गयाः देश की आजादी के लिए जहां लाखों ने अपने प्राणों की आहुति दी वहीं उस आजादी की रक्षा के लिए भी वीर जवान अपना सर्वोच्च बलिदान देते आ रहे हैं. 1962 का चीन युद्ध हो या फिर 1965 और 1971 की जंग जिसमें हिंदुस्तान के जांबाज सिपाहियों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर नापाक मंसूबे ध्वस्त कर डाले. 1999 में भी पाक ने हिमाकत करते हुए करगिल की कई चोटियों पर कब्जा जमा लिया था तब देश के सैनिकों ने अद्भुत शौर्य का परिचय देते हुए पाकिस्तानियों को खदेड़ दिया. करगिल युद्ध के दौरान गया के रहनेवाले लांस नायक राम पुकार शर्मा ने भी अपना सर्वोच्च बलिदान दिया और भारतीय इतिहास में अमर हो गये.
पत्नी के हॉर्ट का ऑपरेशन छोड़ ड्यूटी पर हुए रवानाः करगिल की ऊंची चोटियों को दुश्मनों के नापाक पंजों से मुक्त कराने के लिए अपनी शहादत देनेवाले गया के राम पुकार शर्मा के घर आज भी 25 साल पुराना वो खत रखा है जो उन्होंने अपने परिवार को लिखी थी. परिवार वाले बताते हैं कि राम पुकार शर्मा अपनी पत्नी के हार्ट के ऑपरेशन के लिए छुट्टी लेकर घर आए थे. ऑपरेशन की सारी तैयारियां भी हो चुकी थीं कि उन्हें ड्यूटी ज्वाइन करने का आदेश आया.राम पुकार शर्मा पत्नी को उसी हालत में छोड़कर मातृभूमि की रक्षा के लिए अपनी ड्यूटी पर रवाना हो गये.
36 राष्ट्रीय गढ़वाल राइफल्स में तैनात थे राम पुकारः लांस नायक राम पुकार शर्मा 36 राष्ट्रीय गढ़वाल राइफल्स में थे. गढ़वाल राइफल्स के जवान पहाड़ों पर चढ़ने में माहिर होते हैं. हजारों फीट ऊंची पहाड़ों की चोटियों पर दुश्मन को हराना था. ऐसे में गढ़वाल राइफल्स में रहने के कारण लांस नायक राम पुकार शर्मा को विशेष कर बुलाया गया था. ऑफिसर की चिट्ठी मिलते ही लांस नायक राम पुकार शर्मा हार्ट का पत्नी के हार्ट का ऑपरेशन के बीच उसे जिंदगी और मौत के बीच झूलता छोड़ मातृभूमि की रक्षा करने के लिए निकल गए.
1 जुलाई 1999 को दिया सर्वोच्च बलिदानः दुश्मनों से लोहा लेने पहुंचे राम पुकार शर्मा ने रणक्षेत्र में अद्भुत वीरता का परिचय दिया और दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिये. कई दुश्मनों को यमलोक भेजने के बाद इस वीर सपूत ने 1 जुलाई 1999 को मातृभूमि की रक्षा में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया और शहीद हो गये.
'तुम्हारा बेटा काफी बहादुर था, 12 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया': 4 जुलाई 1999 को शहीद लांस नायक राम पुकार शर्मा का पार्थिव शरीर उनके गांव गया के टिकरी के कुतुलपुर लाया गया तो उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करने जनसैलाब उमड़ पड़ा. तब पार्थिव शरीर लेकर आए ऑफिसर ने परिजनों से कहा था कि तुम्हारा बेटा बहुत बहादुर था.उसने 12 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया और तब शहीद हुआ.
करगिल शहीदों की सूची में दर्ज नहीं है नामः राम पुकार शर्मा की शहादत पर उनके पूरे परिवार को गर्व है लेकिन 25 साल बाद भी एक टीस है क्योंकि अपना सर्वोच्च बलिदान देनेवाले राम पुकार शर्मा का नाम पटना के करगिल चौक पर दर्ज शहीदों की सूची में नहीं है. ऐसे में परिवार के लोग सरकार से सवाल कर रहे हैं कि आखिर अपने प्राणों की आहुति देनेवाले राम पुकार शर्मा को ये सम्मान क्यों नहीं दिया गया ?
25 साल पुराना खत आज भी घर में है मौजूदः राम पुकार शर्मा के दिल में देशभक्ति की भावना किस कदर भरी थी वो 25 साल पहले लिखी उनकी चिट्ठी से पता चलता है. छुट्टी कैंसिल होने के बाद करगिल के मोर्चे पर पहुंचे राम पुकार शर्मा ने अपने परिवार को भेजे खत में लिखा था- "मातृभूमि ही हमारा घर है. इसे छोड़कर मैं नहीं आ सकता. देश के लिए कुछ कर गया, तो चिंता मत करना. सब मिलजुल कर रहना." दिल को छू देने वाली ये चिट्ठी आज भी उनके परिवार के पास धरोहर के रूप में मौजूद है.
अपने पैसे से बनवाया स्मारक: देश के लिए शहादत देनेवाले राम पुकार शर्मा के बलिदान की अनदेखी पर भाई धनंजय कुमार कहते हैं कि सरकार या स्थानीय प्रशासन ने शहीद का एक स्मारक तक बनवाना भी उचित नहीं समझा. आखिर परिवार के लोगोंने अपने पैसे से लांस नायक राम पुकार शर्मा का एक स्मारक गांव में बनवाया है, हालांकि परिवार की मांग है कि शहीद राम पुकार के बलिदान को पहचान मिले और पटना के करगिल चौक पर दर्ज शहीदों की सूची में उनका भी नाम शामिल हो.