जयपुर. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) के 17वें संस्करण में साहित्य के साथ संवाद का समागम देखने को मिला. एक भाषा से दूसरी भाषा में किताबों का कन्वर्जन भी देखने को मिला. इसी क्रम में अंग्रेजी भाषा की उपन्यासकार शिवानी सिब्बल की किताब 'इक्वेशंस' का हिंदी वर्जन 'सियासत' के नाम से लॉन्च किया गया, जिसमें 1980 के दशक की दिल्ली बैकग्राउंड पर आधारित आधुनिक युग की जटिलताओं में बदलते शहर की कहानी को दर्शाया गया है. मूलरूप से अंग्रेजी भाषा में लिखा गया ये उपन्यास ‘इक्वेशंस’ शीर्षक से प्रकाशित है. हिन्दी में इसका अनुवाद प्रभात रंजन ने किया है.
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में शिवानी सिब्बल के डेब्यू नॉवेल इक्वेशंस के हिन्दी संस्करण ‘सियासत’ की लॉन्चिंग के दौरान उन्होंने कहा कि इस नॉवेल में दो अलग-अलग बैकग्राउंड से आने वाले लोगों की कहानी है, जो कुछ हासिल करना चाहते हैं. दोनों की चुनौतियां और बाधाएं अलग हैं. वो खुद दिल्ली में पली-बढ़ी हैं और दिल्ली को नजदीक से जाना है, लेकिन पहले की दिल्ली से आज की दिल्ली बिल्कुल अलग है. वो बदल चुकी है, उसी बदलाव को कैद करते हुए इस किताब में उकेरा है और अपने एक्सपीरियंस को भी इस किताब के जरिए साझा किया.
फर्श से अर्श तक पहुंचने की जर्नी : शिवानी सिब्बल ने कहा कि उपन्यास ‘सियासत’ निजी महत्त्वाकांक्षाओं, पारिवारिक सीमाओं और सामाजिक बदलावों की एक दिलचस्प कहानी है. नए भारत के बदलते यथार्थ को लेखक ने इस उपन्यास में बारीकी से चित्रित किया है. उन्होंने बताया कि दिल्ली के व्यावसायिक और राजनीतिक परिवारों की गोपनीय दुनिया का परीक्षण करता ये उपन्यास भारतीय परिवारों की जटिलताओं, सीमाओं और महत्वकांक्षाओं के टकराव को बयान करता है. इसमें वर्ग, सत्ता और आधुनिक भारत के बदलते आयाम का चित्रण किया गया है. साथ ही फर्श से अर्श तक पहुंचने की ये एक जर्नी है.
कहानी के केंद्र में लुटियंस दिल्ली : सत्र में सत्यानन्द निरुपम ने कहा कि ये किताब हिन्दी पट्टी की सियासत के बारे में है, जो न सिर्फ अतीत को सामने ला रही है, बल्कि भविष्य की झलक भी दिखाती है. ये बदलती हुई सामाजिक संरचना की एक खूबसूरत कहानी है. सत्र के दौरान मौजूद रहे लेखक और अनुवादक प्रभात रंजन ने नॉवेल के बारे में कहा कि कहानी के केंद्र में लुटियंस दिल्ली है. जिसमें एक छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय के इवनिंग कॉलेज में हिंदी ऑनर्स पढ़ता है, जो नायक के तौर पर उभर कर सामने आता है. ये किताब लुटियंस दिल्ली के बदलाव की कहानी भी बयान करती है.