रांचीः झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो शिबू सोरेन की मंझली बहू कल्पना सोरेन की झारखंड की राजनीति में अब विधिवत एंट्री हो गई है. गांडेय विधानसभा उपचुनाव जीतकर उन्होंने साबित कर दिया है कि वह सोरेन परिवार की राजनीतिक विरासत को संभालने में सक्षम हैं. सबसे खास बात है कि सफलता के इस पड़ाव तक पहुंचने के लिए उन्हें सिर्फ तीन माह का समय लगा. 4 मार्च को उन्होंने झामुमो के कार्यकर्ताओं के साथ पहली बार गिरिडीह में सीधा संवाद किया था. तब वह अपने आंसूओं को नहीं रोक पाई थी. इसके बाद कल्पना सोरेन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
लोकसभा चुनाव के दौरान झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के लैंड स्कैम मामले में जेल में बंद होने की वजह से पार्टी में नेतृत्व की कमी दिख रही थी. बेशक, चंपाई सोरेन के हाथ में सत्ता की कमान थी लेकिन सोरेन परिवार के प्रभाव की कमी झलक रही थी. क्योंकि पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन भी ज्यादा उम्र होने की वजह से चुनावी मैदान में जनसंपर्क साधने में सक्षम नहीं थे. ऊपर से शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन के भाजपा में जाने से यह परिवार असमंजस की स्थिति में था. ऐसी परिस्थिति में भी कल्पना सोरेन ने बीड़ा उठाया और हेमंत सोरेन की कमी महसूस नहीं होने दी. वह एक स्टार प्रचारक के रुप में उभरीं.
सरफराज अहमद से ज्यादा वोट के अंतर से जीतीं कल्पना
गांडेय उपचुनाव में उनका मुकाबला भाजपा प्रत्याशी दिलीप वर्मा से था. भाजपा प्रत्याशी के लिए बाबूलाल मरांडी समेत भाजपा के तमाम दिग्गज नेता पसीना बहा रहे थे. भाजपा नेता जीत के दावे भी कर रहे थे. 4 जून को काउंटिंग शुरु होने पर भाजपा प्रत्याशी दिलीप वर्मा ने बढ़त भी हासिल की. लेकिन चौथे राउंड में कल्पना सोरेन ने 815 वोट की बढ़त ले ली. इसके बाद राउंड दर राउंड कल्पना सोरेन के पक्ष में वोट निकलता रहा. अंत में कल्पना सोरेन 27,149 वोट के अंतर से जीत गईं. उन्हें कुल 1,09,827 वोट मिले. जबकि भाजपा प्रत्याशी के खाते में कुल 82,678 वोट आए.
इस जीत के लिए कल्पना सोरन ने गांडेय की जनता के प्रति सोशल मीडिया के जरिए आभार जताया. गौर करने वाली बात है कि इस सीट को झामुमो के विधायक रहे सरफराज अहमद ने राजनीतिक अस्थिरता के दौर में खाली किया था. पिछली बार उन्होंने 8 हजार से ज्यादा वोट के अंतर से जीत हासिल की थी. लेकिन कल्पना सोरेन ने तीन गुणा ज्यादा वोट के अंतर से जीत हासिल कर खुद को एक कुशल नेतृत्वकर्ता के रुप में साबित कर दिया है.
कल्पना सोरेन ने दिखाया विक्ट्री साइन
अब कल्पना सोरेन की विधिवत रुप से झारखंड की राजनीति में एंट्री हो गई है. जीत हासिल करते ही उन्होंने अपनी सास रुपी सोरेन से आशीर्वाद लिया और विक्ट्री साइन के साथ मुस्कुराते हुए अपनी तस्वीर सोशल मीडिया पर जारी की. अब सवाल है कि इस विक्ट्री साइन के क्या मायने निकाले जाने चाहिए. क्या वह एक विधायक के रुप में सेवा देंगी या चंपाई सोरेन को सत्ता छोड़नी पड़ेगी.
इस मसले पर झामुमो के सूत्रों का कहना है कि कुछ माह के भीतर ही राज्य में विधानसभा का चुनाव है. ऐसे में नेतृत्व परिवर्तन करने से जनता के बीच विपरित संदेश जाएगा. ऊपर से विपक्षी पार्टियां इसे मुद्दा बनाएंगी. लिहाजा, संभावना है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कल्पना सोरेन को सीएम के रुप में प्रोजेक्ट किया जाए. क्योंकि लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने साबित कर दिया कि वह हर चुनौती से निपट सकती हैं. उनकी जनसभाओं का असर भी दिखा. यही वजह है कि खूंटी में अर्जुन मुंडा जैसे दिग्गज नेता को मात खानी पड़ी.
कल्पना सोरेन की आगे की भूमिका को लेकर झारखंड की राजनीति को समझने वाले विशेषज्ञों की भी यही राय है. वरिष्ठ पत्रकार आनंद कुमार का कहना है कि कल्पना सोरेन ने अभी पहली जीत हासिल की है. उन्होंने कहा कि अगर केंद्र में इंडिया गठबंधन की सरकार को बहुमत मिला होता तो संभव है कि यहां भी परिवर्तन दिखता. लेकिन दिल्ली दूर दिख रही है. ऐसे में झामुमो की कोशिश होगी कि आगामी विधानसभा चुनाव में कल्पना सोरेन को प्रोजेक्ट किया जाए. तबतक अगर हेमंत सोरेन जेल से बाहर आ जाते हैं तो तस्वीर कुछ और हो सकती है. ऐसा नहीं हुआ तो कल्पना सोरेन को कमान मिलना तय है. वैसे इस जीत के बाद एक विधायक के रुप में कल्पना सोरेन के पास नेतृत्व को कंट्रोल करने की कुंजी मिल गई है.
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