भरतपुर : घना के नाम से विख्यात केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान सीमित संसाधनों और बदलते पर्यावरणीय हालात के बावजूद अपनी विविधता को बनाए रखने का अनूठा उदाहरण है. महज 28.73 वर्ग किमी में फैला यह उद्यान न केवल राजस्थान की जैव विविधता का केंद्र है, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करते हुए भी पक्षियों, सरीसृपों और वनस्पतियों की असंख्य प्रजातियों को सुरक्षित आश्रय प्रदान कर रहा है.
घना का विशेष महत्व : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक मानस सिंह ने बताया कि जैव विविधता के मामले में न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे भारत में घना का एक विशेष स्थान है. इसकी समृद्धि का अंदाजा राजस्थान की तुलना में यहां मौजूद जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की प्रजातियों से लगाया जा सकता है.
- पक्षी प्रजातियां: राजस्थान में पक्षियों की कुल 510 प्रजातियां पाई जाती हैं. इनमें से लगभग 375 से अधिक प्रजातियां केवल घना में ही देखी गई हैं. इसका अर्थ है कि राज्य के अधिकांश पक्षी यहां का हिस्सा हैं.
- सरीसृप (रेंगने वाले जीव): राज्य में कुल 40 सरीसृप प्रजातियां दर्ज हैं, जिनमें से 25 से 29 प्रजातियां घना में मौजूद हैं.
- तितलियां: राजस्थान में तितलियों की 125 प्रजातियां दर्ज हैं. इनमें से 80 प्रजातियां घना में पाई जाती हैं.
- मेंढक: राजस्थान में कुल 14 मेंढक प्रजातियां हैं, जिनमें से 9 प्रजातियां यहां की दलदली भूमि में निवास करती हैं.
- कछुए: राज्य में कछुओं की 10 प्रजातियां दर्ज हैं, जिनमें से 8 प्रजातियां घना में पाई जाती हैं.
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घना एक मॉडल : निदेशक मानस सिंह ने बताया कि इतने छोटे क्षेत्र में इतनी समृद्ध जैव विविधता का होना यह दर्शाता है कि घना एक उत्कृष्ट पारिस्थितिकी तंत्र है. यहां पक्षियों, सरीसृपों, मेंढकों, कछुओं, और अन्य जीवों के लिए प्राकृतिक आवास, पर्याप्त भोजन और सुरक्षित वातावरण उपलब्ध है.
पुनर्स्थापन के प्रयास : अब घना में अब कुछ जीवों की प्रजातियों को पुनः स्थापित करने के लिए रिइंट्रोड्यूस प्रोग्राम चला रहे हैं. इसके तहत अब तक दो काले हिरण यहां लाए गए हैं. इन्होंने यहां पर बच्चों को भी जन्म दिया है. यह कार्यक्रम जैव विविधता के संरक्षण और पुनर्जीवन की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है.
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चुनौतियां और आवश्यक कदम : घना की जैव विविधता को बनाए रखने के लिए लगातार प्रयासों की आवश्यकता है.
- प्राकृतिक आवास की सुरक्षा: शहरीकरण और अवैध शिकार को रोकने के लिए सख्त कानून लागू करने की जरूरत है.
- शोध और अध्ययन: यहां मौजूद प्रजातियों पर वैज्ञानिक अध्ययन करके उनके संरक्षण के लिए बेहतर रणनीतियां बनाई जा सकती हैं.
- स्थानीय समुदाय की भागीदारी: आसपास के गांवों और समुदायों को जैव विविधता संरक्षण में शामिल करना आवश्यक है.
- पुनर्वास कार्यक्रम: विलुप्त हो रही प्रजातियों को पुनः स्थापित करने के लिए निरंतर प्रयास किए जाने चाहिए.