खेतड़ी : राजस्थान या थार के इतिहास का सबसे भयंकर अकाल वर्ष 1898 में पड़ा था. विक्रम संवत 1956 होने के कारण इसे 'छप्पनिया अकाल' भी कहा जाता है. इस अकाल से निपटने के लिए खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने सरकारी खर्चे के साथ-साथ व्यक्तिगत खर्च में से भी अकाल पीड़ितों की सहायतार्थ राशि वितरित की थी. नियमित रूप से अन्न एवं वस्त्र की व्यवस्था की गई. भुना अन्न बांटने की अलग से व्यवस्था की गई. अकाल राहत के अन्तर्गत अकाल पीड़ितों को रोजगार के लिए निर्माण कार्य शुरू किए गए. नि:शक्त जनों के लिए नि:शुल्क रहने की व्यवस्था की गई.
स्वामी विवेकानंद व राजा अजीत सिंह पर शोध कर चुके डॉ. जुल्फिकार भीमसर के अनुसार किसानों को कम ब्याज पर रुपए उधार देने के लिए कोर्ट फीस माफ की गई. बाहर से अनाज लाने वाले ऊंटों पर से 'खूंटा बंदी' नाम का टैक्स भी समाप्त किया गया. माल गुजारी की बकाया वसूली करने के लिए प्रचलित मुकदमा फीस समाप्त कर दी और कम वेतन प्राप्त करने वाले कर्मचारियों को दो महीने का अग्रिम वेतन भुगतान की व्यवस्था की गई.
मनुष्यों के साथ ही जानवरों, पशु - पक्षियों की सुरक्षा के लिए भी राजा अजीत सिंह ने प्रयास किए. जानवरों के लिए ठिकाने द्वारा चारे की व्यवस्था की गई. योग्य, विद्वान, गुणी या साधु, संन्यासी के आने पर खबर लगते ही पुण्य विभाग सक्रियता से आतिथ्य सत्कार के लिए उपस्थित होता था. मंदिरों में दोनों समय भोजन की व्यवस्था रहती थी. कृषि विकास एवं पेयजल अभाव को दूर करने के लिए अजीत सिंह ने अभिनव प्रयास किए. वर्षा जल के ठहराव के लिए डाडा गांव के नजदीक एक झील का निर्माण करवाया.
खेतड़ी के 8वें नरेश थे राजा अजीत सिंह : राजा फतेह सिंह की मृत्यु के बाद अजीत सिंह गद्दी पर बैठे. उनका जन्म 16 अक्टूबर 1861 में झुन्झुनू के अलसीसर में हुआ था. उनके पिता का नाम छान्तु सिंह और मां उदावत थीं. मात्र छह वर्ष की आयु में अजीत सिंह के सिर से माता-पिता का साया उठ गया. खेतड़ी नरेश फतेह सिंह भी नि:संतान थे. मृत्यु पूर्व अलसीसर प्रवास के दौरान उन्होंने अजीत सिंह को देखा और अपना दत्तक पुत्र मान लिया था. अजीत सिंह 1870 में खेतड़ी के राजा बने.