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तीन नए आपराधिक कानूनों का जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने किया विरोध, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाला बताया - Jamaat e Islami Hind oppos new law

Jamaat e Islami Hind oppos new 3 criminal laws: जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने देश में 1 जुलाई 2024 से लागू हुए तीन नए अपराधिक कानूनों का विरोध किया है. संगठन ने कहा है कि पुराने राजद्रोह कानून की तरह, यह नई धारा भी सुरक्षा चिंताओं की आड़ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति को प्रभावित करेगी.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Jul 6, 2024, 5:48 PM IST

तीन नए आपराधिक कानूनों का जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने किया विरोध
तीन नए आपराधिक कानूनों का जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने किया विरोध (ETV BHARAT REPORTER)

नई दिल्ली: ब्रिटिश कालीन तीन कानून को हटाकर संसद में साल 2023 में पास तीन नए कानून को 1 जुलाई 2024 से लागू कर दिया गया है. देश भर में सीआरपीसी की जगह जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम को लागू किया गया है. देश में लागू इन तीन नए कानूनों का जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने विरोध किया है.

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने आपराधिक न्याय प्रणाली में होने वाले बदलावों पर व्यक्त की चिंता
जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष इंजीनियर सलीम की उपस्थिति में जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में होने वाले बदलावों पर चिंता व्यक्त की है. कहा है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को 1 जुलाई 2024 से लागू कर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) कानूनों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है.

1 जुलाई 2024 से पहले और बाद में दर्ज मामले अलग-अलग कानूनों के अंतर्गत आने से भ्रम की स्थिति

1 जुलाई 2024 से पहले और बाद में दर्ज मामले अलग-अलग कानूनों के अंतर्गत आएंगे. दो समानांतर आपराधिक न्याय प्रणालियां अस्तित्व में आएंगी, जिससे कानूनी प्रक्रिया और जटिल हो जाएगी तथा पहले से ही कार्यभार से दबी न्यायपालिका पर ये अधिभार होगा. इससे भ्रम की स्थिति पैदा होगी और न्याय मिलने में देरी होगी. जमाअत-ए-इस्लामी हिंद का मानना है कि आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम में साधारण संशोधन, पूरे कानून को फिर से लिखने की तुलना में अधिक उपयुक्त होता

संसद में उचित चर्चा के बगैर दिसंबर 2023 में किया गया पारित

इन नए कानूनों में कई समस्याएं हैं. सबसे पहले, इन्हें संसद में उचित चर्चा के बगैर दिसंबर 2023 में पारित कर दिया गया, जब 145 विपक्षी सदस्यों को सदन से निलंबित कर दिया गया था. उदाहरण के लिए, भले ही सरकार पुराने राजद्रोह कानून को खत्म करने का दावा करती है, लेकिन एक नई, अधिक कठोर धारा (बीएनएस की धारा 152) पेश की गई है. पुराने राजद्रोह कानून की तरह, यह नई धारा भी सुरक्षा चिंताओं की आड़ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति को प्रभावित करेगी. साथ ही इसमें झूठे मामले दर्ज करने के लिए पुलिस अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने का कोई प्रावधान नहीं है.

नए कानून से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा

नये कानून के तहत पुलिस को 3 से 7 साल के कारावास की सजा वाले अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज करने का अधिकार दिया गया है. इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा और वंचित वर्गों के लिए एफआईआर दर्ज कराना कठिन हो जाएगा. पुलिस अब 60 से 90 दिनों की अवधि के दौरान किसी भी समय 15 दिनों तक की हिरासत का अनुरोध कर सकती है. इससे लंबे समय तक हिरासत में रहना पड़ सकता है और सत्ता का दुरुपयोग हो सकता है, जिससे नागरिक स्वतंत्रता कमजोर हो सकती है.बता दें तीन नए कानूनो को केंद्र की मोदी सरकार के द्वारा दिसंबर 2023 में पास किया गया था जिसके बाद इसको लागू करने की समय सीमा 1 जुलाई तय की गईं थी और आज 1 जुलाई से ये तीनों कानून देश भर में एक साथ लागू किए गए हैं.

ये भी पढ़ें : नए आपराधिक कानून विधेयक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

2027 तक न्याय प्रणाली को डिजिटल बनाने के प्रयास सराहनीय

हालांकि 2027 तक न्याय प्रणाली (एफआईआर, निर्णय आदि) को डिजिटल बनाने के प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन यह उन गरीब और हाशिए पर पड़े वर्गों के लिए भेदभावपूर्ण होगा, जिनके पास टेक्नोलॉजी और इंटरनेट तक पहुंच नहीं है. जमाअत-ए-इस्लामी हिंद हमारी कानूनी प्रणाली को उपनिवेशवाद से मुक्त करने के वास्तविक प्रयासों का समर्थन करती है, लेकिन पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को नागरिकों के प्रति जवाबदेह बनाए बिना वास्तविक उपनिवेशवाद से मुक्ति नहीं हो सकती.

ये भी पढ़ें : नए कानूनों में मिलेगी ऑनलाइन FIR, फ्री इलाज और फास्ट-ट्रैक इंवेस्टिगेशन की सुविधा, जानें और क्या है इनमें खास

नई दिल्ली: ब्रिटिश कालीन तीन कानून को हटाकर संसद में साल 2023 में पास तीन नए कानून को 1 जुलाई 2024 से लागू कर दिया गया है. देश भर में सीआरपीसी की जगह जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम को लागू किया गया है. देश में लागू इन तीन नए कानूनों का जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने विरोध किया है.

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने आपराधिक न्याय प्रणाली में होने वाले बदलावों पर व्यक्त की चिंता
जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष इंजीनियर सलीम की उपस्थिति में जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में होने वाले बदलावों पर चिंता व्यक्त की है. कहा है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को 1 जुलाई 2024 से लागू कर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) कानूनों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है.

1 जुलाई 2024 से पहले और बाद में दर्ज मामले अलग-अलग कानूनों के अंतर्गत आने से भ्रम की स्थिति

1 जुलाई 2024 से पहले और बाद में दर्ज मामले अलग-अलग कानूनों के अंतर्गत आएंगे. दो समानांतर आपराधिक न्याय प्रणालियां अस्तित्व में आएंगी, जिससे कानूनी प्रक्रिया और जटिल हो जाएगी तथा पहले से ही कार्यभार से दबी न्यायपालिका पर ये अधिभार होगा. इससे भ्रम की स्थिति पैदा होगी और न्याय मिलने में देरी होगी. जमाअत-ए-इस्लामी हिंद का मानना है कि आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम में साधारण संशोधन, पूरे कानून को फिर से लिखने की तुलना में अधिक उपयुक्त होता

संसद में उचित चर्चा के बगैर दिसंबर 2023 में किया गया पारित

इन नए कानूनों में कई समस्याएं हैं. सबसे पहले, इन्हें संसद में उचित चर्चा के बगैर दिसंबर 2023 में पारित कर दिया गया, जब 145 विपक्षी सदस्यों को सदन से निलंबित कर दिया गया था. उदाहरण के लिए, भले ही सरकार पुराने राजद्रोह कानून को खत्म करने का दावा करती है, लेकिन एक नई, अधिक कठोर धारा (बीएनएस की धारा 152) पेश की गई है. पुराने राजद्रोह कानून की तरह, यह नई धारा भी सुरक्षा चिंताओं की आड़ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति को प्रभावित करेगी. साथ ही इसमें झूठे मामले दर्ज करने के लिए पुलिस अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने का कोई प्रावधान नहीं है.

नए कानून से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा

नये कानून के तहत पुलिस को 3 से 7 साल के कारावास की सजा वाले अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज करने का अधिकार दिया गया है. इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा और वंचित वर्गों के लिए एफआईआर दर्ज कराना कठिन हो जाएगा. पुलिस अब 60 से 90 दिनों की अवधि के दौरान किसी भी समय 15 दिनों तक की हिरासत का अनुरोध कर सकती है. इससे लंबे समय तक हिरासत में रहना पड़ सकता है और सत्ता का दुरुपयोग हो सकता है, जिससे नागरिक स्वतंत्रता कमजोर हो सकती है.बता दें तीन नए कानूनो को केंद्र की मोदी सरकार के द्वारा दिसंबर 2023 में पास किया गया था जिसके बाद इसको लागू करने की समय सीमा 1 जुलाई तय की गईं थी और आज 1 जुलाई से ये तीनों कानून देश भर में एक साथ लागू किए गए हैं.

ये भी पढ़ें : नए आपराधिक कानून विधेयक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

2027 तक न्याय प्रणाली को डिजिटल बनाने के प्रयास सराहनीय

हालांकि 2027 तक न्याय प्रणाली (एफआईआर, निर्णय आदि) को डिजिटल बनाने के प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन यह उन गरीब और हाशिए पर पड़े वर्गों के लिए भेदभावपूर्ण होगा, जिनके पास टेक्नोलॉजी और इंटरनेट तक पहुंच नहीं है. जमाअत-ए-इस्लामी हिंद हमारी कानूनी प्रणाली को उपनिवेशवाद से मुक्त करने के वास्तविक प्रयासों का समर्थन करती है, लेकिन पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को नागरिकों के प्रति जवाबदेह बनाए बिना वास्तविक उपनिवेशवाद से मुक्ति नहीं हो सकती.

ये भी पढ़ें : नए कानूनों में मिलेगी ऑनलाइन FIR, फ्री इलाज और फास्ट-ट्रैक इंवेस्टिगेशन की सुविधा, जानें और क्या है इनमें खास

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