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चूटरूमबेड़ा का आंगनबाड़ी टोला: यहां आते आते 'विकास' ही भूल जाता हैं रास्ता, फंड हो जाता है खत्म - basic facilities in Anganwadi Tola

Anganwadi Tola far from development. सात दशक बाद भी किसी गांव के लोग एक अदद सड़क के लिए तरसे, पानी के लिए जंगल- पहाड़ भटके तो इसे विडम्बना कहेंगे या सिस्टम की अनदेखी. ऐसा ही एक गांव है गिरिडीह के डुमरी में. इस गांव में सड़क नहीं होने का खामियाजा एक प्रसूता को जान देकर चुकाना पड़ा है.

BASIC FACILITIES IN ANGANWADI TOLA
Etv Bharat (ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Aug 28, 2024, 1:55 PM IST

गिरिडीहः वैसे विकास का दंभ राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक खूब भरती है. कोई प्रधानमंत्री सड़क योजना तो कोई मुख्यमंत्री सड़क योजना से गांव की बदहाल सड़क को दुरूस्त करने की बात कहता है. कभी माननीयों के कोटे से गांव की गलियों को पक्की करने की बात कही जाती है. कई स्थानों पर काम भी हुआ है और गांव की बदहाली को दूर किया गया लेकिन आज भी ऐसे गांव है जहां विकास की बात कहना ही बेमानी होगा. हम एक ऐसे गांव की हकीकत बता रहे हैं जहां विकास भी अपना रास्ता भूल जाता है. हम बात कर रहे हैं डुमरी प्रखंड के अंतर्गत अतकी पंचायत के चूटरूमबेड़ा के आंगनबाड़ी टोला की.

गिरिडीह के चूटरूमबेड़ा के आंगनबाड़ी टोला में मूलभूत सुविधाओं का अभाव (ईटीवी भारत)

चूटरूम बेड़ा, आदिवासी बाहुल्य गांव है. इस गांव का ही एक टोला है आंगनबाड़ी. यह टोला भी आदिवासी बाहुल्य है. इस टोला से चूटरूमबेड़ा गांव की दूरी लगभग डेढ़ किमी है. इस डेढ़ किमी में रास्ता नहीं है, पथरीला और उबड़ खाबड़ पगडंडी है. इसी पगडंडी से होकर लोगों को गुजरना पड़ता है.

पेयजल की भी समस्या, पहाड़ जंगल में भटकते हैं लोग

इस टोला के लोगों को पेयजल की समस्या से भी दोचार होना पड़ता है. यहां जल जीवन मिशन के तहत भी कार्य नहीं हुआ है. ऐसे में लोगों को पानी के लिए भटकना पड़ता है. यहां के निवासी रमेश हेंब्रम, लुकास सोरेन, नुनुराम हेंब्रम बताते हैं कि सड़क तो बदहाल है ही, पानी ने भी जीना मुहाल कर दिया है. यहां जल जीवन मिशन की बोरिंग भी नहीं हुई है. जब बोरिंग हुई ही नहीं तो पानी कहां से मिलेगा.

इस गांव के के लिए नहीं हैं फंड

यहां के लोग जनप्रतिनिधि के साथ साथ अधिकारी से भी नाराज हैं. इनका कहना है कि यहां की समस्या की जानकारी सभी को है. सांसद, विधायक, मुखिया, पंचायत सेवक सभी जानते हैं कि इस टोला की क्या क्या समस्या हैं. यहां वोट मांगने भी लोग आते हैं लेकिन उसके बाद हमें भूला दिया जाता है. हर बार कहा जाता हैं कि फंड नहीं है. लोग सवाल करते हैं कि आखिर उनके टोला तक आते आते फंड को क्या हो जाता हैं. यह भी बताया कि इस टोला के बच्चों को पढ़ाई के लिए भी काफी जद्दोजहद कराना पड़ता है. यहां के बच्चे दूसरे गांव के आंगनबाड़ी केंद्र में जाते हैं.

एम्बुलेंस आया नहीं, इलाज में हुई देरी और चली गई कांती की जान

यहां के ग्रामीणों ने सड़क नहीं रहने की विभीषिका को देखा है. सड़क के अभाव में एक महिला उचित समय पर इलाज के लिए अस्पताल नहीं पहुंच सकी और उसकी जान चली गई. यह मामला दस दिन पहले का है. ग्रामीणों ने बताया कि लगभग दस दिनों पूर्व इसी टोले के रहने वाले किशुन हेम्ब्रम की गर्भवती पत्नी कांती मुर्मू ( 29 वर्ष ) को प्रसव पीड़ा हुई. आरम्भ में कांती का इलाज ग्रामीण चिकित्सक से हुआ. इस बीच उसकी तबीयत बिगड़ गई. एम्बुलेंस के किए टॉल फ्री नंबर पर डायल किया गया. सूचना पर एम्बुलेंस आयी लेकिन सड़क नहीं रहने के कारण डेढ़ किमी दूरी पर ही उसे खड़ा होना पड़ा. ऐसे में कांती को खाट पर लादा गया और पैदल ही घरवाले व ग्रामीण उसे लेकर एम्बुलेंस तक पहुंचे. इसमें देरी हो गई. इसके बाद एम्बुलेंस से उसे अस्पताल ले जाया गया, डुमरी से उसे धनबाद रेफर कर दिया गया लेकिन वह नहीं बच सकी.

क्या कहते हैं सांसद
इस विषय पर सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी से ईटीवी भारत ने बात की. सांसद ने कहा कि सूबे की सरकार, उनके मंत्री और अधिकारी सोये हुए हैं. इन्हें जनता की फिक्र नहीं है. अधिकारी तो किसी की बात सुनना नहीं चाहते. वैसे ईटीवी भारत ने उन्हें यहां की समस्या की जानकारी दी है तो इस दिशा में उनकी तरफ से पहल होगी. लोगों की समस्या को दूर करने का निश्चित प्रयास होगा.

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गिरिडीहः वैसे विकास का दंभ राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक खूब भरती है. कोई प्रधानमंत्री सड़क योजना तो कोई मुख्यमंत्री सड़क योजना से गांव की बदहाल सड़क को दुरूस्त करने की बात कहता है. कभी माननीयों के कोटे से गांव की गलियों को पक्की करने की बात कही जाती है. कई स्थानों पर काम भी हुआ है और गांव की बदहाली को दूर किया गया लेकिन आज भी ऐसे गांव है जहां विकास की बात कहना ही बेमानी होगा. हम एक ऐसे गांव की हकीकत बता रहे हैं जहां विकास भी अपना रास्ता भूल जाता है. हम बात कर रहे हैं डुमरी प्रखंड के अंतर्गत अतकी पंचायत के चूटरूमबेड़ा के आंगनबाड़ी टोला की.

गिरिडीह के चूटरूमबेड़ा के आंगनबाड़ी टोला में मूलभूत सुविधाओं का अभाव (ईटीवी भारत)

चूटरूम बेड़ा, आदिवासी बाहुल्य गांव है. इस गांव का ही एक टोला है आंगनबाड़ी. यह टोला भी आदिवासी बाहुल्य है. इस टोला से चूटरूमबेड़ा गांव की दूरी लगभग डेढ़ किमी है. इस डेढ़ किमी में रास्ता नहीं है, पथरीला और उबड़ खाबड़ पगडंडी है. इसी पगडंडी से होकर लोगों को गुजरना पड़ता है.

पेयजल की भी समस्या, पहाड़ जंगल में भटकते हैं लोग

इस टोला के लोगों को पेयजल की समस्या से भी दोचार होना पड़ता है. यहां जल जीवन मिशन के तहत भी कार्य नहीं हुआ है. ऐसे में लोगों को पानी के लिए भटकना पड़ता है. यहां के निवासी रमेश हेंब्रम, लुकास सोरेन, नुनुराम हेंब्रम बताते हैं कि सड़क तो बदहाल है ही, पानी ने भी जीना मुहाल कर दिया है. यहां जल जीवन मिशन की बोरिंग भी नहीं हुई है. जब बोरिंग हुई ही नहीं तो पानी कहां से मिलेगा.

इस गांव के के लिए नहीं हैं फंड

यहां के लोग जनप्रतिनिधि के साथ साथ अधिकारी से भी नाराज हैं. इनका कहना है कि यहां की समस्या की जानकारी सभी को है. सांसद, विधायक, मुखिया, पंचायत सेवक सभी जानते हैं कि इस टोला की क्या क्या समस्या हैं. यहां वोट मांगने भी लोग आते हैं लेकिन उसके बाद हमें भूला दिया जाता है. हर बार कहा जाता हैं कि फंड नहीं है. लोग सवाल करते हैं कि आखिर उनके टोला तक आते आते फंड को क्या हो जाता हैं. यह भी बताया कि इस टोला के बच्चों को पढ़ाई के लिए भी काफी जद्दोजहद कराना पड़ता है. यहां के बच्चे दूसरे गांव के आंगनबाड़ी केंद्र में जाते हैं.

एम्बुलेंस आया नहीं, इलाज में हुई देरी और चली गई कांती की जान

यहां के ग्रामीणों ने सड़क नहीं रहने की विभीषिका को देखा है. सड़क के अभाव में एक महिला उचित समय पर इलाज के लिए अस्पताल नहीं पहुंच सकी और उसकी जान चली गई. यह मामला दस दिन पहले का है. ग्रामीणों ने बताया कि लगभग दस दिनों पूर्व इसी टोले के रहने वाले किशुन हेम्ब्रम की गर्भवती पत्नी कांती मुर्मू ( 29 वर्ष ) को प्रसव पीड़ा हुई. आरम्भ में कांती का इलाज ग्रामीण चिकित्सक से हुआ. इस बीच उसकी तबीयत बिगड़ गई. एम्बुलेंस के किए टॉल फ्री नंबर पर डायल किया गया. सूचना पर एम्बुलेंस आयी लेकिन सड़क नहीं रहने के कारण डेढ़ किमी दूरी पर ही उसे खड़ा होना पड़ा. ऐसे में कांती को खाट पर लादा गया और पैदल ही घरवाले व ग्रामीण उसे लेकर एम्बुलेंस तक पहुंचे. इसमें देरी हो गई. इसके बाद एम्बुलेंस से उसे अस्पताल ले जाया गया, डुमरी से उसे धनबाद रेफर कर दिया गया लेकिन वह नहीं बच सकी.

क्या कहते हैं सांसद
इस विषय पर सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी से ईटीवी भारत ने बात की. सांसद ने कहा कि सूबे की सरकार, उनके मंत्री और अधिकारी सोये हुए हैं. इन्हें जनता की फिक्र नहीं है. अधिकारी तो किसी की बात सुनना नहीं चाहते. वैसे ईटीवी भारत ने उन्हें यहां की समस्या की जानकारी दी है तो इस दिशा में उनकी तरफ से पहल होगी. लोगों की समस्या को दूर करने का निश्चित प्रयास होगा.

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