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आदिवासी हॉस्टल की बदहाल स्थिति, बाथरूम में पढ़ने को मजबूर छात्र! - Hazaribag Boys Tribal Hostel

Hazaribag Boys Tribal Hostel. हजारीबाग में ब्वॉयज आदिवासी हॉस्टल के बाथरूम को लाइब्रेरी बना दिया गया है. इतना ही नहीं बाथरूम के लाइब्रेरी में टेबल और कुर्सी की भी व्यवस्था है.

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हॉस्टल के बाथरूम में बनी लाइब्रेरी (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 10, 2024, 8:04 AM IST

हजारीबाग: जिले में ब्वॉयज आदिवासी छात्रावास के बाथरूम में लाइब्रेरी चल रही है. छात्रों ने खुद पढ़ने के लिए व्यवस्था बना रखी है. छात्रों ने बताया कि हॉस्टल में जिस जगह को स्नान के लिए बनाया गया था, वहां अब छात्र अपने भविष्य को गढ़ने के लिए पढ़ाई कर रहे हैं. यह वह तस्वीर है जिसे देखकर हर एक व्यक्ति शर्मिंदा हो जाए कि जिस उद्देश्य से झारखंड राज्य का गठन किया गया था उसका यह हाल है.

संवाददाता गौरव प्रकाश की रिपोर्ट (ETV BHARAT)

ब्वॉयज आदिवासी हॉस्टल में पढ़ने वाले छात्रों ने अपने लिए बाथरूम में ही दो लाइब्रेरी तैयार कर ली है. छात्र यहां पढ़ने के लिए कुर्सी और टेबल की भी व्यवस्था कर रखी है. जिस बाथरूम के दीवारों पर साबुन या फिर नहाने के सामान रखे जाते हैं, वहां पढ़ाई-लिखाई के लिए कैलेंडर लगे हुए हैं.

library running in bathroom of Hazaribag Boys Tribal Hostel
बालक आदिवासी हॉस्टल के कमरे की तस्वीर (ETV BHARAT)

आशा लकड़ा ने हॉस्टल के हालात को बताया दुर्भाग्य

छात्रावास के प्रीफेक्ट भी बताते हैं कि आदिवासी हॉस्टल में दूर-दराज से आदिवासी समाज के बच्चे पहुंचते हैं, जो यहां रहकर अलग-अलग कॉलेजों में पढ़ाई करते हैं. यहां लगे कमरे की स्थिति भी काफी खराब है. छात्र कहां पढ़ाई करें, यह बहुत बड़ी समस्या थी. ऐसे में छात्रों ने बाथरूम में ही लाइब्रेरी की व्यवस्था कर ली.

इस बात का खुलासा उस वक्त हुआ जब हजारीबाग राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति की सदस्य आशा लकड़ा निरीक्षण करने यहां पहुंची. जब उन्होंने यहां की स्थिति को देखा तो उनके भी होश उड़ गए कि आखिर छात्र किस तरह यहां पढ़ाई कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि छात्र बाथरूम में पढ़ाई कर रहे हैं. पूरे हॉस्टल की स्थिति बेहद खराब है. शौचालय, पानी, बिजली, खाने के बर्तन सभी की लाले पड़े हुए हैं. जिस उद्देश्य से झारखंड राज्य का गठन हुआ था इसका उद्देश्य पूरा नहीं होता दिख रहा है. हजारीबाग आदिवासी समाज के बच्चे अगर बाथरूम में पढ़े तो यह कहना गलत नहीं होगा कि सिस्टम फेल हो गया है.

ये भी पढ़ें: हजारीबाग में आदिवासियों की दुर्दशा देख भड़कीं आशा लकड़ा, अधिकारियों को फटकार

ये भी पढ़ें: ट्रैफिक चालान काटने के लिए यातायात प्रभारी युवाओं से ले रहे थे मदद, डीआईजी ने कहा- मामले में लेंगे संज्ञान

हजारीबाग: जिले में ब्वॉयज आदिवासी छात्रावास के बाथरूम में लाइब्रेरी चल रही है. छात्रों ने खुद पढ़ने के लिए व्यवस्था बना रखी है. छात्रों ने बताया कि हॉस्टल में जिस जगह को स्नान के लिए बनाया गया था, वहां अब छात्र अपने भविष्य को गढ़ने के लिए पढ़ाई कर रहे हैं. यह वह तस्वीर है जिसे देखकर हर एक व्यक्ति शर्मिंदा हो जाए कि जिस उद्देश्य से झारखंड राज्य का गठन किया गया था उसका यह हाल है.

संवाददाता गौरव प्रकाश की रिपोर्ट (ETV BHARAT)

ब्वॉयज आदिवासी हॉस्टल में पढ़ने वाले छात्रों ने अपने लिए बाथरूम में ही दो लाइब्रेरी तैयार कर ली है. छात्र यहां पढ़ने के लिए कुर्सी और टेबल की भी व्यवस्था कर रखी है. जिस बाथरूम के दीवारों पर साबुन या फिर नहाने के सामान रखे जाते हैं, वहां पढ़ाई-लिखाई के लिए कैलेंडर लगे हुए हैं.

library running in bathroom of Hazaribag Boys Tribal Hostel
बालक आदिवासी हॉस्टल के कमरे की तस्वीर (ETV BHARAT)

आशा लकड़ा ने हॉस्टल के हालात को बताया दुर्भाग्य

छात्रावास के प्रीफेक्ट भी बताते हैं कि आदिवासी हॉस्टल में दूर-दराज से आदिवासी समाज के बच्चे पहुंचते हैं, जो यहां रहकर अलग-अलग कॉलेजों में पढ़ाई करते हैं. यहां लगे कमरे की स्थिति भी काफी खराब है. छात्र कहां पढ़ाई करें, यह बहुत बड़ी समस्या थी. ऐसे में छात्रों ने बाथरूम में ही लाइब्रेरी की व्यवस्था कर ली.

इस बात का खुलासा उस वक्त हुआ जब हजारीबाग राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति की सदस्य आशा लकड़ा निरीक्षण करने यहां पहुंची. जब उन्होंने यहां की स्थिति को देखा तो उनके भी होश उड़ गए कि आखिर छात्र किस तरह यहां पढ़ाई कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि छात्र बाथरूम में पढ़ाई कर रहे हैं. पूरे हॉस्टल की स्थिति बेहद खराब है. शौचालय, पानी, बिजली, खाने के बर्तन सभी की लाले पड़े हुए हैं. जिस उद्देश्य से झारखंड राज्य का गठन हुआ था इसका उद्देश्य पूरा नहीं होता दिख रहा है. हजारीबाग आदिवासी समाज के बच्चे अगर बाथरूम में पढ़े तो यह कहना गलत नहीं होगा कि सिस्टम फेल हो गया है.

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