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"एक राष्ट्र, एक चुनाव से मजबूत होंगे लोकतांत्रिक मूल्य, जनहित के लिए मिलेगा अधिक समय" - Jairam on One nation one election

One nation one election: नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने केंद्रीय कैबिनेट द्वारा "एक राष्ट्र, एक चुनाव" के प्रस्ताव को सहमति प्रदान करने को लिए खुशी जाहिर की है. उन्होंने कहा ये समय की जरूरत थी.

जयराम ठाकुर, नेता प्रतिपक्ष
जयराम ठाकुर, नेता प्रतिपक्ष (फाइल फोटो)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Sep 18, 2024, 10:47 PM IST

शिमला: नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने शिमला से जारी बयान में केंद्रीय कैबिनेट द्वारा "एक राष्ट्र, एक चुनाव" के प्रस्ताव को सहमति प्रदान करने को युगांतकारी कदम बताते हुए स्वागत किया. उन्होंने कहा देश के लोकतांत्रिक हितों को सशक्त करने के लिए "एक राष्ट्र, एक चुनाव" समय की जरूरत थी जिसे पूरा करने का कार्य नरेंद्र मोदी की सरकार ने किया है.

"एक राष्ट्र, एक चुनाव" की नीति लागू होने से जनहित के कामों में सुगमता होगी. आचार संहिता के कारण विकास कार्यों में देरी नहीं होगी. चुनाव का खर्च घटेगा जो देश के विकास के कार्यों में खर्च हो सकेगा. यह बहुत बड़ा फैसला है. इतने बड़े लोकतांत्रिक सुधार सिर्फ भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही कर सकते हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा समेत समस्त केंद्रीय नेतृत्व का आभार जताया.

नेता प्रतिपक्ष ने कहा यह कोई पहली बार नहीं है. जब देश में एक साथ सभी चुनाव होंगे. 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के बाद लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए पहली बार आम चुनाव 1951-1952 में एक साथ आयोजित किए गए थे. यह प्रथा बाद के तीन लोकसभा चुनावों में 1967 तक जारी रही, जिसके बाद इसे बाधित कर दिया गया.

यह चक्र पहली बार 1959 में टूटा जब केंद्र ने तत्कालीन केरल सरकार को बर्खास्त करने के लिए संविधान के अनुच्छेद-356 को लागू किया. इसके बाद पार्टियों के बीच दल-बदल और अन्य कारणों से साल 1960 के बाद कई विधानसभाएं भंग हो गईं जिसके कारण अंततः लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए अलग-अलग चुनाव हुए.

वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, आंध्र प्रदेश और ओडिशा राज्यों में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ होते हैं. 1999 में न्यायमूर्ति बीपी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में भारतीय विधि आयोग ने भी एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव करवाने की वकालत की थी. नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि केंद्र सरकार ने "एक राष्ट्र, एक चुनाव" की संभावनाओं का अध्ययन करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक समिति का निर्माण किया था जिसमें गृहमंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष सी कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी शामिल थे.

जयराम ठाकुर ने कहा कि एक राष्ट्र, एक चुनाव से सार्वजनिक धन की बचत होगी. प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर तनाव कम होगा. सरकारी नीतियों का समय पर कार्यान्वयन होगा. विकास गतिविधियों पर प्रशासनिक ध्यान केंद्रित होगा. चुनाव प्रचार के लिए ज्यादा समय मिलेगा.

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रत्येक वर्ष कम-से-कम एक चुनाव होता है. इन चुनावों के चलते विभिन्न प्रकार के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नुकसान होते हैं. आर्थिक लागत के साथ-साथ चुनाव के दौरान सरकारी तंत्र चुनावी ड्यूटी और संबंधित कार्यों के कारण अपने नियमित कर्तव्यों का पालन नहीं कर पाता है.

ये भी पढ़े: राहुल गांधी को आतंकवादी बताने पर भड़के सीएम सुक्खू, कहा- भाजपा अपने छुटभैया नेताओं से करवा रही टिप्पणी

ये भी पढ़ें: सुखविंदर सरकार के सामने नई चुनौती, अगले साल रिटायर होंगे 14 एचएएस अफसर, कैसे चलेगा विभागों का काम?

शिमला: नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने शिमला से जारी बयान में केंद्रीय कैबिनेट द्वारा "एक राष्ट्र, एक चुनाव" के प्रस्ताव को सहमति प्रदान करने को युगांतकारी कदम बताते हुए स्वागत किया. उन्होंने कहा देश के लोकतांत्रिक हितों को सशक्त करने के लिए "एक राष्ट्र, एक चुनाव" समय की जरूरत थी जिसे पूरा करने का कार्य नरेंद्र मोदी की सरकार ने किया है.

"एक राष्ट्र, एक चुनाव" की नीति लागू होने से जनहित के कामों में सुगमता होगी. आचार संहिता के कारण विकास कार्यों में देरी नहीं होगी. चुनाव का खर्च घटेगा जो देश के विकास के कार्यों में खर्च हो सकेगा. यह बहुत बड़ा फैसला है. इतने बड़े लोकतांत्रिक सुधार सिर्फ भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही कर सकते हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा समेत समस्त केंद्रीय नेतृत्व का आभार जताया.

नेता प्रतिपक्ष ने कहा यह कोई पहली बार नहीं है. जब देश में एक साथ सभी चुनाव होंगे. 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के बाद लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए पहली बार आम चुनाव 1951-1952 में एक साथ आयोजित किए गए थे. यह प्रथा बाद के तीन लोकसभा चुनावों में 1967 तक जारी रही, जिसके बाद इसे बाधित कर दिया गया.

यह चक्र पहली बार 1959 में टूटा जब केंद्र ने तत्कालीन केरल सरकार को बर्खास्त करने के लिए संविधान के अनुच्छेद-356 को लागू किया. इसके बाद पार्टियों के बीच दल-बदल और अन्य कारणों से साल 1960 के बाद कई विधानसभाएं भंग हो गईं जिसके कारण अंततः लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए अलग-अलग चुनाव हुए.

वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, आंध्र प्रदेश और ओडिशा राज्यों में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ होते हैं. 1999 में न्यायमूर्ति बीपी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में भारतीय विधि आयोग ने भी एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव करवाने की वकालत की थी. नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि केंद्र सरकार ने "एक राष्ट्र, एक चुनाव" की संभावनाओं का अध्ययन करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक समिति का निर्माण किया था जिसमें गृहमंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष सी कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी शामिल थे.

जयराम ठाकुर ने कहा कि एक राष्ट्र, एक चुनाव से सार्वजनिक धन की बचत होगी. प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर तनाव कम होगा. सरकारी नीतियों का समय पर कार्यान्वयन होगा. विकास गतिविधियों पर प्रशासनिक ध्यान केंद्रित होगा. चुनाव प्रचार के लिए ज्यादा समय मिलेगा.

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रत्येक वर्ष कम-से-कम एक चुनाव होता है. इन चुनावों के चलते विभिन्न प्रकार के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नुकसान होते हैं. आर्थिक लागत के साथ-साथ चुनाव के दौरान सरकारी तंत्र चुनावी ड्यूटी और संबंधित कार्यों के कारण अपने नियमित कर्तव्यों का पालन नहीं कर पाता है.

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