कोरबा: भगवान शिव का पवित्र माह सावन माह शुरू हो चुका है. इस बीच शिवभक्त सावन के सोमवार को भोलेनाथ को जल अर्पण करने के लिए कांवड़ लेकर प्रसिद्ध शिवधाम पहुंच रहे हैं. छत्तीसगढ़ के कोरबा के गांव कनकी में मौजूद कनकेश्वर धाम में इन दिनों शिवभक्तों की भीड़ देखने को मिल रही है. कोरबा का कनकेश्वर धाम छत्तीसगढ़ का बाबा धाम कहलाता है. सर्वमंगला मंदिर हसदेव नदी के किनारे स्थित मंगल मंदिर से भक्त कांवड़ में जल लेकर लगभग 15 किलोमीटर की पद यात्रा कर कनकेश्वरधाम पहुंचते हैं और भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं. लंबे समय से यह परंपरा चली आ रही है. कनकेश्वर धाम का ऐतिहासिक महत्व है. पुरातत्व और धार्मिक दोनों ही तरह से कनकेश्वर धाम में कई मान्यताएं हैं.
सावन में सुरक्षा के खास इंतजाम: शिव आराधना के लिए सावन विशेष माना जाता है. इस बार भक्तों को पांच सोमवार तक उपवास रखने का सौभाग्य मिला है. शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की बढ़ने वाली भीड़ को लेकर व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की गई है. प्राचीन शिवालयों में कनकेश्वर धाम कनकी में माह भर मेले जैसा वातावरण बन रहता है. सोमवार को सर्वाधिक भीड़ रहती है. कोरबा शहर के सर्वमंला मंदिर से जल लेकर श्रद्धालु पैदल यात्रा करते हुए मंदिर पहुंचते हैं. यहां लगने वाले मेले में व्यापारी दुकान लगाते हैं.
भक्तों की हर मनोकामना होती है पूरी: इस बारे में ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान मंदिर के पुजारी पुरुषोत्तम बताते हैं, "हमारी कई पीढ़ियां इसी मंदिर से जुड़ी हुई है. सालों से हम कनकेश्वर धाम की सेवा करते आ रहे हैं. कनकी के भोलेनाथ को स्थापित नहीं किया गया है. वह स्वयंभू हैं. वह यहां स्वयं प्रकट हुए हैं, जिसके कारण भक्तों की कनकेश्वर धाम के प्रति खास आस्था है. लोग अपनी आस्था से यहां आते हैं और सच्चे मन से जल अर्पण करते हैं. जो भी पूरी श्रद्धा के साथ कनकेश्वर धाम आता है. भोलेनाथ उसकी मनोकामना पूरी करते हैं."
गाय शिवलिंग पर करती थी दूध से अभिषेक: पुरातत्व संग्रहालय में पदस्थ पुरातत्व मार्गदर्शन हरि सिंह कनकी से ईटीवी भारत ने इस शिव मंदिर के बारे में जानने की कोशिश की. उन्होंने बताया, "वर्तमान में जो पुजारी वहां हैं, उनकी 18वीं पीढ़ी पहले उनके पूर्वज को जमीन से शिवलिंग प्राप्त हुआ था. गाय एक स्थान पर जाकर एक पत्थर पर अपना दूध अर्पण कर देती थी. उसके थन से अपने आप ही दूध बहकर इस स्थान का अभिषेक करता था, लेकिन इस गाय के मालिक का गांव वाले से झगड़ा हुआ था कि कोई उसकी गाय को बिना बताए दूह लेता है. ऐसा कई बार हुआ, एक बार वर्तमान पुजारी पुरुषोत्तम के 18वीं पीढ़ी पहले वाले परदादा को सपना आया. सपने में शिवजी बोले, "वह गाय मेरी भक्त है और मैं स्वयं वहां विराजमान हूं." जब वहां की खुदाई की गई तब शिवलिंग पाया गया. तभी से इस मंदिर की ख्याति है. मंदिर का निर्माण कर पूजा-अर्चना तब से शुरू कर दी गई. इस मंदिर में कुछ मूर्तियां हैं, जो 11वीं और 12वीं शताब्दी की हैं. उन मूर्तियों का पौराणिक महत्व भी है."
प्रवासी पक्षियों का भी है बरेसा: धार्मिक महत्व के साथ ही कनकी का शिव मंदिर प्राकृतिक महत्व का भी एक केंद्र है. प्रत्येक साल जो प्रवासी पक्षी यहां आते हैं. वह मंदिर के आसपास मौजूद पेड़ पर ही अपना घोंसला बनाते हैं. यहां-वहां प्रजनन करते हैं और फिर मीलों की यात्रा कर वापस लौट जाते हैं. प्रवासी पक्षी वैसे तो मानसून का संदेश लेकर आते हैं, लेकिन वह मंदिर के आसपास ही अपना घोंसला बनाते हैं. इसलिए इन्हें भी शिव भक्त भोले शंकर की आस्था से जोड़कर देखते हैं.