कोरबा: कोरबा का समृद्ध जंगल हाथियों को बेहद पसंद आ रहा है. कुछ समय पहले तक कटघोरा वन मंडल के इलाकों में हाथी प्रवास करते थे और पड़ोसी राज्यों से आकर वापस लौट जाते थे, लेकिन अब यही हाथियों के लिए एक तरह का स्थाई निवास बन गया है. लेमरू हाथी रिजर्व और हसदेव अरण्य क्षेत्र में आने वाले घने और बड़े जंगल हाथियों को भा रहे हैं. पड़ोसी राज्यों में जंगल का सिमटता दायरा भी कटघोरा वनमंडल में हाथियों के मौजूदगी की एक प्रमुख कारण है. वर्तमान में कटघोरा वनमंडल के 50 हाथी तीन से चार अलग-अलग दलों में विचरण कर रहे हैं. यहां इतनी अधिक तादाद में हाथी पहले कभी नहीं रहे. इन्हें संभालने के साथ ही हाथी मानव द्वंद रोकना भी अब वन विभाग लिए एक बड़ी चुनौती है.
कोरबी के ग्रामीण इलाकों में भी हाथी मौजूद: कटघोरा वनमंडल के पसान, कोरबी और केंदई रेंज में हाथियों की लगातार मौजूदगी बनी हुई है. यहां घने जंगल हैं. जहां हाथियों को अधिक मात्रा में खाना और पानी मिल जाता है. इसके कारण हाथी यहां स्थाई तौर पर निवास कर रहे हैं. इन क्षेत्रों के ग्रामीणों को भी लगातार सतर्क किया जा रहा है. लोगों को जंगल के आसपास जाने हैं और ऐसी कोई भी परिस्थिति से बचने की हिदायत दी जाती है, जिससे कि हाथी मानव द्वंद की गुंजाइश हो.
हाथियों के मौजूदगी जंगल के समृद्ध होने का प्रमाण है. यह हमारे लिए शुभ संकेत है. हाथी एक अंब्रेला स्पीशीज होता है. वह जहां जाता है, जंगल का दायरा बढ़ता है. वर्तमान में कटघोरा वनमंडल में लगभग 50 हाथी मौजूद है, लेकिन उन्हें संभालना भी किसी चुनौती की तरह है. जनहानि या किसी भी तरह का नुकसान होने पर मुआवजा प्रकरण तैयार करते हैं, लेकिन लोगों को भी चाहिए कि वह हाथियों को किसी तरह का नुकसान न पहुंचाए. उन्हें परेशान ना करें, हाथी बेहद बुद्धिमान जानवर होते हैं और वह भूलते नहीं. अगर उन्हें नुकसान पहुंचाया जाएगा तो वह भी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं. हमारा प्रयास है कि लोगों को जागरूक किया जाए और हाथियों के लिए उपयुक्त वातावरण का निर्माण किया जाए. -कुमार निशांत, डीएफओ, कटघोरा
लोगों को हाथियों के साथ रहना सिखाना होगा: वन विभाग के लिए हाथी प्रबंधन का काम करने वाले एलीफेंट एक्सपर्ट प्रभात दुबे का कहना है, "छत्तीसगढ़ के लिए हाथी अभी नया है. इतिहास में 1930 तक उत्तर छत्तीसगढ़ में हाथियों का उल्लेख मिलता है, लेकिन इसके बाद हाथी यहां से चले गए थे. इसके बाद साल 1986 में हाथी आए और साल 2000 के बाद से छत्तीसगढ़ में हाथियों की लगातार मौजूदगी बनी हुई है. पूरे छत्तीसगढ़ में लगभग 250 से 300 के बीच हाथियों की संख्या है. हाथी एक बार में एक ही बच्चे को जन्म देते हैं. दूसरे बच्चे का जन्म 5 साल बाद ही होता है, इसलिए इनकी संख्या बहुत तेजी से नहीं बढ़ती. हाथियों की संख्या फिलहाल छत्तीसगढ़ में स्थिर बनी हुई है."
छत्तीसगढ़ के लिए हाथी नए हैं, इसलिए लोग उनके साथ एडजस्ट नहीं कर पा रहे. लोगों को सिखाना होगा कि हाथियों के साथ कैसे रहना है. हाथी बेहद बुद्धिमान जानवर होता है. चिंपांजी को मानव का सबसे करीबी जीव माना जाता है. जिसका 98% डीएनए मानव से मेल खाता है. हाथी की तुलना चिंपांजी से की जाती है. वह बेहद शांत स्वभाव के होते हैं और किसी भी चीज को भूलते नहीं. विश्व में अब केवल हाथियों के दो ही प्रजातियां बची है. एक समय था जब हाथियों की डेढ़ सौ प्रजातियां थी. लेकिन अब केवल दो है. एशिया में जितने भी हाथी पाए जाते हैं. भारत उनका प्रतिनिधित्व करता है. एशिया के कुल हाथियों में से 60% भारत में हैं. इसलिए इनका संरक्षण भी बेहद जरूरी है. हाथी पर्यावरण के लिए बेहद उपयोगी जानवर है. इसलिए इनका संरक्षण जरूरी है. लोगों को हाथियों के साथ रहने के तरीकों को सिखाना होगा. -प्रभात दुबे, एलीफेंट एक्सपर्ट
करंट से हुई हाथी की मौत, तो जनहानि भी जारी: हाथियों से बचने के लिए कई बार ग्रामीण शॉर्टकट अपनाते हैं. वह अपने खेत में करंट लगा देते हैं, जिससे हाथियों की मौत हुई है. कटघोरा वनमंडल में दो से तीन मामले ऐसे आए हैं. जब करंट लगने से हाथी की मौत हुई है. एक हाथी की मौत तब हो गई, जब बिजली विभाग का हाई टेंशन तार काफी नीचे झूल रहा था. इसके संपर्क में आने से हाथी की मौत हुई थी. जबकि फसल और जनहानि के मामले भी सामने आए हैं. वनांचल में निवास करने वाले ग्रामीण वनोपज पर आश्रित रहते हैं. वह वनों की ओर जाते हैं और हाथी से उनका सामना होता है. तब जनहानि भी होती है. हालांकि वन विभाग का कहना है कि जानहानी और किसी भी तरह का नुकसान होने पर वह तत्काल मुआवजा प्रकरण तैयार करते हैं.