बीकानेर. सनातन धर्म में विवाहित महिलाओं के लिए करवा चौथ का पर्व सबसे ज्यादा महत्व रखता है. हिंदू हिन्दू धर्म में अखंड सुहाग की कामना को लेकर करवा चौथ के व्रत का महत्व है. इस दिन सुहागिन महिलाएं निराहार व्रत का पालन करती हैं. करवा चौथ के दिन संध्याकाल में चंद्रमा दर्शन से पहले अपने इष्ट देव की पूजा के साथ ही शिव परिवार की पूजा का विधान है. करवा चौथ व्रत में चंद्र दर्शन और चंद्र पूजन का खास महत्व है. इस बार करवा चौथ को कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी रविवार को उदया तिथि को होगी. करवा चौथ पूजन का मुहूर्त शाम 5.17 बजे से 6:33 मिनट तक है. और करवा चौथ का समय सुबह 5.17 बजे से शाम 7.29 बजे तक रहेगा. करवा चौथ व्रत के दिन चंद्रोदय का समय शाम 7 बजकर 29 मिनट तक है. हालांकि अलग- अलग स्थानों पर इसमें कुछ अंतर रहेगा.
महिलाओं के लिए साज-सज्जा का पर्व : विवाह के ठीक बाद पहले करवा चौथ के व्रत के दिन नव विवाहित महिलाओं में इस पर्व को लेकर खास उत्साह रहता है. सुहागन महिलाओं के लिए भी यह इतना ही महत्व रखता है. पति की लंबी उम्र की कामना के लिए स्त्रियां कठिन व्रत रखती हैं। करवा चौथ पूजन का मुहूर्त, चंद्र दर्शन और पूजन का महत्व है.
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सूर्योदय से चंद्रदर्शन तक व्रत : करवा चौथ व्रत सूर्योदय से पहले भोर में शुरू हो जाता है और चांद निकलने के बाद तक रहता है. व्रती सुहागिन महिलाएं चांद को अर्घ्य देने के बाद छलनी में दीपक रखकर चंद्रमा की पूजा करती हैं. हालांकि देश में कई स्थानों पर छलनी से पति के मुंह को देखने का भी रिवाज है. बाद में पति अपने हाथों से पानी पिलाता है और उसके बाद महिलाएं भोजन करती है.
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इष्ट के साथ शिव परिवार की पूजा : ज्योतिषाचार्य विष्णु व्यास कहते हैं कि संध्याकाल में चंद्रमा दर्शन से पहले अपने इष्ट देव की पूजा के साथ ही शिव परिवार की पूजा का विधान है. क्योंकि मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा करते हुए अखंड सुहाग की कामना की जाती है.