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गठन से पतन तक लोकदल की कहानी: कभी पांच राज्यों तक फैला था कुनबा, अब पार्टी के पास न तो सांसद, न विधायक - Lok Dal Chaudhary Sunil Singh

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 25, 2024, 11:11 AM IST

उत्तर प्रदेश में एक ऐसा भी राजनीतिक दल है जिसका कुनबा कभी पांच राज्यों तक फैला था. पार्टी का दबदबा था. अब यह पार्टी सिमटकर रह गई है. इस पार्टी की स्थापना चौधरी चरण सिंह ने की थी.

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उत्तर प्रदेश में एक ऐसा भी राजनीतिक दल है जिसका कुनबा कभी पांच राज्यों तक फैला था.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में एक ऐसा भी राजनीतिक दल है जिसका कुनबा कभी पांच राज्यों तक फैला था. पार्टी का दबदबा था. अब यह पार्टी सिमटकर रह गई है. इस पार्टी की स्थापना चौधरी चरण सिंह ने की थी. जननायक कर्पूरी ठाकुर, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, रामविलास पासवान और देवीलाल जैसे नेता इसके सदस्य थे. कोई प्रधानमंत्री बना तो कोई मुख्यमंत्री. किसी ने केंद्र में मंत्री पद को सुशोभित किया तो किसी ने राज्य में सत्ता का सिंहासन संभाला, लेकिन बड़े बिखराव के चलते अब लोकदल के पास कार्यकर्ता तक नहीं बचे हैं. अब राष्ट्रीय अध्यक्ष की भूमिका में चौधरी सुनील सिंह हैं. जो अपने लिए विभिन्न दलों में राह तलाशने में जुटे हैं.

चौधरी चरण सिंह ने बनाई थी पार्टी

साल 1974 से लोकदल की शुरुआत होती है. चौधरी चरण सिंह भारतीय लोक दल नाम से पार्टी का गठन करते हैं. तब इसका चुनाव निशान हलधर किसान था. इमरजेंसी लगी तो 1977 में इंदिरा गांधी का मुकाबला करने के लिए कई नेताओं ने अपनी अपनी पार्टियों का विलय कराकर जनता पार्टी बना ली. कई पार्टियों को मिलाकर बनाई गई जनता पार्टी का चुनाव निशान भी हलधर किसान बना. साल 1977 में कांग्रेस को हराकर जनता पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाई. मोरारजी देसाई के बाद चौधरी चरण सिंह जनता पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री बने, लेकिन 1980 में आपसी मतभेदों के कारण जनता पार्टी टूट गई और चौधरी चरण सिंह भी इस पार्टी से अलग हो गए. इसके बाद उन्होंने जो पार्टी बनाई उसका नाम था लोकदल और चुनाव निशान था हल जोतता किसान. 1987 में चौधरी चरण सिंह के देहांत तक अच्छे से लोकदल राजनीति में दखल देती रही. चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद पार्टी में बिखराव शुरू हो गया. पार्टी के सितारे गर्दिश में चले गए. अभी भी पार्टी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है.

लोकदल से निकले ये बड़े नेता

एक समय ऐसा भी था जब वर्तमान में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, बीजू जनता दल के बीजू पटनायक, एनसीपी के शरद पवार, जेडीयू के शरद यादव और समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव के अलावा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर, पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय रामविलास पासवान तक लोक दल की शोभा बढ़ाते रहे. लोकदल से जो भी नेता बाहर निकले और जिन्होंने विभिन्न राज्यों में परचम फहराया. उनके बड़े-बड़े कटआउट्स लगे हुए देखे जा सकते हैं.

इस तरह बिखरी पांच राज्यों में फैली पार्टी

लोकदल की ताकत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि साल 1994 के लोकसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी के सिर्फ दो सांसद थे तब भी लोकदल के चार सांसद हुआ करते थे. धीरे-धीरे भारतीय जनता पार्टी तो आगे बढ़ने लगी अन्य पार्टियों भी अग्रसर होती गईं, लेकिन राजनीति के मैदान में लोकदल के नेता अलग-अलग पार्टियों में जाने लगे या अपनी पार्टियों का गठन करने लगे. उसके बाद लोकदल के साथ बड़े नेताओं का जुड़ना भी कम हो गया. कभी उत्तर प्रदेश समेत हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार में लोकदल का दबदबा होता था. अब आलम है कि पार्टी का कोई विधायक और सांसद है ही नहीं. विधान परिषद सदस्य भी नहीं है. यहां तक कि छोटे स्तर के चुनाव में भी पार्टी का प्रतिनिधित्व न के बराबर है.

पार्टी में इस तरह पड़ी फूट

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह का निधन हुआ, उसके बाद लोकदल पर कब्जे की लड़ाई छिड़ गई. कुछ दिनों तक हेमवती नंदन बहुगुणा इस पार्टी के अध्यक्ष बने. बाद में यह लड़ाई चुनाव आयोग के दर पर जा पहुंची. उस समय पार्टी पर दावा करने वालों में चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजीत सिंह भी शामिल थे. चुनाव आयोग ने फैसला सुनाया कि अजीत सिंह बेटे होने के नाते चरण सिंह की संपत्ति के वारिस तो हो सकते हैं लेकिन पार्टी की विरासत उन्हें नहीं मिल सकती. इसके बाद चौधरी अजीत सिंह ने लोकदल से अलग होकर राष्ट्रीय लोकदल नाम की अपनी अलग पार्टी स्थापित कर ली. जो अभी चल रही है. इधर लोकदल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अलीगढ़ के जाट नेता चौधरी राजेंद्र सिंह के हाथों में इस पार्टी की कमान पहुंच गई. वह पार्टी के कद्दावर नेता थे. वर्तमान में लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी सुनील सिंह हैं. वह पार्टी के अध्यक्ष चौधरी राजेंद्र सिंह के पुत्र हैं. अभी भी लोकदल का नाम और चुनाव निशान के साथ पार्टी को राजनीति में कायम रखे हुए हैं. चौधरी सुनील सिंह एक बार यूपी विधान परिषद से सदस्य भी रह चुके हैं.

क्या कहते हैं चौधरी सुनील सिंह

लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी सुनील सिंह कहते हैं कि लोकदल पहले पांच राज्यों तक फैला था, लेकिन अब अलग-अलग पार्टियां बन गईं. उसके बाद इस पार्टी से निकले लोग तो बड़े नेता बन गए लेकिन पार्टी अब फिर से आगे बढ़ाने की दिशा में अग्रसर है. हम लोकसभा चुनाव पूरी ताकत से लड़ रहे हैं. लोकदल के संस्थापक चौधरी चरण सिंह ने तो अपने निधन से पहले ही कहा था कि चौधरी अजीत सिंह को राजनीति में न लाया जाए. वह विदेश से पढ़े हैं, राजनीति नहीं समझेंगे, लेकिन चौधरी अजीत सिंह राजनीति में आए और उसके बाद बिखराव हुआ. किसी ने राष्ट्रीय लोक दल बना ली तो किसी ने भारतीय लोक दल का गठन कर लिया, लेकिन हल जोतता हुआ किसान वाला लोकदल आज भी कायम है. नेता चाहे मुलायम सिंह यादव हों, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, बीजू पटनायक, कर्पूरी ठाकुर, रामविलास पासवान सभी लोकदल के ही सदस्य रहे हैं. लोकदल का गौरवशाली इतिहास है.

यह भी पढ़ें : चौधरी सुनील सिंह का जयंत पर हमला, बोले- उन्हें नहीं मालूम चौधरी साहब की आइडियोलॉजी

यह भी पढ़ें : Lok Sabha Elections 2024 : भाजपा ने भी चला ब्राह्मण कार्ड, कानपुर से रमेश अवस्थी को मिला टिकट - Kanpur Ramesh Awasthi

उत्तर प्रदेश में एक ऐसा भी राजनीतिक दल है जिसका कुनबा कभी पांच राज्यों तक फैला था.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में एक ऐसा भी राजनीतिक दल है जिसका कुनबा कभी पांच राज्यों तक फैला था. पार्टी का दबदबा था. अब यह पार्टी सिमटकर रह गई है. इस पार्टी की स्थापना चौधरी चरण सिंह ने की थी. जननायक कर्पूरी ठाकुर, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, रामविलास पासवान और देवीलाल जैसे नेता इसके सदस्य थे. कोई प्रधानमंत्री बना तो कोई मुख्यमंत्री. किसी ने केंद्र में मंत्री पद को सुशोभित किया तो किसी ने राज्य में सत्ता का सिंहासन संभाला, लेकिन बड़े बिखराव के चलते अब लोकदल के पास कार्यकर्ता तक नहीं बचे हैं. अब राष्ट्रीय अध्यक्ष की भूमिका में चौधरी सुनील सिंह हैं. जो अपने लिए विभिन्न दलों में राह तलाशने में जुटे हैं.

चौधरी चरण सिंह ने बनाई थी पार्टी

साल 1974 से लोकदल की शुरुआत होती है. चौधरी चरण सिंह भारतीय लोक दल नाम से पार्टी का गठन करते हैं. तब इसका चुनाव निशान हलधर किसान था. इमरजेंसी लगी तो 1977 में इंदिरा गांधी का मुकाबला करने के लिए कई नेताओं ने अपनी अपनी पार्टियों का विलय कराकर जनता पार्टी बना ली. कई पार्टियों को मिलाकर बनाई गई जनता पार्टी का चुनाव निशान भी हलधर किसान बना. साल 1977 में कांग्रेस को हराकर जनता पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाई. मोरारजी देसाई के बाद चौधरी चरण सिंह जनता पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री बने, लेकिन 1980 में आपसी मतभेदों के कारण जनता पार्टी टूट गई और चौधरी चरण सिंह भी इस पार्टी से अलग हो गए. इसके बाद उन्होंने जो पार्टी बनाई उसका नाम था लोकदल और चुनाव निशान था हल जोतता किसान. 1987 में चौधरी चरण सिंह के देहांत तक अच्छे से लोकदल राजनीति में दखल देती रही. चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद पार्टी में बिखराव शुरू हो गया. पार्टी के सितारे गर्दिश में चले गए. अभी भी पार्टी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है.

लोकदल से निकले ये बड़े नेता

एक समय ऐसा भी था जब वर्तमान में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, बीजू जनता दल के बीजू पटनायक, एनसीपी के शरद पवार, जेडीयू के शरद यादव और समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव के अलावा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर, पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय रामविलास पासवान तक लोक दल की शोभा बढ़ाते रहे. लोकदल से जो भी नेता बाहर निकले और जिन्होंने विभिन्न राज्यों में परचम फहराया. उनके बड़े-बड़े कटआउट्स लगे हुए देखे जा सकते हैं.

इस तरह बिखरी पांच राज्यों में फैली पार्टी

लोकदल की ताकत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि साल 1994 के लोकसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी के सिर्फ दो सांसद थे तब भी लोकदल के चार सांसद हुआ करते थे. धीरे-धीरे भारतीय जनता पार्टी तो आगे बढ़ने लगी अन्य पार्टियों भी अग्रसर होती गईं, लेकिन राजनीति के मैदान में लोकदल के नेता अलग-अलग पार्टियों में जाने लगे या अपनी पार्टियों का गठन करने लगे. उसके बाद लोकदल के साथ बड़े नेताओं का जुड़ना भी कम हो गया. कभी उत्तर प्रदेश समेत हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार में लोकदल का दबदबा होता था. अब आलम है कि पार्टी का कोई विधायक और सांसद है ही नहीं. विधान परिषद सदस्य भी नहीं है. यहां तक कि छोटे स्तर के चुनाव में भी पार्टी का प्रतिनिधित्व न के बराबर है.

पार्टी में इस तरह पड़ी फूट

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह का निधन हुआ, उसके बाद लोकदल पर कब्जे की लड़ाई छिड़ गई. कुछ दिनों तक हेमवती नंदन बहुगुणा इस पार्टी के अध्यक्ष बने. बाद में यह लड़ाई चुनाव आयोग के दर पर जा पहुंची. उस समय पार्टी पर दावा करने वालों में चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजीत सिंह भी शामिल थे. चुनाव आयोग ने फैसला सुनाया कि अजीत सिंह बेटे होने के नाते चरण सिंह की संपत्ति के वारिस तो हो सकते हैं लेकिन पार्टी की विरासत उन्हें नहीं मिल सकती. इसके बाद चौधरी अजीत सिंह ने लोकदल से अलग होकर राष्ट्रीय लोकदल नाम की अपनी अलग पार्टी स्थापित कर ली. जो अभी चल रही है. इधर लोकदल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अलीगढ़ के जाट नेता चौधरी राजेंद्र सिंह के हाथों में इस पार्टी की कमान पहुंच गई. वह पार्टी के कद्दावर नेता थे. वर्तमान में लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी सुनील सिंह हैं. वह पार्टी के अध्यक्ष चौधरी राजेंद्र सिंह के पुत्र हैं. अभी भी लोकदल का नाम और चुनाव निशान के साथ पार्टी को राजनीति में कायम रखे हुए हैं. चौधरी सुनील सिंह एक बार यूपी विधान परिषद से सदस्य भी रह चुके हैं.

क्या कहते हैं चौधरी सुनील सिंह

लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी सुनील सिंह कहते हैं कि लोकदल पहले पांच राज्यों तक फैला था, लेकिन अब अलग-अलग पार्टियां बन गईं. उसके बाद इस पार्टी से निकले लोग तो बड़े नेता बन गए लेकिन पार्टी अब फिर से आगे बढ़ाने की दिशा में अग्रसर है. हम लोकसभा चुनाव पूरी ताकत से लड़ रहे हैं. लोकदल के संस्थापक चौधरी चरण सिंह ने तो अपने निधन से पहले ही कहा था कि चौधरी अजीत सिंह को राजनीति में न लाया जाए. वह विदेश से पढ़े हैं, राजनीति नहीं समझेंगे, लेकिन चौधरी अजीत सिंह राजनीति में आए और उसके बाद बिखराव हुआ. किसी ने राष्ट्रीय लोक दल बना ली तो किसी ने भारतीय लोक दल का गठन कर लिया, लेकिन हल जोतता हुआ किसान वाला लोकदल आज भी कायम है. नेता चाहे मुलायम सिंह यादव हों, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, बीजू पटनायक, कर्पूरी ठाकुर, रामविलास पासवान सभी लोकदल के ही सदस्य रहे हैं. लोकदल का गौरवशाली इतिहास है.

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