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उत्तराखंड में यहां गिरा था माता सती का धड़, चंद्रबदनी रूप में विराजमान हैं मां भगवती - Shardiya Navratri 2024 - SHARDIYA NAVRATRI 2024

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रबदनी शक्तिपीठ के करें दर्शन, श्रद्धालु की हर मुराद होती है पूरी, यहां मां सती का गिरा था धड़

SHARDIYA NAVRATRI 2024
मां चंद्रबदनी मंदिर (photo- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 5, 2024, 7:16 AM IST

टिहरी: मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना के दिन यानी शारदीय नवरात्रि चल रही है. इसी बीच हम आपको मां सती के एक शक्तिपीठ मां चंद्रबदनी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं. यह मंदिर समुद्रतल से 2,277 मीटर ऊपर चंद्रकूट पर्वत पर स्थित है. कहा जाता है कि चंद्रबदन होने से श्रद्धालु मां की मूर्ति के दर्शन नहीं करते हैं. पुजारी भी आंखों पर पट्टी बांधकर मां चंद्रबदनी की पूजा-अर्चना करते हैं. वहीं मान्यता है कि अगर जो श्रद्धालु मां की मूर्ति के दर्शन करता है, वह अंधा हो जाता है.

चंद्रकूट पर्वत पर गिरा था मां सती का धड़: जब भगवान विष्णु ने मां सती के टुकड़े किए थे, तो मां सती का धड़ चंद्रकूट पर्वत पर गिरा था, इसलिए यहां का नाम चंद्रबदनी मंदिर पड़ा. जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने इस शक्तिपीठ की स्थापना की थी. चंद्रबदनी मंदिर का वर्णन केदारखंड के 141 वें अध्याय में मिलता है. चंद्रबदनी मंदिर में देवी मां का श्रीयंत्र है. ऊपर की ओर स्थित यंत्र हमेशा ढंका रहता है. मंदिर के गर्भगृह में एक शिला पर इस श्रीयंत्र के ऊपर चांदी का बड़ा छत्र है.

उत्तराखंड में यहां गिरा था मां सती का धड़ (video-ETV Bharat)

चंद्रबदनी मंदिर में आकर श्रद्धालुओं की पूरी होती है मुराद: प्राचीन ग्रंथों में यहां का उल्लेख भुवनेश्वरी शक्तिपीठ नाम से है. शक्तिपीठ के गर्भगृह में काले पत्थर के श्रीयंत्र के दर्शन करने और पूजा में प्रयुक्त शंख का पानी पीने का बड़ा महत्व माना जाता है. महाभारत की एक कथा के अनुसार चंद्रकूट पर्वत पर अश्वत्थामा को फेंका गया था. चिरंजीव अश्वत्थामा अभी भी हिमालय में विचरण करते हैं.

शक्तिपीठों की कैसे हुई स्थापना: हिंदू कथा के अनुसार चंद्रबदनी मंदिर की कहानी उस समय की है, जब माता सती के पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया था. इस अवसर पर भगवान शिव को अपमानित करने के लिए राजा दक्ष ने भगवान शिव को यज्ञ का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित नहीं किया था. देवी सती पिता द्वारा भगवान शिव का अपमान सहन नहीं कर सकीं और वो आग में कूद गई.

जहां मां सती के टुकड़े गिरे वो बनें शक्तिपीठ: बाद में क्रोध में आकर भगवान शिव ने सती के जले हुए शरीर को उठाया और उनके निवास स्थान की ओर चल पड़े. भगवान शिव के हिंसक रूप से पृथ्वी हिल गई. ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवताओं ने भगवान शिव को समझाया, लेकिन महादेव नहीं मानें. जिससे भगवान विष्णु ने आखिरकार अपने चक्र से मां सती के जले हुए शरीर के कई टुकड़े कर दिए. देवी सती के शरीर के टुकड़े अलग-अलग स्थानों पर गिरे थे, जिन्हें अब शक्तिपीठों के नाम से जाना जाता है.

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चंद्रकूट पर्वत पर गिरा था मां सती का धड़: जब भगवान विष्णु ने मां सती के टुकड़े किए थे, तो मां सती का धड़ चंद्रकूट पर्वत पर गिरा था, इसलिए यहां का नाम चंद्रबदनी मंदिर पड़ा. जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने इस शक्तिपीठ की स्थापना की थी. चंद्रबदनी मंदिर का वर्णन केदारखंड के 141 वें अध्याय में मिलता है. चंद्रबदनी मंदिर में देवी मां का श्रीयंत्र है. ऊपर की ओर स्थित यंत्र हमेशा ढंका रहता है. मंदिर के गर्भगृह में एक शिला पर इस श्रीयंत्र के ऊपर चांदी का बड़ा छत्र है.

उत्तराखंड में यहां गिरा था मां सती का धड़ (video-ETV Bharat)

चंद्रबदनी मंदिर में आकर श्रद्धालुओं की पूरी होती है मुराद: प्राचीन ग्रंथों में यहां का उल्लेख भुवनेश्वरी शक्तिपीठ नाम से है. शक्तिपीठ के गर्भगृह में काले पत्थर के श्रीयंत्र के दर्शन करने और पूजा में प्रयुक्त शंख का पानी पीने का बड़ा महत्व माना जाता है. महाभारत की एक कथा के अनुसार चंद्रकूट पर्वत पर अश्वत्थामा को फेंका गया था. चिरंजीव अश्वत्थामा अभी भी हिमालय में विचरण करते हैं.

शक्तिपीठों की कैसे हुई स्थापना: हिंदू कथा के अनुसार चंद्रबदनी मंदिर की कहानी उस समय की है, जब माता सती के पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया था. इस अवसर पर भगवान शिव को अपमानित करने के लिए राजा दक्ष ने भगवान शिव को यज्ञ का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित नहीं किया था. देवी सती पिता द्वारा भगवान शिव का अपमान सहन नहीं कर सकीं और वो आग में कूद गई.

जहां मां सती के टुकड़े गिरे वो बनें शक्तिपीठ: बाद में क्रोध में आकर भगवान शिव ने सती के जले हुए शरीर को उठाया और उनके निवास स्थान की ओर चल पड़े. भगवान शिव के हिंसक रूप से पृथ्वी हिल गई. ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवताओं ने भगवान शिव को समझाया, लेकिन महादेव नहीं मानें. जिससे भगवान विष्णु ने आखिरकार अपने चक्र से मां सती के जले हुए शरीर के कई टुकड़े कर दिए. देवी सती के शरीर के टुकड़े अलग-अलग स्थानों पर गिरे थे, जिन्हें अब शक्तिपीठों के नाम से जाना जाता है.

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