कोरबा : ज्योत्सना महंत छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की 40 लोकसभा सीटों में से इकलौती कांग्रेस की सांसद हैं. एक महिला सांसद होने के नाते उन पर दबाव ज्यादा भी रहता है. ऐसे में वह इस दबाव को कैसे झेल पाती हैं, लोकसभा में अपनी उपस्थिति वह कैसे दर्ज कराती हैं, इस बारे में कोरबा सांसद ज्योत्सना महंत ने बताया.
सवाल : आप छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश में कांग्रेस की अकेली सांसद हैं और महिला सांसद होने के नाते भी कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है ?
जवाब : महिला होने के नाते दिक्कत तो आती है. जब एक महिला राजनीति करती है तो बोला जाता है कि एक महिला है, यह किस तरह से जो चुनौतियों का सामना कर पाएगी. मैं तो इन सब से बिल्कुल अनजान थी. मैं सीधे रसोई से पार्लियामेंट पहुंची हूं. स्पीकर ओम बिरला से भी यह बात बताई थी, तब वह भी मुस्कुराए थे. लेकिन महंत जी के पीछे चलते हुए मैंने कमान संभाली है. चुनाव में भी मैं सक्रिय थी. मुझे लंबा अनुभव है. महंत जी के साथ ही जो हमारे कांग्रेस के भाई हैं, वह सभी मेरी मदद करते हैं. मुझे उतनी ज्यादा चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा.
सवाल : छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश में पूरी तरह से बीजेपी जीत कर आई है.आप इकलौती कांग्रेस की सांसद है, तो क्या कोई अतिरिक्त दबाव भी रहता है ?
जवाब : अभी तक तो मेरे ऊपर ऐसा कोई दबाव नहीं आया. लेकिन हां, इतना जरूर है कि लोग मुझे कहते हैं कि मध्य प्रदेश के लिए भी पार्लियामेंट में बोलिए. मध्य प्रदेश में ही मेरा जन्म हुआ है. मध्यप्रदेश में भोपाल में मेरा मायका है और छत्तीसगढ़ मेरा ससुराल है. तो दोनों की ही सेवा करने का मौका मुझे मिल रहा है. दोनों की सेवा करेंगे और जो भी समस्या आएंगी, उसका मैं डटकर सामना करूंगी.
सवाल : इसका मतलब यह हुआ कि कुछ दबाव मायके पक्ष वालों का आप पर है?
जवाब : देखिए ऐसा कुछ नहीं है. भोपाल या मध्य प्रदेश के बारे में मैंने आज तक कुछ बोला नहीं है. मैंने जब भी बोला है पार्लियामेंट में तो छत्तीसगढ़ के बारे में ही बोला है. लेकिन आगे मुझे बोलना पड़ेगा, अगर एमपी के लोग चाहेंगे, तो मैं बोलूंगी.
सवाल : आपके परिवार का राजनीति में लंबा इतिहास रहा है, चरण दास महंत हों या उनके पिता, अब इस विरासत को आप किस तरह से आगे बढ़ा रही हैं?
जवाब : हमारे पूर्वजों का आशीर्वाद समझिए. बिसाहू दास महंत जी, जो महंत जी के पिताजी हैं, उनका आशीर्वाद भी मैं समझती हूं. उनके बताए हुए रास्तों पर ही हम दोनों पति-पत्नी के साथ हमारे बच्चे चल रहे हैं. राजनीति को हम लोग राजनीति की तरह नहीं करते. यह जो एक सामाजिक व्यवस्था है और समाज को सुधारने के लिए एक समाज सेविका के रूप में मैं लोगों के पास जाती हूं और इसी रूप में मैं काम कर रही हूं. हम इसे एक व्यवसाय के रूप में नहीं देखते. यह मंच हमने चुना है और इस मंच के माध्यम से लोगों को कितना भला हम कर सकते हैं, इसलिए ही हमने यह मार्ग चुना है. हम वह कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे.
सवाल : लोकसभा से लेकर जिला स्तर की बैठकों तक सभी में ज्यादातर पुरुष रहते हैं. पुरुष प्रधान समाज ही भारत को माना जाता है, ऐसे में कितना संघर्ष करते हैं. कितना मुश्किल हो जाता है?
जवाब : यह बात बिल्कुल सही है कि भारत में पुरुष प्रधान समाज होता है. यहां महिलाएं भले ही आगे आ जाएं. कोई भी सरकार रहे, महिलाओं को टिकट जरूर दे देते हैं. सरपंच से लेकर विधायक और सांसद भी बनतीं है. कहीं ना कहीं एक दबाव महिला पर जरूर रहता है. अंदर उनके परिवार से हो या फिर बाहर से हो. पुरुष हमेशा चाहता है की महिला हमारे मुताबिक काम करें. लेकिन मेरे बारे में आप ऐसा मत समझिए. मैं पूरी तरह से स्वतंत्र हूं. कहीं भी जाती हूं, कुछ भी करती हूं और पूरी स्वतंत्रता से काम करती हूं.
मैं आपके प्लेटफार्म पर यह कहना चाहती हूं कि महिलाओं की स्थिति क्या है. मुझे महंत जी के पीछे चलते हुए 40 साल हो गए हैं, लेकिन फिर भी मैं उनसे इसलिए पूछ लेती हूं, ताकि धोखे से कोई चूक ना हो जाए. जब कोरबा की बात आती है तो मैं जयसिंह अग्रवाल जी से पूछ लेती हूं. महंत जी का मार्गदर्शन मैं लेती रहती हूं. उनसे पूछती हूं कि मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं. हमारे परिवार की परंपरा रही है कि हमारी सोच कहीं से भी दूषित ना हो, इसका मुझे हमेशा ध्यान रहता है.
सवाल : लोकसभा में अभी 33% महिलाओं के आरक्षण का मामला पेंडिंग है, ये पास नहीं हो पाया. लोकसभा के जो स्पीकर हैं, और बाकी जो महिलाएं सांसद हैं. लोकसभा में आप लोगों की आपस में क्या बात होती है?
जवाब : पहली बार जब हम लोग 17वीं लोकसभा में थे. महिलाओं की संख्या अच्छी खासी थी. मुझे यह कहते हुए संकोच नहीं है, मैं विपक्ष में जरूर हूं, लेकिन ओम बिरला जो हमारे स्पीकर हैं, उन्होंने हर महिला को बोलने के लिए काफी समय दिया. शुरू शुरू में तो हमें पूरा समय मिला है. लेकिन बाद में हमारे माइक बंद हो जाते थे. शायद उन पर भी कोई दबाव होगा. यह मैं नहीं कह सकती, लेकिन हम लोग स्वतंत्र थे.
इस बार लोकसभा में महिलाओं की संख्या थोड़ी कम है, लेकिन कांग्रेस की संख्या सदन में काफी बड़ी है. हम लोग काफी संख्या में हैं तो निश्चित रूप से हम ज्यादा आवाज उठाते हैं. पार्लियामेंट में एक चीज का बहुत अच्छी है कि वहां कोई भी पुरुष प्रधान वाला मामला नहीं है. वहां हर व्यक्ति, चाहे वह गौरव गोगोई हों, राहुल गांधी हों या सुरेश जी. हमारे बहुत सारे हमारे सांसद भाई हैं, जो हमेशा हमें आगे रखते हैं.
सवाल : कांग्रेस का जैसा इतिहास रहा है, सोनिया गांधी जी ने जैसा काम किया. इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी. अब राहुल जी हैं, उनका क्या विजन है?
जवाब : इंदिरा गांधी जी ने ही महिलाओं को आगे बढ़ाया. उन्होंने एक जागृति फैलाई. उन्होंने हमारे अंदर शक्ति पैदा की. उसके बाद जो थोड़ी बहुत बची थी, वह राजीव जी के पंचायती राज में हुआ. महिलाओं को आगे बढ़ाया गया. इसके बाद सोनिया जी हैं, जिन्हें देखकर हम सीखते हैं कि वह कैसे सरल, सहज और सामने से जो प्रहार होते हैं, उनको वह मुस्कुराहट के टाल देती हैं. यह सहनशीलता मैंने उनसे सीखी है. अब राहुल जी हमारे प्रतिपक्ष के नेता हैं. हमारे छोटे भाई हैं, वह भी काफी अच्छा सबको लेकर के चल रहे हैं. बहुत अच्छी दिशा में हम लोग आगे बढ़ रहे हैं. वह काफी जागरुक, समझदार हैं. हर क्षेत्र में उनकी पकड़ है. तो मैं समझती हूं कि हम सब लोग सक्षम हैं.
सवाल : वो दौर भी आपने देखा है, जब इंदिरा जी देश की प्रधानमंत्री थी और आप आज के दौर में लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर रही है. क्या अंतर है?
जवाब : राजनीति का स्तर काफी नीचे गिरा है, इसमें कोई संशय नहीं है. पहले भी राजनीति होती थी, लेकिन वह देश के हित में सब समाज के हित में थी. एक दूसरे पर कटाक्ष कम होते थे. जब अटल बिहारी वाजपेई वहीं रहते थे, इंदिरा जी भी वहीं थीं, राजीव जी भी थे और सब मिलकर काम करते थे. विपक्ष को भी साथ लेकर काम किया जाता था. लेकिन आज की राजनीति सहज और सरस नहीं है. स्तर उतना अच्छा नहीं है, यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है.
जब हम जनप्रतिनिधि बनकर लोकतंत्र के मंदिर में जाते हैं और दरवाजे के अंदर घुसते हैं तो हमें सिर्फ एक जनप्रतिनिधि होना चाहिए. हमें किसी पार्टी का नहीं होना चाहिए. अब हम अंदर जाकर अपनी पार्टी का जलवा दिखा रहे हैं, फिर चाहे वह कोई भी हो. तो फिर वही लगता है कि हम राजनीतिक ज्यादा और जनप्रतिनिधि कम हैं. तो मेरा मानना है कि हम जनता के द्वारा चुने गए सदस्य हैं और जब वहां जाते हैं, तो सिर्फ जनता के विकास की बातें करनी चाहिए. कांग्रेस ने ऐसा किया है. 70 साल में क्या किया है? यह सवाल वे करते रहते हैं. ये बातें नहीं बोली जानी चाहिए. आप जनता के हित में काम करिए. राहुल जी का भी कहना है कि जब आप जनता के हित में काम करोगे, हम सब आपके साथ हैं. हमें भगा के, हमारा विरोध करके आप क्या पाना चाहते हैं. सब जनप्रतिनिधि हैं, सब चुनकर आए हुए लोग हैं.
लोकसभा में इसलिए हमें धर्म के नाम पर नहीं रहना चाहिए. हमें सब धर्म को लेकर चलना चाहिए और सभी धर्म की लड़ाई को लड़ना चाहिए. जब से राजनीति में धार्मिकता जब आई है. धर्म की आड़ में किस तरह से अपराध घटित हो रहे हैं, यह कांग्रेस के जमाने में कभी नहीं हुआ. आज से 10 साल पहले या 15 साल पहले धर्म के नाम पर इतनी लड़ाई कभी नहीं दिखी. हम सब सबसे पहले भारतीय हैं. हमारा धर्म मानव धर्म है और सेवा करना ही हमारा धर्म है.
सवाल : कोरबा में दो महिला ने चुनाव लड़ा आप जीत गई सरोज पांडे की हार हुई, लेकिन सरोज पांडे की सक्रियता अब भी बनी हुई है. वह कोरबा लोकसभा के बैठकों में शामिल हो रही हैं. आपको क्या लगता है?
जवाब : मुझे भी यह समझ में नहीं आ रहा है कि सरोज दुर्ग की हैं. यहां लड़ने आई. अब यह उनकी पार्टी का उन्हें कोई अलग से निर्देश हो तो यह मुझे नहीं मालूम. यह उनका व्यक्तिगत फैसला है. वह देश में कहीं भी जा सकती हैं. उनके पास स्वतंत्रता है. संविधान में लिखा है कि लोकतंत्र में कोई भी कहीं भी जा सकता है, बस सकता है. जब कोई पावर में रहता है, जिसकी सरकार पावर में रहती है तो उसकी ही चलती है. यह मैं तो नहीं कह सकती कि वह कितना चलाएंगी, कितना करेंगी. मैं सांसद होने के नाते क्षेत्र के लिए काम करूंगी, यह मुझे पता है.
सवाल : कोरबा जिले का डीएमएफ फंड हमेशा चर्चा में रहता है. इस बार भी 200 करोड़ रुपए का बजट है. आप बैठक में भी शामिल हुई, इस फंड को लेकर हमेशा सवाल खड़े रहते हैं.
जवाब : कलेक्टर साहब से जो हमारी बात हुई, उसमें उन्होंने 400 करोड़ का बताया. जिसमें पिछला कुछ काम भी था, जिसमें कुछ कटौती हुई. उसको माइनस करके शायद 200 करोड़ रुपए इस वर्ष के विकास के लिए आएंगे. ऐसा मुझे समझ में आया. लेकिन अभी पूरी तरह से जानकारी नहीं मिली है. विधायक और सांसद का कितना कोटा रहेगा, कितना हम काम कर सकते हैं, क्या-क्या कर सकते हैं. इस तरह का कोई निर्देश अभी तक हमें नहीं मिला है. ऊपर से जो नए नियम बने हैं, उसकी बातें हुई हैं. काम कैसे करना है, कितना पर्सेंट किस क्षेत्र में देना है, इस पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है.
देखिए एक बात और है कि यह किसी अकेले के बस का काम नहीं है. अधिकारी और जनप्रतिनिधि, यदि दोनों मिलकर ईमानदारी से कम करें तो मेरे अनुसार जनता का काम होगा. दोनों को ईमानदार बनना पड़ेगा, तभी जनता का हित होगा. हमें ईमानदारी से काम करना है. अधिकारियों को चाहिए कि पैसे का सदुपयोग करें, गुणवत्ता दिखाएं, अच्छा काम करें. तो मेरे अनुसार इसके बाद किसी को कोई शिकायत नहीं होगी.