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हाईकोर्ट की फटकार के बाद हाजिर हुए जज, मांगी माफी, सुनवाई के दौरान मुस्लिम अधिवक्ता के नमाज पढ़ने जाने पर जताई थी नाराजगी - judge namaz comment case

धर्मांतरण से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान न्यायिक कार्य छोड़कर मुस्लिम अधिवक्ता के नमाज पढ़ने जाने पर जज एनआईए कोर्ट के विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने टिप्पणी की थी. उन्होंने इसे अनुचित बताया था.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 18, 2024, 7:41 AM IST

लखनऊ : हाई प्रोफाइल अवैध धर्मांतरण केस में अदालत में उपस्थित गवाह से जुमे की नमाज पढ़ने जाने का हवाला देकर मुस्लिम अधिवक्ता ने जिरह नहीं की थी. इस पर एनआईए/एटीएस कोर्ट के विशेष जज विवेकानन्द शरण त्रिपाठी ने टिप्पणी की थी. संबंधित अधिवक्ताओं के नमाज के लिए जाने पर न्याय मित्र नियुक्त करने के आदेश दिए थे. हाईकोर्ट की फटकार के बाद जज ने बिना शर्त माफी मांगी है. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने विशेष जज के विरुद्ध सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि जज ने धर्म के आधार पर एक समुदाय के साथ भेदभाव किया है.

न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि अपनी पसंद और अपने मजहब के अधिवक्ता नियुक्त कर चुके अभियुक्तों की मर्जी के खिलाफ उनके लिए न्याय मित्र नियुक्त करना, धर्म के आधार पर भेदभाव है. यह संविधान के अनुच्छेद 15 का स्पष्ट उल्लंघन है. न्यायालय की इन टिप्पणियों के साथ जज को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने के लिए दो दिनों का समय दिया है. मामले में आज (18 अप्रैल) को भी सुनवाई होनी है.

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यह आदेश न्यायमूर्ति शमीम अहमद की एकल पीठ ने मामले के एक अभियुक्त मोहम्मद इदरीस की याचिका पर पारित किया. विशेष जज की अदालत में जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में मोहम्मद उमर गौतम समेत अन्य अभियुक्तों का विचारण चल रहा है. हाईकोर्ट की दो जजों की खंडपीठ ने 16 दिसंबर 2022 को आदेश दिया था कि उक्त मामले के विचारण की कार्रवाई एक वर्ष में पूरी की जाए, जिसके बाद विषेश जज ने प्रतिदिन सुनवाई प्रारम्भ की. 19 जनवरी 2024 को मामले में हाजिर गवाह से जिरह करने के लिए जब अदालत ने अधिवक्ताओं से कहा तो मुस्लिम अधिवक्ता नमाज के लिए जाने की बात कह कर चले गए.

इसके बाद अदालत ने जिन अभियुक्तों के अधिवक्ता मुस्लिम थे, उनके लिए न्याय मित्र की नियुक्ति कर दी. स्पष्ट किया कि नमाज के लिए जाने पर न्याय मित्र अभियुक्तों की ओर से कार्यवाही करते रहेंगे. इसके साथ ही अदालत ने अभियुक्तों की ओर से दाखिल अर्जी भी खारिज कर दिया जिसमें इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों की मांग की गई थी.

मामले में एक अभियुक्त मोहम्मद इदरीस ने हाईकोर्ट में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका दाखिल कर विशेष जज के आदेशों को चुनौती दी. 5 मार्च को याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने 5 मार्च को याची के संदर्भ में विशेष जज के आदेशों पर स्थगन दे दिया था. इस पर हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में विशेष जज ने न्याय मित्र देने वाले अपने आदेश का क्रियान्वयन रोक दिया. अन्य अभियुक्तों को न्याय मित्र देने के अपने आदेश को यथावत रखा.

याचिका पर जब फिर से 15 अप्रैल को हाईकोर्ट में सुनवाई हुई तो न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने विशेष जज पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्होंने 5 मार्च के आदेश को ठीक से नहीं समझा. आगे कहा कि विशेष जज ने इलेक्ट्रानिक साक्ष्यों को देने के संबंध में कोई आदेश क्यों नहीं पारित किया. न्यायालय ने उक्त मामले में याची मोहम्मद इदरीस के विरुद्ध ट्रायल पर भी अग्रिम आदेशों तक के लिए रोक लगा दी है.

यह भी पढ़ें : मुस्लिम अधिवक्ता ने गवाह से नहीं की जिरह, कोर्ट की टिप्पणी- नमाज के लिए न्यायिक कार्य छोड़कर जाना अनुचित

लखनऊ : हाई प्रोफाइल अवैध धर्मांतरण केस में अदालत में उपस्थित गवाह से जुमे की नमाज पढ़ने जाने का हवाला देकर मुस्लिम अधिवक्ता ने जिरह नहीं की थी. इस पर एनआईए/एटीएस कोर्ट के विशेष जज विवेकानन्द शरण त्रिपाठी ने टिप्पणी की थी. संबंधित अधिवक्ताओं के नमाज के लिए जाने पर न्याय मित्र नियुक्त करने के आदेश दिए थे. हाईकोर्ट की फटकार के बाद जज ने बिना शर्त माफी मांगी है. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने विशेष जज के विरुद्ध सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि जज ने धर्म के आधार पर एक समुदाय के साथ भेदभाव किया है.

न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि अपनी पसंद और अपने मजहब के अधिवक्ता नियुक्त कर चुके अभियुक्तों की मर्जी के खिलाफ उनके लिए न्याय मित्र नियुक्त करना, धर्म के आधार पर भेदभाव है. यह संविधान के अनुच्छेद 15 का स्पष्ट उल्लंघन है. न्यायालय की इन टिप्पणियों के साथ जज को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने के लिए दो दिनों का समय दिया है. मामले में आज (18 अप्रैल) को भी सुनवाई होनी है.

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यह आदेश न्यायमूर्ति शमीम अहमद की एकल पीठ ने मामले के एक अभियुक्त मोहम्मद इदरीस की याचिका पर पारित किया. विशेष जज की अदालत में जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में मोहम्मद उमर गौतम समेत अन्य अभियुक्तों का विचारण चल रहा है. हाईकोर्ट की दो जजों की खंडपीठ ने 16 दिसंबर 2022 को आदेश दिया था कि उक्त मामले के विचारण की कार्रवाई एक वर्ष में पूरी की जाए, जिसके बाद विषेश जज ने प्रतिदिन सुनवाई प्रारम्भ की. 19 जनवरी 2024 को मामले में हाजिर गवाह से जिरह करने के लिए जब अदालत ने अधिवक्ताओं से कहा तो मुस्लिम अधिवक्ता नमाज के लिए जाने की बात कह कर चले गए.

इसके बाद अदालत ने जिन अभियुक्तों के अधिवक्ता मुस्लिम थे, उनके लिए न्याय मित्र की नियुक्ति कर दी. स्पष्ट किया कि नमाज के लिए जाने पर न्याय मित्र अभियुक्तों की ओर से कार्यवाही करते रहेंगे. इसके साथ ही अदालत ने अभियुक्तों की ओर से दाखिल अर्जी भी खारिज कर दिया जिसमें इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों की मांग की गई थी.

मामले में एक अभियुक्त मोहम्मद इदरीस ने हाईकोर्ट में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका दाखिल कर विशेष जज के आदेशों को चुनौती दी. 5 मार्च को याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने 5 मार्च को याची के संदर्भ में विशेष जज के आदेशों पर स्थगन दे दिया था. इस पर हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में विशेष जज ने न्याय मित्र देने वाले अपने आदेश का क्रियान्वयन रोक दिया. अन्य अभियुक्तों को न्याय मित्र देने के अपने आदेश को यथावत रखा.

याचिका पर जब फिर से 15 अप्रैल को हाईकोर्ट में सुनवाई हुई तो न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने विशेष जज पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्होंने 5 मार्च के आदेश को ठीक से नहीं समझा. आगे कहा कि विशेष जज ने इलेक्ट्रानिक साक्ष्यों को देने के संबंध में कोई आदेश क्यों नहीं पारित किया. न्यायालय ने उक्त मामले में याची मोहम्मद इदरीस के विरुद्ध ट्रायल पर भी अग्रिम आदेशों तक के लिए रोक लगा दी है.

यह भी पढ़ें : मुस्लिम अधिवक्ता ने गवाह से नहीं की जिरह, कोर्ट की टिप्पणी- नमाज के लिए न्यायिक कार्य छोड़कर जाना अनुचित

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