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छत्तीसगढ़ के प्रयागराज राजिम में कुंभ कल्प का शुभारंभ, राज्यपाल रामेन डेका ने बताई विशेषता - RAJIM KUMBH 2025

छत्तीसगढ़ के प्रयागराज राजिम में कुंभ कल्प का शुभारंभ हुआ.राज्यपाल रामेन डेका इस समारोह के मुख्य अतिथि थे.

Rajim kumbh 2025
राजिम में कुंभ कल्प का शुभारंभ (ETV BHARAT CHATTISGARH)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Feb 13, 2025, 7:33 PM IST

रायपुर : छत्तीसगढ़ के पवित्र त्रिवेणी संगम, राजिम के तट पर आयोजित राजिम कुंभ कल्प का भव्य शुभारंभ हुआ. राजिम में आयोजित 15 दिवसीय आयोजन के उद्घाटन अवसर पर राज्यपाल रामेन डेका मुख्य अतिथि थे. मेले के शुभारंभ पर राज्यपाल सहित साधु-संतों और अतिथियों ने भगवान राजीव लोचन की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर प्रदेश की सुख-समृद्धि और खुशहाली की प्रार्थना की. इस दौरान राज्यपाल रामेन डेका ने कहा कि महानदी, पैरी और सोंढूर के संगम पर स्थित यह पावन भूमि सदियों से संतों और भक्तों का केंद्र रही है. राजिम कुंभ कल्प हमारी समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का जीवंत प्रतीक है, जो न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि समाज में एकता, समरसता और परंपराओं के संरक्षण का संदेश भी देता है.

क्या है राजिम का महत्व : राजिम का ऐतिहासिक महत्व बताते हुए राज्यपाल रामेन डेका ने कहा कि यह क्षेत्र भगवान राजीव लोचन मंदिर, कुलेश्वर महादेव, रामचंद्र पंचेश्वर महादेव, भूतेश्वर महादेव और सोमेश्वर महादेव जैसे प्राचीन मंदिरों का धाम है. पंचकोशी यात्रा में पटेश्वर, चंपेश्वर, ब्रह्मनेश्वर, फणीश्वर और कोपेश्वर महादेव शामिल हैं, जो श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं. इस वर्ष का राजिम कुंभ कल्प इसलिए भी विशेष है क्योंकि ये उसी समय आयोजित हो रहा है जब प्रयागराज में महाकुंभ का भव्य आयोजन हो रहा है. प्रयागराज में जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है. वहीं राजिम में महानदी, पैरी और सोंढूर का संगम होता है. इसीलिए इसे छत्तीसगढ़ का प्रयागराज कहा जाता है.

छत्तीसगढ़ की भूमि सदियों से धार्मिक पर्यटन और मेलों की समृद्ध परंपरा को संजोए हुए है. महामाया मंदिर, बम्लेश्वरी माता, दंतेश्वरी माई और मदकू द्वीप जैसे तीर्थस्थल प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर के अभिन्न अंग हैं. मेले केवल धार्मिक आयोजन नहीं होते, बल्कि समाज और समुदाय को जोड़ने का माध्यम भी होते हैं. ये परंपराओं को जीवंत बनाए रखते हैं और नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ते हैं - रामेन डेका, राज्यपाल

इस दौरान राज्यपाल ने कहा कि यह मेला प्रदेश के धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ आर्थिक विकास में भी अहम भूमिका निभाता है.श्रद्धालुओं और आयोजन से जुड़े सभी लोगों से आग्रह किया कि हम अपनी संस्कृति और परंपराओं को सहेजें और आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाएं, क्योंकि हमारी सांस्कृतिक विरासत ही हमारी असली पहचान है.

इस अवसर पर दंडी स्वामी डॉ. इंदुभवानंद जी महाराज, महंत साध्वी प्रज्ञा भारती जी महाराज, बालयोगेश्वर बालयोगी रामबालक दास जी महाराज, धर्मस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू, रायपुर आयुक्त महादेव कावरे, छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के एमडी विवेक आचार्य, गरियाबंद कलेक्टर दीपक कुमार अग्रवाल, साधु-संत, गणमान्य अतिथि समेत नागरिक उपस्थित थे.

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रायपुर : छत्तीसगढ़ के पवित्र त्रिवेणी संगम, राजिम के तट पर आयोजित राजिम कुंभ कल्प का भव्य शुभारंभ हुआ. राजिम में आयोजित 15 दिवसीय आयोजन के उद्घाटन अवसर पर राज्यपाल रामेन डेका मुख्य अतिथि थे. मेले के शुभारंभ पर राज्यपाल सहित साधु-संतों और अतिथियों ने भगवान राजीव लोचन की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर प्रदेश की सुख-समृद्धि और खुशहाली की प्रार्थना की. इस दौरान राज्यपाल रामेन डेका ने कहा कि महानदी, पैरी और सोंढूर के संगम पर स्थित यह पावन भूमि सदियों से संतों और भक्तों का केंद्र रही है. राजिम कुंभ कल्प हमारी समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का जीवंत प्रतीक है, जो न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि समाज में एकता, समरसता और परंपराओं के संरक्षण का संदेश भी देता है.

क्या है राजिम का महत्व : राजिम का ऐतिहासिक महत्व बताते हुए राज्यपाल रामेन डेका ने कहा कि यह क्षेत्र भगवान राजीव लोचन मंदिर, कुलेश्वर महादेव, रामचंद्र पंचेश्वर महादेव, भूतेश्वर महादेव और सोमेश्वर महादेव जैसे प्राचीन मंदिरों का धाम है. पंचकोशी यात्रा में पटेश्वर, चंपेश्वर, ब्रह्मनेश्वर, फणीश्वर और कोपेश्वर महादेव शामिल हैं, जो श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं. इस वर्ष का राजिम कुंभ कल्प इसलिए भी विशेष है क्योंकि ये उसी समय आयोजित हो रहा है जब प्रयागराज में महाकुंभ का भव्य आयोजन हो रहा है. प्रयागराज में जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है. वहीं राजिम में महानदी, पैरी और सोंढूर का संगम होता है. इसीलिए इसे छत्तीसगढ़ का प्रयागराज कहा जाता है.

छत्तीसगढ़ की भूमि सदियों से धार्मिक पर्यटन और मेलों की समृद्ध परंपरा को संजोए हुए है. महामाया मंदिर, बम्लेश्वरी माता, दंतेश्वरी माई और मदकू द्वीप जैसे तीर्थस्थल प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर के अभिन्न अंग हैं. मेले केवल धार्मिक आयोजन नहीं होते, बल्कि समाज और समुदाय को जोड़ने का माध्यम भी होते हैं. ये परंपराओं को जीवंत बनाए रखते हैं और नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ते हैं - रामेन डेका, राज्यपाल

इस दौरान राज्यपाल ने कहा कि यह मेला प्रदेश के धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ आर्थिक विकास में भी अहम भूमिका निभाता है.श्रद्धालुओं और आयोजन से जुड़े सभी लोगों से आग्रह किया कि हम अपनी संस्कृति और परंपराओं को सहेजें और आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाएं, क्योंकि हमारी सांस्कृतिक विरासत ही हमारी असली पहचान है.

इस अवसर पर दंडी स्वामी डॉ. इंदुभवानंद जी महाराज, महंत साध्वी प्रज्ञा भारती जी महाराज, बालयोगेश्वर बालयोगी रामबालक दास जी महाराज, धर्मस्व विभाग के अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू, रायपुर आयुक्त महादेव कावरे, छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के एमडी विवेक आचार्य, गरियाबंद कलेक्टर दीपक कुमार अग्रवाल, साधु-संत, गणमान्य अतिथि समेत नागरिक उपस्थित थे.

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