राय प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अकेले कैंडिडेट होते तो शायद कुछ स्थिति और थी, लेकिन अजय राय सपा कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी हैं और बहुजन समाज पार्टी ने मुस्लिम कार्ड खेल कर नियाज अली मंजू को मैदान में उतार दिया है, जो मुस्लिम वोटर्स के बीच ठीक-ठाक पैठ रखते हैं.

इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी ने बनारस में जिस तरह से जनसभा करके हजारों मुस्लिम मतदाताओं की भीड़ जुटाया और अपने प्रत्याशी गगन यादव को मैदान उतारा है उसका सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस के कैंडिडेट को हो सकता है, क्योंकि पहले से ही बहुजन समाज पार्टी ने मुस्लिम कार्ड खेला है, मुस्लिम मतदाता सपा और बसपा के बीच कन्फ्यूजन की स्थिति में थे और अब ओवैसी की एंट्री के साथ मुस्लिम मतदाता तीन भागों में बट जाएंगे.

वहीं अपना दल का जो कोर वाटर पटेल है वह भी कांग्रेस सपा और ओवैसी गठबंधन के बीच बंटने का काम करेगा. ऐसा ही हाल बाकी जाति के मतदाताओं पर भी देखने को मिलेगा. जिसका बड़ा लाभ सीधे-सीधे भाजपा को मिलेगा, क्योंकि विपक्ष के वोटर बटेंगे तो वोट परसेंटेज बीजेपी के लिए तो बढ़ेगा, जबकि बाकी के लिए घटेगा. इसलिए विपक्ष कहीं ना कहीं से आपसी खींचतान की वजह से बनारस के चुनाव को अपने हाथ से खुद जाने दे रहा है.

अरुण मिश्रा का कहना है कि यह पहली बार नहीं है. इसके पहले 2009 में भी मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ बसपा से मुख्तार अंसारी, सपा से अजय राय और कांग्रेस से उसे वक्त राजेश मिश्रा चुनाव मैदान में थे जो वोटर को बांटने का काम कर चुका था.

2014 के चुनाव में भी अरविंद केजरीवाल और समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. जिसकी वजह से तीनों पार्टियों में वोट बढ़ गया था और पीएम मोदी को बड़ी जीत मिल गई थी. 2019 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था.

उस वक्त मायावती और समाजवादी पार्टी एक हो गए थे, लेकिन कांग्रेस अलग थी और मुस्लिम मतदाताओं को कंफ्यूज करने के लिए अतीक अहमद ने भी बनारस से पर्चा दाखिल कर दिया था हालांकि बाद में अतीत ने चुनाव न लड़ने की घोषणा की थी, लेकिन तब तक जेल में बंद अति का चुनाव आगे बढ़ चुका था और महज 833 वोट पाने वाले अतीक ने वोटर्स के लिए कन्फ्यूजन पैदा जरूर किया था.

इस बार भी अलग-अलग पार्टियों के अलग-अलग कैंडीडेट्स बनारस के चुनाव को एक तरफ करने का काम कर रहे हैं, जो पीएम मोदी के लिए जीत की बड़ी भूमिका खुद बना रहे हैं. अरुण मिश्रा का कहना है कि विपक्ष एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी को हराने के लिए एकजुट होने की बात तो करता है.

लेकिन वही खुद उनके संसदीय क्षेत्र में ही विपक्ष का यह रवैया आपसी खींचतान की सबसे बड़ी मिसाल पेश करता है. जब पीएम मोदी को उनके संसदीय क्षेत्र में ही बड़े अंतर से विपक्ष नहीं हर पा रहा है तो देश में क्या हालात हैं यह समझदार के लिए इशारा ही काफी है.

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