पटनाः बिहार में एक बार फिर कर्पूरी जयंती के बहाने अति पिछड़ा वोट बैंक को साधने की कोशिश जारी है. जदयू, राजद और बीजेपी तीनों 24 जनवरी को कर्पूरी जयंती का कार्यक्रम करने जा रही है. पूरा पटना कर्पूरी जयंती के पोस्टर से पट चुका है. बिहार में सभी दलों के लिए अति पिछड़ा वोट बैंक महत्वपूर्ण है. इसलिए कर्पूरी जयंती मनाना एक तरह से मजबूरी है.
बिहार में अति पिछड़ा वोट बैंकः बिहार में अति पिछड़ा वोट बैंक 36% के करीब है. जातीय सर्वे रिपोर्ट जारी होने के बाद नीतीश कुमार ने पहले से अति पिछड़ों को मिल रहे 18% आरक्षण को बढ़ाकर 25% कर दिया है. अति पिछड़ा वोट बैंक जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाता है. जननायक कर्पूरी ठाकुर अति पिछड़ा के बिहार में सबसे बड़े नेता माने जाते हैं. इसलिए सभी दलों की नजर इनपर है.
पिछले एक साल से तैयारीः जदयू, राजद, बीजेपी और अन्य दल भी अपने-अपने तरीके से कर्पूरी को अपना बता रहे हैं. जदयू की ओर से पटना के वेटनरी कॉलेज मैदान पर 24 जनवरी को भव्य तरीके से कार्यक्रम हो रहा है. हालांकि बीच में कार्यक्रम रद्द करने का भी फैसला लिया गया था, लेकिन नीतीश कुमार के फिर से राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद कार्यक्रम को करने का फैसला लिया गया. मिलर स्कूल मैदान पर बड़ा सा टेंट लगाया गया है, ठहरने की व्यवस्था रहेगी. पार्टी कार्यालय में भी इसकी व्यवस्था रहेगी.
"सीएम नीतीश कुमार ने जातीय आंकड़ा जारी कर अति पिछड़ों का आरक्षण बढ़ाया है. स्वतंत्र भारत की इतिहास में नीतीश कुमार ऐसा कोई नेता नहीं है जो अतिपिछड़ा समाज के लिए काम किए हो. हमारी पार्टी की विचारधारा कर्पूरी, लोहिया, अंबेडकर से मिलता है. नीतीश कुमार ऐसी विचारधारा को जमीन पर उतारने का काम कर रहे हैं. नीतीश कुमार कर्पूरी ठाकुर के उत्तराधिकारी हैं." -उमेश कुशवाहा, प्रदेश अध्यक्ष, जदयू
24 जनवरी को जयंती मनाई जाएगी: राजद की तरफ से भी 24 जनवरी को ही श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में कार्यक्रम किया जा रहा है. राजद नेता लगातार कहते रहे हैं कि लालू प्रसाद यादव कर्पूरी ठाकुर के असली वारिस हैं. बीजेपी की नजर भी अति पिछड़ा वोट बैंक पर है. बीजेपी ने मिलर स्कूल मैदान 24 जनवरी को बुक कराया है, लेकिन जदयू का टेंट मिलर स्कूल मैदान में लगा हुआ है. जदयू ने 23 जनवरी को मिलर स्कूल मैदान बुक करवाया है. ऐसे में 24 जनवरी को मैदान खाली होगा यह मुश्किल लग रहा है.
'लालू यादव कर्पूरी ठाकुर के अनुयायी': राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी का कहना है कर्पूरी ठाकुर के असली अनुयायी लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार हैं. उनके कामों को तेजस्वी यादव आगे बढ़ा रहे हैं. हमलोगों की लंबे समय से मांग रही है कि कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिया जाए. प्रवक्ता ने भाजपा पर आरोप लगाया कि भाजपा कर्पूरी ठाकुर को गाली देती थी, लेकिन अब वही पार्टी उनको याद कर रही है.
"कर्पूरी ठाकुर के असली अनुयायी लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार हैं. ये लोग कर्पूरी जी के विचार और आदर्शों को मानते हैं. डिप्टी सीएम तेजस्वी प्रसाद यादव उनके आदर्शों को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं. भाजपा सिर्फ वोट के लिए कर्पूरी जी को याद कर रही है." -मृत्युंजय तिवारी, राजद प्रवक्ता
'नरेद्र मोदी कर्पूरी के सपना को कर रहे पूरा': दूसरी ओर भाजपा की ओर से भी कई दावे किए जा रहे हैं. भाजपा का कहना है कि कर्पूरी ठाकुर का सपना अगर कोई पूरा कर रहा है तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. प्रधानमंत्री गांव से लेकर शहर तक, गरीब लेकर महिला, मजदूर और किसानों के लिए काम कर रहे हैं. इनलोगों ने (नीतीश-लालू) कर्पूरी जी को ठगने का काम किया है. इनलोगों को सिर्फ वोट चाहिए.
"कर्पूरी के सपनों को सही रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जमीन पर उतार रहे हैं. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव तो वोट के लिए कर्पूरी को ठगने का काम कर रहे हैं." -राकेश सिंह, भाजपा प्रवक्ता
क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञः राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफेसर अजय झा का कहना है कि सभी दल कर्पूरी जयंती के बहाने एक मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं कि कर्पूरी उनके हैं और वे भी कर्पूरी के हैं. खासकर जातीय गणना की रिपोर्ट आने के बाद सब की परेशानी बढ़ी है. क्योंकि कर्पूरी ठाकुर आज भी अति पिछड़ों के लिए प्रासंगिक बने हुए हैं. और बिहार में पिछड़ा अति पिछड़ों की आबादी 65% से अधिक है, जिसमें 36% सिर्फ अति पिछड़ा है.
"यह कोई नई बात नहीं है. कर्पूरी ठाकुर की जयंती पहले भी मनायी जाती रही है, लेकिन वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह एक पॉलिटिकल मैसेज है, जिसे सभी पार्टी जनता तक पहुंचाना चाहती है. सभी दलों का अपना अपना दावा है कि कर्पूरी ठाकुर उनके हैं और वे कर्पूरी ठाकुर के हैं." -प्रोफेसर अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ
क्यों प्रासंगिक है कर्पूरी? बिहार की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि बिहार में पिछड़ों को सबसे पहले आरक्षण कर्पूरी ठाकुर ने ही दिया था. राजनीतिक और सामाजिक बदलाव में कर्पूरी ठाकुर एक देवदूत थे. दो बार सीएम बने लेकिन एक बार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो पिछड़े वर्गों के लिए मुंगेरीलाल आयोग की अनुशंसा लागू कर आरक्षण का रास्ता खोल दिया. हालांकि बाद में इसके कारण सरकार की कुर्बानी देनी पड़ी.
कैसा था कर्पूरी ठाकुर का शासन काल? कर्पूरी ठाकुर ने कई फैसले लिए जो काफी चर्चा में रहा. बिहार में शराबबंदी भी लागू की लेकिन सरकार गिरने के बाद फिर से शराबबंदी को समाप्त कर दिया गया. बिहार बोर्ड की मैट्रिक परीक्षा में अंग्रेजी पास करने की अनिवार्यता को भी कर्पूरी ठाकुर ने अपने शासनकाल में समाप्त कर दिया. गांधी मैदान में 10000 एमबीबीएस और इंजीनियर ग्रेजुएट को बुलाकर नौकरी बाटी थी, जो काफी चर्चा में रहा था.
कर्पूरी ठाकुर के बेटे को नीतीश ने बनाया सांसदः मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2005 में बिहार की सत्ता संभालने के बाद कर्पूरी ठाकुर के विचारों को लागू करने की बात करते रहे हैं. कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर को दो बार राज्यसभा का सांसद बनाया है. रामनाथ ठाकुर अभी भी राज्यसभा सांसद हैं. नीतीश कुमार के लिए लव कुश वोट बैंक के साथ अति पिछड़ा वोट बैंक एक बड़ी ताकत है. बिहार की राजनीति में उसके सहारे ही सत्ता के केंद्र बिंदु में बने हुए हैं.
कांग्रेस के खिलाफ थे कर्पूरी: कर्पूरी ठाकुर की पहचान बड़े समाजवादी नेता के तौर पर होती है. गांधी के असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया था और जेल गए थे. 1952 में ताजपुर विधानसभा से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जीतकर विधायक बने. 1967 में बिहार में गैर कांग्रेस पार्टी की पहली बार सरकार बनी. महामाया प्रसाद सिंह मुख्यमंत्री तो कर्पूरी ठाकुर उपमुख्यमंत्री बने थे. शिक्षा विभाग का भी प्रभार दिया गया था. उन्होंने छात्रों की फीस खत्म कर दी थी.
यह भी पढ़ेंः
बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न
अचानक राज्यपाल से मिलने पहुंचे नीतीश कुमार, 40 मिनट तक चली मुलाकात, बाहर निकलकर साधी चुप्पी
बीजेपी और जेडीयू के बीच 'नजदीकियां' बढ़ीं, लेकिन कई मुद्दों पर फंसा पेंच