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विधान मंडल सत्र के हंगामेदार रहने के आसार; हाथरस, मॉब लिंचिंग, पेपर लीक पर विपक्ष होगा आक्रमक, दलित चेहरे को सपा बना सकती नेता प्रतिपक्ष - UP Legislature Session - UP LEGISLATURE SESSION

29 जुलाई से उत्तर प्रदेश का विधान मंडल सत्र शुरू होने जा रहा है. इस दौरान सरकार को जनहित के मुद्दों पर विपक्ष जमकर घेरेगा. अखिलेश यादव के दिल्ली जाने से खाली हुई नेता प्रतिपक्ष सीट पर किसी दलित चेहरे को बैठा सकती है सपा

सपा नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर किसी दलित को बैठ सकती
सपा नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर किसी दलित को बैठ सकती (PHOTO credits ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jul 23, 2024, 9:46 PM IST

29 जुलाई से विधानमंडल सत्र (video credits ETV Bharat)

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधान मंडल का बजट सत्र 29 जुलाई से शुरू हो रहा है. सत्र के दौरान जहां एक ओर विपक्षी पार्टियां सरकार को जनहित से जुड़े मुद्दे और कानून व्यवस्था को लेकर घेरने का काम करेंगी. वहीं दूसरी ओर नेता प्रतिपक्ष का चुनाव भी समाजवादी पार्टी को करना है. सपा पीडीए फार्मूले के तहत विधानमंडल के दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर नेताओं को जिम्मेदारी देना चाह रही है. इसकी झलक समाजवादी पार्टी ने विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी यादव समाज से आने वाले लाल बिहारी यादव को देकर दिखा दी है. साथ ही मुस्लिम - यादव यानी एमवाई समीकरण की भी झलक विधान परिषद में नेताओं को दी गई जिम्मेदारी में साफ-साफ देखी जा सकती है.

समाजवादी पार्टी के मुस्लिम चेहरे विधान परिषद के सदस्य जास्मीन अंसारी को पार्टी ने विधान परिषद में उप नेता की बड़ी जिम्मेदारी दी है और वहीं नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर लाल बिहारी यादव को जिम्मेदारी दी गई है. इससे यादव मुस्लिम समीकरण को सपा ने विधान परिषद में आगे बढ़ाया है. इसके अलावा विधानसभा में समाजवादी पार्टी वरिष्ठ विधायक इंद्रजीत सरोज को जिम्मेदारी दे सकती है. इंद्रजीत सरोज मूल रूप से बहुजन समाज पार्टी के कैडर वाले नेता रहे हैं और कुछ साल पहले वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. सपा दलित चेहरे के रूप में उन्हें आगे बढ़कर पिछड़े - दलित - अल्पसंख्यक फार्मूले को पूरी तरीके से विधानमंडल के दोनों सदनों में लागू करने की रणनीति बना रही है.

वहीं पहले ऐसी चर्चा जोरों पर थी कि समाजवादी पार्टी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर अखिलेश अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को बैठा सकते हैं. लेकिन इसकी संभावना अब ना के बराबर जताई जा रही है. सपा के अंदर से भी बिना नाम लिए लोग शिवपाल सिंह यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाने की बात कह रहे हैं. हालांकि अखिलेश यादव दलित समाज से आने वाले किसी चेहरे को यह जिम्मेदारी देने का मन बना रहे हैं. इसके संकेत समाजवादी पार्टी के नेताओं की तरफ से दिए जा रहे हैं. पिछड़े चेहरों में अगर बात की जाए तो समाजवादी पार्टी राम अचल राजभर को भी जिम्मेदारी देकर पूर्वांचल में अपना जाति समीकरण फिट कर सकती है.

राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन के मुताबिक, समाजवादी पार्टी पिछड़े दलित अल्पसंख्यक फार्मूले को विधान भवन के दोनों सदनों के नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी अपने जा रहे हैं. लाल बिहारी यादव को सपा ने विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी है, मुस्लिम समाज से आने वाले जास्मीन अंसारी को भी उपनेता बनाकर माय समीकरण को आगे बढ़ाया गया है. अब विधानसभा में दलित समाज से आने वाले किसी नेता को जिम्मेदारी दी जा सकती है. इसके लिए इंद्रजीत सरोज का नाम सबसे आगे चल रहा है. हालांकि सपा के अंदर से वरिष्ठ विधायक शिवपाल सिंह यादव का नाम लिया जा रहा.

विधानमंडल सत्र के दौरान समाजवादी पार्टी कानून व्यवस्था जैसे हाथरस की घटना, मॉब लिंचिंग के साथ ही पेपर लीक, महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दे को लेकर विधानसभा और विधान परिषद में सरकार से सवाल जवाब करती नजर आ सकती है. वहीं नेम प्लेट का मामला भी अभी गरमाया हुआ है. इसको लेकर भी सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों आक्रमक रूख अपना सकते हैं. विपक्ष के आरोपों का जबाव देने के लिए सत्ता पक्ष भी अलग रणनीति के साथ सदन में मौजूद रह सकती है.

ये भी पढ़ें: सपा महासचिव सलीम शेरवानी के इस्तीफे का जवाब अखिलेश यादव ने पांच महीने बाद दिया, जिसने पढ़ा वो चौंक गया

29 जुलाई से विधानमंडल सत्र (video credits ETV Bharat)

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधान मंडल का बजट सत्र 29 जुलाई से शुरू हो रहा है. सत्र के दौरान जहां एक ओर विपक्षी पार्टियां सरकार को जनहित से जुड़े मुद्दे और कानून व्यवस्था को लेकर घेरने का काम करेंगी. वहीं दूसरी ओर नेता प्रतिपक्ष का चुनाव भी समाजवादी पार्टी को करना है. सपा पीडीए फार्मूले के तहत विधानमंडल के दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर नेताओं को जिम्मेदारी देना चाह रही है. इसकी झलक समाजवादी पार्टी ने विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी यादव समाज से आने वाले लाल बिहारी यादव को देकर दिखा दी है. साथ ही मुस्लिम - यादव यानी एमवाई समीकरण की भी झलक विधान परिषद में नेताओं को दी गई जिम्मेदारी में साफ-साफ देखी जा सकती है.

समाजवादी पार्टी के मुस्लिम चेहरे विधान परिषद के सदस्य जास्मीन अंसारी को पार्टी ने विधान परिषद में उप नेता की बड़ी जिम्मेदारी दी है और वहीं नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर लाल बिहारी यादव को जिम्मेदारी दी गई है. इससे यादव मुस्लिम समीकरण को सपा ने विधान परिषद में आगे बढ़ाया है. इसके अलावा विधानसभा में समाजवादी पार्टी वरिष्ठ विधायक इंद्रजीत सरोज को जिम्मेदारी दे सकती है. इंद्रजीत सरोज मूल रूप से बहुजन समाज पार्टी के कैडर वाले नेता रहे हैं और कुछ साल पहले वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. सपा दलित चेहरे के रूप में उन्हें आगे बढ़कर पिछड़े - दलित - अल्पसंख्यक फार्मूले को पूरी तरीके से विधानमंडल के दोनों सदनों में लागू करने की रणनीति बना रही है.

वहीं पहले ऐसी चर्चा जोरों पर थी कि समाजवादी पार्टी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर अखिलेश अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को बैठा सकते हैं. लेकिन इसकी संभावना अब ना के बराबर जताई जा रही है. सपा के अंदर से भी बिना नाम लिए लोग शिवपाल सिंह यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाने की बात कह रहे हैं. हालांकि अखिलेश यादव दलित समाज से आने वाले किसी चेहरे को यह जिम्मेदारी देने का मन बना रहे हैं. इसके संकेत समाजवादी पार्टी के नेताओं की तरफ से दिए जा रहे हैं. पिछड़े चेहरों में अगर बात की जाए तो समाजवादी पार्टी राम अचल राजभर को भी जिम्मेदारी देकर पूर्वांचल में अपना जाति समीकरण फिट कर सकती है.

राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन के मुताबिक, समाजवादी पार्टी पिछड़े दलित अल्पसंख्यक फार्मूले को विधान भवन के दोनों सदनों के नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी अपने जा रहे हैं. लाल बिहारी यादव को सपा ने विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी है, मुस्लिम समाज से आने वाले जास्मीन अंसारी को भी उपनेता बनाकर माय समीकरण को आगे बढ़ाया गया है. अब विधानसभा में दलित समाज से आने वाले किसी नेता को जिम्मेदारी दी जा सकती है. इसके लिए इंद्रजीत सरोज का नाम सबसे आगे चल रहा है. हालांकि सपा के अंदर से वरिष्ठ विधायक शिवपाल सिंह यादव का नाम लिया जा रहा.

विधानमंडल सत्र के दौरान समाजवादी पार्टी कानून व्यवस्था जैसे हाथरस की घटना, मॉब लिंचिंग के साथ ही पेपर लीक, महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दे को लेकर विधानसभा और विधान परिषद में सरकार से सवाल जवाब करती नजर आ सकती है. वहीं नेम प्लेट का मामला भी अभी गरमाया हुआ है. इसको लेकर भी सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों आक्रमक रूख अपना सकते हैं. विपक्ष के आरोपों का जबाव देने के लिए सत्ता पक्ष भी अलग रणनीति के साथ सदन में मौजूद रह सकती है.

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