पटना: बिहार में लोकसभा चुनाव की 40 सीटों में से जदयू इस बार 16 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है. इनमें से 12 सीटों पर सीटिंग सांसदों को मौका दिया है. चार सीट पर नए उम्मीदवार उतारे हैं. जदयू के कई विधायक लोकसभा सीट पर दावेदारी जता रहे थे. टिकट नहीं मिलने पर करीब आधा दर्जन से अधिक सीटों पर ये महागठबंधन के साथ हैं या फिर निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं. जदयू भले ही यह दावा कर रहा है कि सभी 16 सीट पर उनकी जीत होगी, लेकिन जहानाबाद, सिवान, पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार जैसी सीटों पर नीतीश कुमार की परेशानी बढ़ी हुई है.
भागलपुर और किशनगंज में रोड शो : पहले चरण का चुनाव 19 अप्रैल को हो चुका है. पहले चरण में जदयू कोटे की एक भी सीट नहीं थी. दूसरे चरण में बिहार में पांच सीटों पर चुनाव होना है. इन सभी पांचों सीटों पर जदयू के उम्मीदवार हैं. दूसरे चरण में किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका में मतदान होना है. किशनगंज को छोड़कर सभी चारों सीट पर जदयू ने अपने सीटिंग संसद को ही उतारा है. किशनगंज, कटिहार और भागलपुर में कांग्रेस से तो वहीं पूर्णिया और बांका में राजद के उम्मीदवार हैं. इस चरण में जदयू का कांग्रेस और राजद से सीधा मुकाबला है. नीतीश कुमार ने पूरी ताकत लगा दी है. मधेपुरा में कैंप बनाकर लगातार पांचों लोकसभा सीट पर दो-दो जनसभा की. भागलपुर और किशनगंज में रोड शो भी किया.
पूर्णिया में जदयू के लिए रास्ता आसान नहींः पूर्णिया सीट पर निर्दलीय पप्पू यादव भी मैदान में हैं. वे महागठबंधन के बागी हैं. इसके बाद भी उनके चुनाव लड़ने से जदयू के लिए लड़ाई आसान नहीं हो गई है. पूर्णिया में राजद ने जदयू की विधायक बीमा भारती को ही टिकट दिया है. बीमा भारती ने हाल ही में जदयू छोड़ा है. राजनीतिक विश्लेषक रवि अटल का कहना है पप्पू यादव फिलहाल सभी पर भारी पड़ रहे हैं. पप्पू यादव बड़ी उम्मीद से लालू प्रसाद यादव से मुलाकात की थी. उसके बाद कांग्रेस में शामिल हुए थे. लेकिन, उन्हें पूर्णिया से टिकट नहीं मिला, तब निर्दलीय चुनाव मैदान में कूदे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्णिया में सभा जरूर की है. इसके बावजूद जदयू के लिए पूर्णिया टफ है. बांका में लालू प्रसाद यादव के नजदीकी जयप्रकाश यादव से जदयू के उम्मीदवार गिरधारी यादव का मुकाबला है. यदि यादव वोट जदयू के उम्मीदवार काट लेते हैं तो उनकी जीत आसान हो सकती है.
फिल्म अभिनेत्री नेहा शर्मा भी प्रचार अभियान मेंः इसी तरह किशनगंज में जदयू का मुकाबला कांग्रेस से है. लेकिन, एआईएमआईएम की तरफ से अख्तरुल ईमान के उतरने से लड़ाई त्रिकोणीय हो गई है. यहां भी जदयू के लिए चुनौती है. 2019 में किशनगंज एकमात्र सीट थी जिस पर महागठबंधन की तरफ से कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. इस बार भी कांग्रेस की स्थिति जदयू के मुकाबले बेहतर है. रवि अटल ने बताया कि कटिहार की सीट भी जदयू के लिए इस बार काफी मुश्किलों भरी है. जदयू ने फिर से दुलालचंद्र गोस्वामी को टिकट दिया है. इस बार मुकाबला उनका तारिक अनवर से है. भागलपुर सीट पर भी अजीत शर्मा चैलेंज दे रहे हैं. अजीत शर्मा की बेटी नेहा शर्मा भी चुनाव प्रचार में कूद पड़ी है. हालांकि राजद नेता बुलो मंडल के जदयू में शामिल होने के बाद जातीय और सामाजिक समीकरण जरूर जदयू के पक्ष में है.
मधेपुरा और झंझारपुर में जदयू मजबूतः तीसरे चरण का चुनाव 5 सीटों पर 7 मई को चुनाव होना है. झंझारपुर, सुपौल, अररिया, मधेपुरा और खगड़िया में चुनाव होगा. इन 5 सीटों में से जदयू झंझारपुर, सुपौल और मधेपुरा में चुनाव लड़ रहा है. जदयू का झंझारपुर में वीआईपी से तो सुपौल और मधेपुरा में आरजेडी से मुकाबला है. राजनीतिक विश्लेषक रवि अटल का कहना है मधेपुरा से दिनेश चंद्र यादव इस बार भी आसानी से जदयू के लिए सीट निकाल लेंगे. झंझारपुर में वीआईपी ने पहले गुलाब चंद्र यादव को टिकट देने की बात कही थी, लेकिन सुमन सेठ को टिकट दे दिया. गुलाबचंद्र यादव बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं. इसलिए जदयू के लिए थोड़ी राहत की बात है. यही नहीं क्षेत्र के पूर्व सांसद देवेंद्र यादव भी राजद से इस्तीफा दे चुके हैं. उनकी नाराजगी भी महागठबंधन को झेलनी पड़ सकती है.
ललन सिंह को भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी झेलनी पड़ सकतीः चौथे चरण में 5 सीटों पर 13 मई को चुनाव होना है. इन 5 सीटों में से जदयू के कोटे में केवल मुंगेर सीट है. इस पर जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सीटिंग सांसद ललन सिंह एक बार फिर से चुनाव मैदान में हैं. उनका राजद से मुकाबला है. राजनीति के जानकार रवि अटल का कहना है मुंगेर सीट इसलिए चर्चा में है क्योंकि वहां बाहुबली अशोक महतो की पत्नी अनीता कुमारी चुनाव लड़ रही है. ललन सिंह के लिए राहत की बात यही है कि अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी इस बार चुनाव नहीं लड़ रही हैं. लेकिन, ललन सिंह जिस प्रकार से महागठबंधन में रहते प्रधानमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ बयान देते रहे हैं उससे भाजपा कार्यकर्ताओं में नाराजगी है. इसका खामियाजा उन्हें उठाना पड़ सकता है. इसीलिए प्रधानमंत्री का कार्यक्रम उन्होंने विशेष रूप से आग्रह करके करवाया है.
सुनील पिंटू को टिकट नहीं मिलाः पांचवे चरण में 5 सीटों पर 20 मई को वोट डाला जाना है. सीतामढ़ी, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, सारण और हाजीपुर में चुनाव है. इन पांच सीटों में से सीतामढ़ी सीट पर जदयू चुनाव लड़ रहा है. 2019 में सीतामढ़ी में जदयू के सुनील कुमार पिंटू सांसद चुने गए थे. तब सुनील कुमार पिंटू भाजपा के सदस्य थे. नीतीश कुमार की पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था. जब जदयू और भाजपा अलग हुआ था तो सुनील कुमार पिंटू के विरोधी बयान आए थे. इस बार नीतीश कुमार ने सुनील कुमार पिंटू को टिकट नहीं दिया है. सीतामढ़ी से विधान परिषद के सभापति देवेश चंद्र ठाकुर को टिकट मिला है. एक खेमा इसको लेकर नाराज है. सुनील कुमार पिंटू की भी नाराजगी का खामियाजा जदयू को उठाना पड़ सकता है.
शहाबुद्दीन की पत्नी ने बढ़ाई मुश्किलः छठा चरण 8 सीटों पर 25 मई को चुनाव होना है. ये सीटें हैं वाल्मीकिनगर, पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, शिवहर, वैशाली, गोपालगंज, महाराजगंज और सिवान. इन 8 सीटों में से गोपालगंज, बाल्मीकि नगर, सिवान, शिवहर में जदयू चुनाव लड़ रहा है. सिवान में बाहुबली शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं. इसके कारण यहां त्रिकोणीय मुकाबला हो गया है. जदयू ने इस सीट से नया उम्मीदवार दिया है. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रमेश कुशवाहा को चुनाव से ठीक पहले जदयू में शामिल करा कर उनकी की पत्नी विजयलक्ष्मी को उम्मीदवार बनाया है. कविता सिंह का टिकट काटा गया है. राजद ने पूर्व विधान सभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी को टिकट दिया है. पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चंद्रभूषण राय का कहना है सिवान में जदयू के लिए लड़ाई आसान नहीं है. शहाबुद्दीन की पत्नी ने जदयू और राजद दोनों के लिए मुश्किलें बढ़ा दी है.
शिवहर में वैश्य वोटर नाराजः शिवहर से जदयू ने इस बार बाहुबली आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद को चुनाव मैदान में उतारा है. शिवहर सीट पहले बीजेपी के पास थी. लेकिन इस बार जदयू ने गया और काराकाट के बदले यह सीट ली है. शिवहर से पहले बीजेपी की सांसद रमा देवी थी. रमा देवी ने खुलकर कभी विरोध नहीं किया है. इसके बाद भी जदयू के लिए इस सीट पर जीत दर्ज करना आसान नहीं होगा. राजद ने रितु जायसवाल को मौका दिया है. रितु जायसवाल वैश्य समाज से आती हैं. चूंकि वहां से एक वैश्य का टिकट काटा गया है, ऐसे में वैश्य जाति के वोटरों की नाराजगी एनडीए उम्मीदवार को झेलनी पड़ सकती है, ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं. हालांकि आनंद मोहन का इस क्षेत्र में दबदबा रहा है. वे पहले भी चुनाव जीतते रहे हैं. फिलहाल, आनंद मोहन का बेटा चेतन आनंद यहां से विधायक हैं. इसलिए जदयू यह सीट निकाल ले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी.
जहानाबाद में त्रिकोणीय मुकाबलाः सातवां चरण 8 सीटों पर 1 जून को चुनाव होगा. नालंदा, पटना साहिब, पाटलिपुत्र, आरा, बक्सर, सासाराम, काराकाट और जहानाबाद. जहानाबाद और नालंदा पर जदयू लड़ रहा है. प्रोफेसर चंद्रभूषण राय का कहना है जहानाबाद में जदयू का आरजेडी से मुकाबला है. वही नालंदा में माले ने उम्मीदवार दिया है. नालंदा नीतीश कुमार का गृह क्षेत्र है. इसलिए यहां तो कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए. लेकिन जहानाबाद जदयू के लिए सबसे कठिन सीट हो गया है. जदयू ने निवर्तमान सांसद चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी को फिर से मैदान में उतारा है. यहां से अरुण कुमार भी बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले हैं. ऐसे में यहां भी त्रिकोणीय मुकाबला होना तय माना जा रहा है. आरजेडी से सुरेंद्र यादव मजबूत कैंडिडेट माने जाते हैं. पिछली बार भी केवल 1700 वोटों से ही चुनाव हारे थे.
"इस बार बिहार में स्थित कुछ अलग है. ऐसे तो पूरे देश में मोदी के नाम पर ही एनडीए को वोट मिलना तय है. बिहार में भी उन्हीं के नाम पर वोट मिलेगा. लेकिन कई सीटों पर लड़ाई आसान नहीं है. पूर्णिया, सिवान, किशनगंज, जहानाबाद और झंझारपुर में त्रिकोणीय मुकाबला साफ दिख रहा है. 2019 वाली स्थिति बिहार में इस बार दिख नहीं रही है."- चंद्रभूषण राय, प्रोफेसर, पटना विश्वविद्यालय
सभी सीटों पर जदयू का दावाः एनडीए को 2019 में 40 में से 39 सीटों पर जीत मिली थी. जदयू को 17 में से 16 सीट पर जीत मिली थी. इस बार जदयू को एक सीट काम मिली है. 16 में से जदयू ने 12 सीट पर सिटिंग संसद को ही उतारा है. जिसमें नालंदा, जहानाबाद, पूर्णिया, मुंगेर, झंझारपुर, मधेपुर, भागलपुर, बांका, सुपौल, कटिहार, बाल्मीकि नगर, गोपालगंज जबकि चार सीट शिवहर, सिवान, सीतामढ़ी और किशनगंज में नए उम्मीदवार हैं. जदयू के वरिष्ठ नेता राजीव रंजन का कहना है मुकाबला त्रिकोणीय हो या आमने-सामने का जदयू सभी सीटों पर चुनाव जीतेगा. वही जदयू प्रवक्ता कमल नोपानी का कहना है कि पूर्णिया में पप्पू यादव को लेकर वहां के व्यापारी सब जानते हैं. 2005 से पहले क्या स्थिति थी खासकर व्यावसायिक वर्ग कितनी मुश्किल में था इसलिए वहां की जनता सही फैसला लेगी.
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