सरगुजा: कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व पूरा देश मना रहा है. इस बीच ईटीवी भारत आपको कान्हा के एक एतिहासिक मंदिर के बारे में बताने जा रहा है. इस मंदिर से कई रहस्य भी जुड़े हुए हैं. दरअसल, हम बात कर रहे हैं सरगुजा पैलेस प्रांगण में स्थित संभाग के सबसे पुराने राधा-बल्लभ मंदिर की. यहां भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी बड़े धूम धाम से मनाई जा रही है. भक्तों की भीड़ यहां देखते ही बन रही है.
राजमाता ने कृष्ण मंदिर को बनाया अपना डेरा: इस बारे में सरगुजा रियासत के जानकार गोविंद शर्मा बताते हैं कि, "ये मंदिर 150 साल पुराना है. सरगुजा की राजमाता भगवती देवी ने राज पाट छोड़कर कृष्ण भक्ति में इस मंदिर को ही अपना डेरा बना लिया था. वो यहां कठिन तप करती थीं. लोग उन्हें माई साहब कहते थे. माई साहब कड़कड़ाती ठंड के मौसम में 108 कुंओं के ठंडे पानी से स्नान करती थी. भीषण गर्मी में पंचाग्नि लेती थी. ये भगवान कृष्ण की भक्ति में ही मंदिर में आकर रहने लगी."
"अक्टूबर 1983 में सरगुजा रघुनाथ पैलेस परिसर में स्थित माई साहब भगवती देवी के कृष्ण मंदिर में जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती भी आ चुके हैं. यहां उनके लिये विशेष रूप से कुटिया बनाई गई थी. वे राजमाता देवेंद्र कुमारी और सरगुजा राजपरिवार के आतिथ्य में अंबिकापुर में रहे. -गोविन्द शर्मा, सरगुजा के वरिष्ठ इतिहासकार
जानिए कौन थीं राजमाता माई साहब: दरअसल, सरगुजा के महराज रामानुज शरण सिंह देव की माता थी माई साहब. ये मिर्जापुर के पास विजयगढ़ रियासत की राजकुमारी थी. इनका विवाह सरगुजा में महाराज रघुनाथ शरण सिंहदेव से हुआ था. लेकिन महाराज के निधन के बाद राजमाता राजमहल छोड़ कर कृष्ण मंदिर में ही रहने लगीं.