वाराणसी : अंतरराष्ट्रीय एड्स दिवस 1 दिसंबर को हर साल मनाया जाता है. इसे मनाए जाने का मुख्य उद्देश्य एड्स के विषय में लोगों को जागरूक करना है. साथ ही, इसके बारे में लोगों को जानकारी प्रदान करने के साथ ही इससे बचाव के बारे में भी जानकारी देना है. इस बीमारी से पीड़ित लोगों में इम्युनिटी तेजी से कम होती जाती है. एक वक्त ऐसा भी होता है कि उसकी मृत्यु तक हो जाती है. ऐसे में आयुर्वेद में इम्युनिटी बढ़ाने और इस बीमारी से लड़ने के लिए औषधियां बताई गई हैं. इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत किया जा सकता है.
एड्स यानी Acquired Immuno Deficiency Syndrome, एचआईवी नामक विषाणु से होता है. एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति कई वर्षों (6 से 10 वर्ष) तक सामान्य प्रतीत होता है और सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है, लेकिन दूसरों को बीमारी फैलाने में सक्षम होता है. एड्स नाम तो पिछले कुछ दशकों में मिला, लेकिन इस बीमारी के लक्षणों का उल्लेख 5 हजार से भी अधिक आयुर्वेद ग्रंथों में मिलता है. इस बीमारी में जो लक्षण होते है हूबहू वैसे ही लक्षणों जैसे रोग का वर्णन 'ओजक्षय' के नाम से किया गया है.
व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता हो जाती है कम : चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय, वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य डॉ. अजय कुमार ने इस बारे में बताते हैं, एड्स यानी Acquired Immuno Deficiency Syndrome, में व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. एक डेटा के मुताबिक, अभी भी हमारे देश में लगभग 25 लाख लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं. इसमें जितनी भी समस्याएं शरीर में होती है वे सभी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से ही होती है.
व्यक्ति पर टीबी सबसे पहले करता है अटैक : उन्होंने बताया कि इसके प्रमुख लक्षणों में महीनों तक बुखार आना, डायरिया की शिकायत रहना और वजन तेजी से गिरना शामिल है. सबसे अधिक असर इन पर टीबी का होता है. टीबी के बैक्टीरिया ठीक वैसे ही होते हैं. जैसे ही किसी व्यक्ति की इन्युनिटी कम होती है. ये उस पर अटैक कर देते हैं. कोविड के समय में भी हमने देखा कि हमने इम्युनिटी बढ़ाने पर फोकस किया. इससे भारत में अन्य देशों की तुलना में बहुत ही कम लोगों की मृत्यु हुई. लोग बहुत ही जल्द रिकवर भी होने लगे.
सबसे जरूरी होता है इम्युनिटी का बढ़ाना : डॉ. अजय कुमार ने बताया कि एड्स के रोगियों में सबसे अधिक जरूरी होता है उनकी इम्युनिटी को बढ़ाना. आयुर्वेद में इम्युनिटी बढ़ाने की बहुत सी दवाएं हैं. घरेलू और शास्त्रीय औषधियां इसमें बहुत काम आती हैं. घरेलू औषधियों में तुलसी, अदरक, मारीच, गुडुची या गिलोय का प्रयोग किया जा सकता है. इसके साथ ही अगर आप बीमारी से ग्रस्त हैं तो अच्छा होगा कि आप किसी चिकित्सक से सलाह लें. बहुत सी शास्त्रीय औषधियां होती हैं जो इम्युनिटी बढ़ाने में मददगार होती है. इसमें अमृतारिष्ट, अमृतादि क्वाथ, गुडुची या गिलोय की अमृता सत्व के साथ मृगांग रस, राजमृगांक रस बहुत ही उपयोगी साबित होती हैं.
पीड़ितों की संख्या में दुनिया में भारत तीसरे नंबर पर: उन्होंने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक, अभी भी देश में 15 से 49 वर्ष की उम्र के बीच के लगभग 25 लाख लोग एड्स से प्रभावित हैं. यह आंकड़ा विश्व में एड्स प्रभावित लोगों की सूची में तीसरे स्थान पर आता है. राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (एनएसीओ) के मुताबिक, साल 2023 में भारत में एचआईवी/एड्स से पीड़ित लोगों की संख्या 3.14 मिलियन थी. भारत में एचआईवी/एड्स से पीड़ित लोगों की संख्या दुनिया में तीसरी सबसे ज्यादा है. हालांकि, यहां एड्स की व्यापकता दर कई देशों की तुलना में कम है.
एड्स बीमारी में शरीर में होते हैं ये परिवर्तन
- एचआईवी (Human Immunodeficiency Virus) एक वायरस है जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला करता है. यह टी-कोशिकाओं को नष्ट करके प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता है.
- एचआईवी संक्रमण के बाद, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है और यह अन्य संक्रमणों से लड़ने में असमर्थ हो जाता है.
- एचआईवी संक्रमण के कारण, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होने से, टीबी, संक्रमण, और कुछ कैंसर जैसी बीमारियों से पीड़ित होने की आशंका बढ़ जाती है.
- एचआईवी संक्रमण के बाद, शरीर में कई तरह के संक्रमण हो सकते हैं, जिन्हें अवसरवादी संक्रमण कहा जाता है. ये संक्रमण कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली पर हावी हो जाते हैं और बीमारी का रूप ले लेते हैं.
इन लोगों को होता है सबसे अधिक एड्स का खतरा
- एक से अधिक लोगों से असुरक्षित यौन संबंध रखने वाले व्यक्ति को.
- नशीली दवाइयां इन्जेकशन के द्वारा लेने वाला व्यक्ति.
- यौन रोगों से पीड़ित व्यक्ति.
- संक्रमित पिता/माता से पैदा होने वाले बच्चे को.
- बिना जांच किया हुआ रक्त ग्रहण करने वाला व्यक्ति.
एड्स के प्रमुख लक्षण क्या होते हैं - एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति में संक्रमण के 7 से 10 साल बाद विभिन्न लक्षण प्रमुख रूप से दिखाई पडते हैं
1. लगातार कई-कई हफ्ते अतिसार होना.
2. लगातार कई-कई हफ्ते बुखार रहना.
3. हफ्तों तक खांसी आते रहना.
4. अकारण वजन घटते जाना.
आयुर्वेद में इस बीमारी का मिलता है उल्लेख: डॉ. अजय कुमार बताते हैं कि एड्स नाम से ही स्पष्ट है की यह इम्युनिटी अर्थात व्याधिक्षमत्व कम होने से होने वाली बीमारी है. आयुर्वेद के सभी ग्रंथों में इसका उल्लेख व्याधिक्षमत्व और ओज व्यापत के अंतर्गत किया गया है. ग्रंथों में इस बीमारी के तीन चरणों का उल्लेख किया गया है- ओज विस्रन्स, ओज व्यापत और ओजक्षय. वे बताते हैं कि, ओज विस्रन्स और ओज व्यापत की अवस्था में रोगी में कुछ बल बचा रहता है, लेकिन ओजक्षय की अवस्था में पूर्ण ओज का क्षय हो जाता है, जिससे मृत्यु तक हो जाती है, यही एड्स की अंतिम अवस्था है.
ओजवर्धक दवाइयों का होता है प्रयोग: उन्होंने बताया कि, आयुर्वेद में इस बीमारी के इलाज के लिए ओजवर्धक दवाइयों का प्रयोग होता है. ये दवाइयां रोगी की आयु और रोग के चरण पर निर्भर करती हैं. इस रोग में कुशल वैद्य की देखरेख में अमृता सत्व, आमलकी चूर्ण, शतावरी मूल चूर्ण, कपिकछू चूर्ण, रुदन्ति चूर्ण आदि से लाभ मिलता है. इसके अलावा स्वर्ण वसंतमालती रस, सिद्ध मकरध्वज, रसराज रस, वज्र भस्म, स्वर्ण भस्म, रौप्य भस्म और यसद भस्म आदि का उपयोग एड्स के रोगी के लिए लाभप्रद होता है. इनसे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर रोगों से लड़ने के लिए तैयार हो जाता है.
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