पटना: ओड़िशा के पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ जी का मंदिर समस्त दुनिया में प्रसिद्ध है. यह मंदिर हिंदुओं के चारों धाम में तीर्थ में से एक है. कहते हैं कि मरने से पहले हर हिंदू को चार धाम की यात्रा करनी चाहिए, इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है. जगन्नाथ पुरी में भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण का मंदिर है, जो बहुत विशाल और कई सालों पुराना है. इस मंदिर में लाखों भक्त हर साल दर्शन के लिए जाते हैं. इस जगह का एक मुख्य आकर्षण जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा भी है. उसी तर्ज पर पटना के इस्कॉन मंदिर में भी श्री जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाएगी.
इस्कॉन मंदिर की ओर से प्रबंध: पटना इस्कॉन मंदिर के अध्यक्ष कृष्ण कृपा दास ने बताया कि श्री जगन्नाथ रथ यात्रा को लेकर इस्कॉन मंदिर को रंग बिरंगी लाइटों से सजाया गया है. मंदिर में पंडाल लगाए गए हैं धूप और बारिश से भक्तों को राहत मिलेगी. रथ यात्रा को लेकर रस को फूलों से सजाया गया है और फूल को कोलकाता बेंगलुरु से मंगाया गया है. रथ को विशेष रूप से सजाने के साथ-साथ पेंट भी की गई है. आगे हरे कृष्ण के साथ-साथ जगन्नाथ जय बलदेव और जय सुभद्रा लिखा हुआ है. उन्होंने बताया कि रथ में चैतन्य महाप्रभु की पेंटिंग लगाई जाएगी और भक्तों के प्रसाद के लिए मूंगफली मिश्री सॉफ का पैकेट तैयार किया.
"इस्कॉन मंदिर से 2:30 बजे भगवान जगन्नाथ की यात्रा शुरू होगी. 40 फीट ऊंची हाइड्रोलिक सिस्टम से बने रथ पर भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन संग विराजमान होंगे. जिस-जिस रास्ते से जगन्नाथ जी की यात्रा गुजरेगी, वहां पर पुष्प वर्षा होगी. भगवान की आरती उतारी जाएगी. बुध मार्ग स्थित इस्कॉन मंदिर से रथ यात्रा शुरू होगी. तारामंडल, विद्युत भवन, पटना हाई कोर्ट, बिहार म्यूजियम, पटना वीमेंस कॉलेज होते हुए इनकम टैक्स गोलंबर, कोतवाली ,डाक बंगला चौराहा, मौर्यालोक से फिर कोतवाली होते हुए इस्कॉन मंदिर पहुंचेगी."- कृष्ण कृपा दास, अध्यक्ष, इस्कॉन मंदिर, पटना
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा की कहानी: कुछ लोग का मानना है कि कृष्ण की बहन सुभद्रा अपने मायके आई है. अपने भाइयों से नगर भ्रमण करने की इच्छा व्यक्त करती हैं. तब कृष्ण बलराम सुभद्रा के साथ रथ में सवार होकर नगर घूमने जाते हैं. इसी के बाद से रथ यात्रा का पर्व शुरू है. इसके अलावा कहते हैं कि गुड़ींचा मंदिर में स्थित देवी प्रिंस की मासी हैं, जो तीनों को अपने घर आने का निमंत्रण देती है. श्री कृष्ण भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मासी के घर पर 10 दिन के लिए रहने जाते हैं. श्री कृष्ण के मामा कंस उन्हें मथुरा बुलाते हैं. इसके लिए कंस गोकुल में सारथी के साथ रथ भिजवाते है. श्री कृष्ण अपने भाई-बहन के साथ रात में सवार होकर मथुरा जाते हैं, जिसके बाद से रथ यात्रा की शुरुआत हुई.
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