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शिकारी देवी मंदिर में अब सिर्फ टौर के पत्तों की पत्तल में परोसा जाएगा लंगर, डिस्पोजेबल प्लेट्स से मिलेगा छुटकारा - Taur Pattal use in Shikari Temple

Taur Pattal in Shikari Devi Temple: मंडी जिले के ताज के नाम से मशहूर शिकारी देवी मंदिर में अब डिस्पोजेबल प्लेट्स का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. इसकी बजाय अब टौर के पत्तों की पत्तलों में श्रद्धालुओं को भोजन परोसा जाएगा. पर्यावरण संरक्षण और संस्कृति एवं धरोहर को संजोए रखने के लिए प्रशासन ने ये फैसला लिया है.

Taur Pattal in Shikari Devi Temple
शिकारी देवी मंदिर में टौर की पत्तलों का इस्तेमाल (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Sep 20, 2024, 1:59 PM IST

Updated : Sep 20, 2024, 2:09 PM IST

सराज: हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल और समुद्र तट से करीब 11 हजार ऊंची चोटी पर विराजमान शिकारी देवी मंदिर में अब से डिस्पोजेबल प्लेट्स का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. मंडी जिले में स्थित शिकारी देवी मंदिर में अब श्रद्धालुओं को सिर्फ टौर की पत्तल में ही लंगर परोसा जाएगा. मंदिर की संस्कृति एवं धरोहर को संजोए रखने और संतुलित पर्यावरण के लिए स्थानीय प्रशासन की ओर से ये फैसला लिया गया है. इसलिए अब से मंदिर में डिस्पोजेबल प्लेट्स की जगह टौर के पत्तों से बनी हरी पत्तलों का इस्तेमाल होगा.

स्वयं सहायता समूहों को प्राथमिकता

कार्यकारी एसडीएम तहसीलदार थुनाग अमित कल्थाईक ने बताया कि ये पहल पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए की गई है. उन्होंने कहा कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में ये फैसला कारगर साबित होगा. इसके लिए स्वयं सहायता समूहों को प्राथमिकता दी जाएगी. इससे रोजगार के अवसरों में भी बढ़ावा होगा. उन्होंने कहा कि इसके लिए स्वयं सहायता समूह प्रशासन से संपर्क कर सकते हैं. जिससे उन्हें आय का स्त्रोत मिल जाएगा और हमें टौर के पत्तों से बनी हुई पत्तलें मिल जाएंगी.

Taur Pattal in Shikari Devi Temple
टौर की पत्तलों में परोसा जाएगा लंगर (ETV Bharat)

दुकानदारों को दिया जाएगा नोटिस

कार्यकारी एसडीएम तहसीलदार थुनाग अमित कल्थाईक माता शिकारी देवी मंदिर कमेटी के अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने कहा कि पर्यावरण को स्वच्छ और सुंदर बनाए रखने के लिए प्रशासन अकेला कुछ नहीं कर सकता है. इसके लिए सभी की भागीदारी को सुनिश्चित करना होगा. इसके लिए प्रशासन द्वारा आने वाले दिनों में मंदिर के आसपास व्यवसाय करने वाले दुकानदारों को नोटिस जारी किया जाएगा कि वो डिस्पोजेबल प्लेट्स की जगह इन पत्तलों का इस्तेमाल करें, ताकि माता शिकारी देवी मंदिर परिसर को स्वच्छ बनाने में सबकी भागीदारी हो.

सराज में पत्तल परंपरा आज भी कायम

हिमाचल की संस्कृति में टौर के पत्तों की पत्तलों का बहुत महत्व है. चाहे कोई शादी का कार्यक्रम हो या धार्मिक कार्यक्रम हो, टौर के पत्तों की पत्तलों का ही इस्तेमाल होता है. सराज में ये परंपरा आज भी कायम है. आज भी यहां पर शादी या धार्मिक कार्यक्रमों की धाम को इन पत्तलों में ही परोसा जाता है. पहाड़ों की ये पत्तल टौर नामक बेल के पत्ते से बनती है. ये बेल शिमला, मंडी, कांगड़ा और हमीरपुर जिले में ज्यादा पाई जाती है.

Taur Pattal in Shikari Devi Temple
टौर की बेल (ETV Bharat)

पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहद उपयोगी

टौर की बेल कचनार परिवार से संबंधित है और इसमें कई सारे औषधीय गुण मौजूद होते हैं. टौर के पत्तों से भूख बढ़ाने में भी मदद मिलती है. टौर के पत्ते मुलायम और लसदार होते हैं. यही वजह है कि इनसे बनी पत्तलों पर खाना खाने का आनंद मिलता है. अन्य पेड़ों के पत्तों की तरह टौर के पत्ते भी गड्ढे में डालने के दो से तीन के अंदर ही गल-सड़ जाते हैं. इसलिए ये पत्तलें पर्यावरण संरक्षण के लिए भी बेहद उपयोगी होती हैं.

ये भी पढ़ें: तारा देवी मंदिर में आज से टौर के पत्तल में परोसा जाएगा लंगर, जानें हिमाचली संस्कृति में क्या है इसका महत्व?

सराज: हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल और समुद्र तट से करीब 11 हजार ऊंची चोटी पर विराजमान शिकारी देवी मंदिर में अब से डिस्पोजेबल प्लेट्स का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. मंडी जिले में स्थित शिकारी देवी मंदिर में अब श्रद्धालुओं को सिर्फ टौर की पत्तल में ही लंगर परोसा जाएगा. मंदिर की संस्कृति एवं धरोहर को संजोए रखने और संतुलित पर्यावरण के लिए स्थानीय प्रशासन की ओर से ये फैसला लिया गया है. इसलिए अब से मंदिर में डिस्पोजेबल प्लेट्स की जगह टौर के पत्तों से बनी हरी पत्तलों का इस्तेमाल होगा.

स्वयं सहायता समूहों को प्राथमिकता

कार्यकारी एसडीएम तहसीलदार थुनाग अमित कल्थाईक ने बताया कि ये पहल पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए की गई है. उन्होंने कहा कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में ये फैसला कारगर साबित होगा. इसके लिए स्वयं सहायता समूहों को प्राथमिकता दी जाएगी. इससे रोजगार के अवसरों में भी बढ़ावा होगा. उन्होंने कहा कि इसके लिए स्वयं सहायता समूह प्रशासन से संपर्क कर सकते हैं. जिससे उन्हें आय का स्त्रोत मिल जाएगा और हमें टौर के पत्तों से बनी हुई पत्तलें मिल जाएंगी.

Taur Pattal in Shikari Devi Temple
टौर की पत्तलों में परोसा जाएगा लंगर (ETV Bharat)

दुकानदारों को दिया जाएगा नोटिस

कार्यकारी एसडीएम तहसीलदार थुनाग अमित कल्थाईक माता शिकारी देवी मंदिर कमेटी के अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने कहा कि पर्यावरण को स्वच्छ और सुंदर बनाए रखने के लिए प्रशासन अकेला कुछ नहीं कर सकता है. इसके लिए सभी की भागीदारी को सुनिश्चित करना होगा. इसके लिए प्रशासन द्वारा आने वाले दिनों में मंदिर के आसपास व्यवसाय करने वाले दुकानदारों को नोटिस जारी किया जाएगा कि वो डिस्पोजेबल प्लेट्स की जगह इन पत्तलों का इस्तेमाल करें, ताकि माता शिकारी देवी मंदिर परिसर को स्वच्छ बनाने में सबकी भागीदारी हो.

सराज में पत्तल परंपरा आज भी कायम

हिमाचल की संस्कृति में टौर के पत्तों की पत्तलों का बहुत महत्व है. चाहे कोई शादी का कार्यक्रम हो या धार्मिक कार्यक्रम हो, टौर के पत्तों की पत्तलों का ही इस्तेमाल होता है. सराज में ये परंपरा आज भी कायम है. आज भी यहां पर शादी या धार्मिक कार्यक्रमों की धाम को इन पत्तलों में ही परोसा जाता है. पहाड़ों की ये पत्तल टौर नामक बेल के पत्ते से बनती है. ये बेल शिमला, मंडी, कांगड़ा और हमीरपुर जिले में ज्यादा पाई जाती है.

Taur Pattal in Shikari Devi Temple
टौर की बेल (ETV Bharat)

पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहद उपयोगी

टौर की बेल कचनार परिवार से संबंधित है और इसमें कई सारे औषधीय गुण मौजूद होते हैं. टौर के पत्तों से भूख बढ़ाने में भी मदद मिलती है. टौर के पत्ते मुलायम और लसदार होते हैं. यही वजह है कि इनसे बनी पत्तलों पर खाना खाने का आनंद मिलता है. अन्य पेड़ों के पत्तों की तरह टौर के पत्ते भी गड्ढे में डालने के दो से तीन के अंदर ही गल-सड़ जाते हैं. इसलिए ये पत्तलें पर्यावरण संरक्षण के लिए भी बेहद उपयोगी होती हैं.

ये भी पढ़ें: तारा देवी मंदिर में आज से टौर के पत्तल में परोसा जाएगा लंगर, जानें हिमाचली संस्कृति में क्या है इसका महत्व?

Last Updated : Sep 20, 2024, 2:09 PM IST
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