गिरिडीह: अभ्रक (माइका) या फिर इसका अवशेष ढिबरा. जिसने लाखों का पेट पाला, जिसकी कमाई से लोगों की जिंदगी बदल गई लेकिन आज यह अभ्रक या ढिबरा अवैध है. इलाके में एक भी वैध खदाने संचालित नहीं है. हालांकि खदानों को संचालित करने का भरोसा पिछले दो दशक से दिया जाता रहा. लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव हरेक बार कोडरमा लोकसभा और धनवार विधानसभा क्षेत्र में एक मुद्दा यह भी रहा.
कभी रौनक था यहां, आज पलायन करने को मजबूर
इस विधानसभा चुनाव में भी यह मुद्दा है. धनवार की जनता बताती हैं कि कभी गावां और तिसरी के इलाके में सौ से अधिक खदानों का संचालन था. सभी खदानों में 200 से अधिक लोग काम करते थे. इसके बाद लोडिंग, ट्रांसपोर्टिंग में अलग लोग रहते थे. गिरिडीह के गावां, तिसरी और देवरी के अलावा कोडरमा, बिहार के नवादा, जमुई में भी इसी कार्य से लोगों का रोजगार चलता था लेकिन फिर नए नियम में ऐसा उलझाया गया कि सभी खदाने बंद हो गई. लोग बेरोजगार होते गए और पलायन करने पर मजबूर होने लगे. अभी यह कार्य पूरी तरह से अवैध हो गया है. लोगों का कहना है कि हर चुनाव में यह कहकर वोट मांगा जाता है कि ढिबरा शुरू होगा लेकिन फिर चुनाव खत्म और नेता अपने काम में व्यस्त हो जाते हैं.
नेता भी मानते हैं कि इसे अहम मुद्दा
यहां पर खड़े भाजपा के उम्मीदवार बाबूलाल मरांडी हो या भाकपा माले के राजकुमार यादव, जेएमएम के निजामुद्दीन हो या फिर चर्चित निर्दलीय प्रत्याशी निरंजन राय. सभी मानते हैं कि ढिबरा वैध हो जाता तो यहां की किस्मत बदल जाती. सभी इस दिशा में प्रयास करने की बात भी कहते हैं. इस व्यापार से जुड़े रहे लोगों का कहना है कि 2015 में केंद्र सरकार ने इसे माइनर मिनरल का दर्जा दे दिया. गिरिडीह जिला चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के निर्मल झुनझुनवाला का कहना है कि माइनर मिनलर में माइक के शामिल होते ही माइका खनन के लिए आंध्र प्रदेश समेत कई राज्यों ने अधिसूचना जारी कर दी, लेकिन झारखंड में कोई पहल नहीं हुई.
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