बीकानेर. सनातन धर्म में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को वट सावित्री व्रत किया जाता है. वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सौभाग्य के लिए वट वृक्ष या बरगद की पूजा करती हैं. हालांकि, उत्तर भारत में ज्येष्ठ अमावस्या और दक्षिण भारत में ज्येष्ठ पूर्णिमा को यह व्रत किया जाता है. पंडित राजेन्द्र किराडू कहते हैं कि शास्त्रों में कहा जाता है कि इस दिन पतिव्रता सावित्री ने अपने पति को यमपाश से छुड़ाया था. समर्थ स्त्रियां तो यह व्रत तीन दिन के लिए (ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से ज्येष्ठ अमाव्स्या अथवा ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी से ज्येष्ठ पूर्णिमा तक) रखती हैं. इस व्रत के दिनों में स्त्रियां इस मंत्र से वट सिंचन करती हैं.
पति की दीर्घायु की कामना : आमतौर पर जून में ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा आती है, जिसे वट पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस दिन व्रत करने वाली स्त्री लक्ष्मी-नारायण की पूजा के अलावा पति की लंबी आयु के लिए बरगद के वृक्ष की उपासना करती हैं. वट पूर्णिमा व्रत सौभाग्य, सुख, धन, पति को दीर्घायु का वरदान प्रदान करता है. मान्यता है कि ज्येष्ठ पूर्णिमा पर किए गए दान के पुण्य का असर जीवनभर रहता है.
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यमराज से छुड़ाए प्राण : मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने वाली सुहागिन महिलाएं जीवन में सुख, समृद्धि, अखंड सौभाग्य एवं मंगलमय जीवन व्यतीत करती हैं. मान्यता है कि इसी दिन यमराज ने सावित्री को उसके पति के प्राण लौटाए थे, इसीलिए यह भी कहा जाता है कि एक पतिव्रता स्त्री जब अपने हठ और तप का प्रयोग सदकार्य के लिए करती है तो उसको टालने का सामर्थ्य खुद देवता भी नहीं जुटा पाते हैं. पूर्णिमा के दिन गंगा, नर्मदा, या किसी भी पवित्र नदी के जल से स्नान करना चाहिए. इस दिन सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का अभिषेक दक्षिणावर्ती शंख से करते हुए मिठाई का भोग लगाएं और घी का दीपक जलाएं. 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र' का जप करते हुए आरती करें. हनुमान चालीसा का पाठ करें. गायों की सेवा करना चाहिए.