श्रीनगर: गढ़वाल का प्रसिद्ध खैरालिंग कौथिग बेहतरीन सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ सम्पन्न हो गया है. इस वर्ष मेले में जबरदस्त भीड़भाड़ रही. मुंडेश्वर नामक स्थान में लगने वाला यह मेला खैरालिंग कौथिग के नाम से जाना जाता है. पहले यह मेला पशु बलि के लिए कुख्यात था, लेकिन अब यहां पशुओं की बलि नहीं दी जाती है. यहां सात्विक पूजा से देव अर्चना की जाती है. इस देव पूजा में कल्जीखाल, द्वारीखाल,पौड़ी, कोट,पाबौ,एकेश्वर और जयहरीखाल विकास खण्डों के लोग सम्मिलित होते हैं.
खैरालिंग कौथिग दो दिन का होता है. पहले दिन मेले की जात होती है. जिसमें मंदिर में ध्वजाएं चढ़ाई जाती हैं. इस वर्ष थैर,मिरचोड़ा और पपसोला तीन गांवों के ग्रामीणों ने ध्वजाएं चढ़ाई. अब ध्वजा लाने का कौशल और उन्हें चढ़ाना बड़ा कौतुक्तता पूर्ण होता है. मेले के दूसरे दिन को कौथिग कहा जाता है. पहले कौथिग के दिन ही पशुओं की बलि दी जाती थी, अब पशु बलि पूरी तरह से बंद है. सात्विक पूजा होती है. इस वर्ष मेले के दूसरे गढ़कला सांस्कृतिक संस्थान के कलाकारों ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी. लोकगायक अनिल बिष्ट के गीतों में दर्शकों ने खूब लुत्फ उठाया.
खैरालिंग कौथिग के समापन के अवसर पर पहुंचे क्षेत्रीय विधायक राजकुमार पोरी ने कहा यह सांस्कृतिक मेले के रूप में विकसित हो रहा है. उन्होंने कहा इस मेले के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ- साथ खेलकूद की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जा रही हैं. पशु बलि बंद होने के बाद इस मेले का स्वरूप पूरी तरह से बदल गया है. मेले में आई शिवदेवी ने बताया हम लोग इस मेले में हर साल आते हैं. मेरे मायके और ससुराल दोनों का आराध्य देव खैरालिंग ही हैं. हमारे सभी शुभकार्यों में सबसे पहले खैरालिंग की पूजा की जाती है. दिल्ली से आई श्रद्धालु माधवी ने कहा हमने गढ़वाल का यह प्रसिद्ध मेला पहली बार देखा है. यह बहुत ही लाजवाब है.