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कारगिल विजय दिवस : युद्ध में अलवर के फौजी अमर चंद ने भी लिया था दुश्मनों से लोहा, जानिए कैसा था युद्ध में सैनिकों का जज्बा - Kargil Vijay Diwas

26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. 1999 में इसी दिन भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल युद्ध जीता था. अलवर के पूर्व सैनिक अमर चंद ने भी इस युद्ध में भाग लेकर पाकिस्तान को लोहे के चने चबवाए थे. मिलिए कारगिल में दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाले अमरचंद से...

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jul 25, 2024, 12:28 PM IST

अमर चंद ने भी लिया था दुश्मनों से लोहा (VIDEO : ETV BHARAT)

अलवर. भारत और पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध पर विजय के दिन यानी 26 जुलाई को हर साल शौर्य दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस जंग में अलवर के एक सैनिक ने भी दुश्मनों से लोहा लेते हुए पाकिस्तान सेना के छक्के छुड़ाए थे. इस खास रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे अलवर के अमर चंद फौजी की कहानी, उसकी जुबानी. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने युद्ध के दौरान की आपबीती सुनाई है. उन्होंने बताया कि कैसे उस समय भारतीय सेना के जवानों ने पाकिस्तान सेना के मंसूबों पर पानी फेरा था.

अमर चंद फौजी बताते हैं कि कारगिल में दराज सेक्टर पर बने पोस्ट नवंबर में बंद हो जाते हैं. इसी के चलते सारी पोस्ट खाली हो जाती है. इसी मौके का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने भारत की पोस्ट पर कब्जा कर लिया. इस बात का पता भारतीय सेना को अप्रैल के अंत व मई के शुरुआत में पोस्ट खुलने पर लगा. जिस जगह पाकिस्तान के सैनिकों ने कब्जा किया, वो पोस्ट पहाड़ी की चोटी पर थी और भारत के वीर जवान नीचे की तरफ थे. इसी पोस्ट को कब्जे में लेने के लिए कारगिल युद्ध मई से लेकर 26 जुलाई तक जारी रहा. अंत में भारत के वीर जवानों ने पाकिस्तान को अपनी जमीन से खदेड़कर अपनी पोस्ट को हासिल कर कारगिल में विजय झंडा लहराया. उन्होंने कहा कि इस युद्ध में सैकड़ों वीर जवान शहीद हुए थे, जिन्हें याद कर आज भी हर देशवासी की आंखें नम हो जाती है.

अमरचंद फौजी ने बताया कि भारत देश का एक-एक जवान ने बड़ी वीरता दिखाई थी. यही कारण है कि दुश्मनों द्वारा कब्जाई जमीन के छुड़ाने में ज्यादा मशक्कत की जरूरत नहीं पड़ी. हालांकि पाकिस्तान के सैनिक चोटी पर बैठकर पत्थरबाजी और गोलीबारी कर रहे थे, तो वहीं भारत के वीर जवान नीचे की तरफ से अपने साहस का प्रदर्शन कर रहे थे. सैनिकों को जैसे ही अफसर का आदेश मिला, उन्होंने ताबड़तोड़ अपने साहस का प्रदर्शन करते हुए ऊपर की ओर चढ़ाई की और पाकिस्तान के सैनिकों से लोहा लेते हुए उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया.

उस समय के सीन नहीं होते बयां : अमरचंद फौजी ने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान के सीन आज हर सैनिक के मन में बसे हुए हैं, लेकिन उस मंजर को बयां कर पाना आसान नहीं है. युद्ध स्थल पर कितनी विषम परिस्थितियों से सामना करना पड़ा, कैसे दुश्मन से डटकर मुकाबला करना पड़ा, ये सैनिक ही जानता है. युद्ध के समय सभी सैनिकों को मन में एक ही भाव था कि उन्हें अपने परिवार की याद नहीं आए. उन्हें बस दुश्मनों को खदेड़कर भारत का तिरंगा फहराने का जिद्द थी. इसी जज्बे के चलते भारत ने कारगिल युद्ध में विजय प्राप्त की.

इसे भी पढ़ें : प्रदेश भर में कारगिल विजय दिवस मनाएगा बीजेपी युवा मोर्चा, हर विधानसभा क्षेत्र में निकलेगी मशाल जुलूस - KARGIL VIJAY DIWAS

इस तरह का रहता था टुकड़ियों का माहौल : अमरचंद फौजी ने बताया कि कारगिल युद्ध दो महीने से ज्यादा समय तक चला. उस दौरान जब भी कुछ पल मिलते थे, तो टुकड़ियों के जवान आपस में दुश्मनों कि बात कर हंसी मजाक कर माहौल को मजाकिया करते थे. उन्होंने बताया कि युद्ध के दौरान सैनिकों ने गम में लड़ाई नहीं लड़ी, बल्कि हंसते खेलते और भारत देश का नाम ऊंचा रखने की जद्दोजहद के लिए युद्ध में लड़ाई लड़ते थे. अमरचंद फौजी ने बताया कि भारत का सिपाही युद्ध में एक सप्ताह से ज्यादा बिना खाए भी पूरी ताकत के साथ लड़ाई लड़ सकता है.

सेना में एक ही ऑर्डर इसलिए कामयाब : अमरचंद फौजी ने बताया कि सेना इसलिए कामयाब होती है, क्योंकि यहां पर एक आर्डर चलता है. जबकि पुलिस की नौकरी में कई अफसरों के आर्डर के अनुसार चलने पड़ते हैं. अमरचंद अपने बारे में बताते हैं कि उनका जन्म राजगढ़ कस्बे के कांदोली गांव में हुआ था. सन 1965 में उनका परिवार अलवर शहर में आकर रहने लगा. उनके पिता रेलवे में कार्यरत थे, लेकिन उनका सपना शुरू से ही फौज में जाने का रहा. इसके लिए उन्होंने छोटी उम्र में ही तैयारी शुरू कर दी थी. 16 साल की उम्र में उन्होंने ट्रायल दिया, जिसमें अमर चंद पास हो गए. लेकिन डॉक्यूमेंट में छोटी उम्र के चलते उन्हें अगली बार आने को कहा. इसके बाद तीसरी बार में अमरचंद फौजी सेना में भर्ती हुए. इसके बाद उन्होंने भारत के अनेक राज्यों में करीब 20 साल 10 महीने तक सेवा दी.

अमर चंद ने भी लिया था दुश्मनों से लोहा (VIDEO : ETV BHARAT)

अलवर. भारत और पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध पर विजय के दिन यानी 26 जुलाई को हर साल शौर्य दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस जंग में अलवर के एक सैनिक ने भी दुश्मनों से लोहा लेते हुए पाकिस्तान सेना के छक्के छुड़ाए थे. इस खास रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे अलवर के अमर चंद फौजी की कहानी, उसकी जुबानी. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने युद्ध के दौरान की आपबीती सुनाई है. उन्होंने बताया कि कैसे उस समय भारतीय सेना के जवानों ने पाकिस्तान सेना के मंसूबों पर पानी फेरा था.

अमर चंद फौजी बताते हैं कि कारगिल में दराज सेक्टर पर बने पोस्ट नवंबर में बंद हो जाते हैं. इसी के चलते सारी पोस्ट खाली हो जाती है. इसी मौके का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने भारत की पोस्ट पर कब्जा कर लिया. इस बात का पता भारतीय सेना को अप्रैल के अंत व मई के शुरुआत में पोस्ट खुलने पर लगा. जिस जगह पाकिस्तान के सैनिकों ने कब्जा किया, वो पोस्ट पहाड़ी की चोटी पर थी और भारत के वीर जवान नीचे की तरफ थे. इसी पोस्ट को कब्जे में लेने के लिए कारगिल युद्ध मई से लेकर 26 जुलाई तक जारी रहा. अंत में भारत के वीर जवानों ने पाकिस्तान को अपनी जमीन से खदेड़कर अपनी पोस्ट को हासिल कर कारगिल में विजय झंडा लहराया. उन्होंने कहा कि इस युद्ध में सैकड़ों वीर जवान शहीद हुए थे, जिन्हें याद कर आज भी हर देशवासी की आंखें नम हो जाती है.

अमरचंद फौजी ने बताया कि भारत देश का एक-एक जवान ने बड़ी वीरता दिखाई थी. यही कारण है कि दुश्मनों द्वारा कब्जाई जमीन के छुड़ाने में ज्यादा मशक्कत की जरूरत नहीं पड़ी. हालांकि पाकिस्तान के सैनिक चोटी पर बैठकर पत्थरबाजी और गोलीबारी कर रहे थे, तो वहीं भारत के वीर जवान नीचे की तरफ से अपने साहस का प्रदर्शन कर रहे थे. सैनिकों को जैसे ही अफसर का आदेश मिला, उन्होंने ताबड़तोड़ अपने साहस का प्रदर्शन करते हुए ऊपर की ओर चढ़ाई की और पाकिस्तान के सैनिकों से लोहा लेते हुए उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया.

उस समय के सीन नहीं होते बयां : अमरचंद फौजी ने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान के सीन आज हर सैनिक के मन में बसे हुए हैं, लेकिन उस मंजर को बयां कर पाना आसान नहीं है. युद्ध स्थल पर कितनी विषम परिस्थितियों से सामना करना पड़ा, कैसे दुश्मन से डटकर मुकाबला करना पड़ा, ये सैनिक ही जानता है. युद्ध के समय सभी सैनिकों को मन में एक ही भाव था कि उन्हें अपने परिवार की याद नहीं आए. उन्हें बस दुश्मनों को खदेड़कर भारत का तिरंगा फहराने का जिद्द थी. इसी जज्बे के चलते भारत ने कारगिल युद्ध में विजय प्राप्त की.

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इस तरह का रहता था टुकड़ियों का माहौल : अमरचंद फौजी ने बताया कि कारगिल युद्ध दो महीने से ज्यादा समय तक चला. उस दौरान जब भी कुछ पल मिलते थे, तो टुकड़ियों के जवान आपस में दुश्मनों कि बात कर हंसी मजाक कर माहौल को मजाकिया करते थे. उन्होंने बताया कि युद्ध के दौरान सैनिकों ने गम में लड़ाई नहीं लड़ी, बल्कि हंसते खेलते और भारत देश का नाम ऊंचा रखने की जद्दोजहद के लिए युद्ध में लड़ाई लड़ते थे. अमरचंद फौजी ने बताया कि भारत का सिपाही युद्ध में एक सप्ताह से ज्यादा बिना खाए भी पूरी ताकत के साथ लड़ाई लड़ सकता है.

सेना में एक ही ऑर्डर इसलिए कामयाब : अमरचंद फौजी ने बताया कि सेना इसलिए कामयाब होती है, क्योंकि यहां पर एक आर्डर चलता है. जबकि पुलिस की नौकरी में कई अफसरों के आर्डर के अनुसार चलने पड़ते हैं. अमरचंद अपने बारे में बताते हैं कि उनका जन्म राजगढ़ कस्बे के कांदोली गांव में हुआ था. सन 1965 में उनका परिवार अलवर शहर में आकर रहने लगा. उनके पिता रेलवे में कार्यरत थे, लेकिन उनका सपना शुरू से ही फौज में जाने का रहा. इसके लिए उन्होंने छोटी उम्र में ही तैयारी शुरू कर दी थी. 16 साल की उम्र में उन्होंने ट्रायल दिया, जिसमें अमर चंद पास हो गए. लेकिन डॉक्यूमेंट में छोटी उम्र के चलते उन्हें अगली बार आने को कहा. इसके बाद तीसरी बार में अमरचंद फौजी सेना में भर्ती हुए. इसके बाद उन्होंने भारत के अनेक राज्यों में करीब 20 साल 10 महीने तक सेवा दी.

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