जबलपुर। कपड़ा मनुष्य की तीन प्रमुख जरूरतों में से एक है. लेकिन कपड़े के उपयोग में भी बड़ी भिन्नता है. एक तरफ अमीर वर्ग जरूरत से ज्यादा कपड़ा खरीद रहा है, वहीं दूसरी तरफ समाज में एक तबका ऐसा भी है जिनके पास सही तरीके से तन ढकने के लिए कपड़े नहीं हैं. जबलपुर की एक समाजसेवी संस्था कपड़े को लेकर अनोखा प्रयोग कर रही है. वह समाज के समृद्ध लोगों से उनका उपयोग किया गया पुराना कपड़ा इकट्ठा करती है और इससे दूर दराज गरीब इलाकों में बांट देती हैं. वहीं, इसमें से कुछ कपड़ों के सुंदर बैग, नवजात शिशुओं के लिए किट और दूसरे सामान भी बनाए जाते हैं. इन्हें यह संस्था खुद डिजाइन करती है और फिर इन्हें दूरदराज इलाकों में जरूरतमंदों को बांटा जाता है.
रीसायकल टू सेव रिसोर्स फाउंडेशन
जबलपुर की एक स्वयं सेवी संस्था 'रीसायकल टू सेव रिसोर्स फाउंडेशन' इसी कपड़े पर काम कर रहा है. इस संस्था की सामाजिक कार्यकर्ता अनघा पॉल ने बताया कि ''उन्होंने अपने आसपास के समाज में कपड़े के इस दुरुपयोग को देखा था. जिसमें कुछ लोगों के पास जरूरत से ज्यादा कपड़े हैं और कुछ लोग कपड़ों के लिए तरस रहे हैं. इसलिए इन्होंने एक अनोखी पहल शुरू की, जिसमें यह अपने आसपास के लोगों से उनके पुराने कपड़े इकट्ठे करती हैं और इन कपड़ों को जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाया जाता है.'' अनघा पाल बताती हैं कि ''बहुत से कपड़े तो ऐसे होते हैं जिनमें कुछ करने की जरूरत नहीं होती, इन्हें धोकर साफ किया जाता है. अच्छी पैकिंग करने के बाद आदिवासी इलाकों में बांट दिया जाता है.''
नवजात शिशुओं के लिए किट
वहीं, कुछ कपड़े ऐसे होते हैं जिसका पूरा कपड़ा साबुत नहीं होता लेकिन कपड़े का कुछ हिस्सा निकाला जा सकता है. अनघा पॉल की दूसरी सहयोगी महिलाएं इन पुराने कपड़ों को नवजात शिशुओं के लिए एक किट बनाने में इस्तेमाल करती हैं. जिसमें लगभग 16 कपड़े होते हैं इसमें बच्चों की टोपी उसके पहनने के कपड़े उसके ओढ़ने बिछाने तक के कपड़े होते हैं.
जींस पैंट से बैग
इसके अलावा पुराने कपड़ों से ही बैग्स बनाए जाते हैं. खासतौर पर जींस के पुराने पेंट से कई किस्म के बैग बनाए जा रहे हैं. अनघा पाल बताती हैं कि ''उनके बैग्स इतने सुंदर होते हैं कि विदेश से आने वाले कुछ लोग भी गिफ्ट देने के लिए इन बैंग्स को खरीद कर ले जाते हैं.''
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कई क्विंटल कपड़ा बंटा
अनघा पॉल का कहना है कि, ''कपड़ा केवल एक इस्तेमाल की चीज नहीं है. बल्कि इसके निर्माण में बड़े पैमाने पर पानी, प्रकृति के दूसरे संसाधन केमिकल इन सब चीजों का इस्तेमाल होता है. इसलिए कपड़े का अंतिम सही उपयोग होना चाहिए, ताकि प्रकृति के मूल्यवान तत्वों का पूरा उपयोग हो सके. संस्था ने अब तक लगभग 6000 किलो कपड़ा जरूरतमंद लोगों तक पहुंचा है.''
फैशन के लिए कपड़े का इस्तेमाल प्रकृति के साथ छेड़खानी
अनघा पॉल का मानना कि ''उनका यह कदम प्रकृति को बचाने की एक कोशिश है. लेकिन उनका मानना है कि लोगों को कपड़ा खरीदते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि क्या उनको इसकी जरूरत है और एक कपड़े के पीछे कितने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग हुआ है. फैशन और दिखावे के लिए कपड़े का इस्तेमाल प्रकृति के साथ बड़ी छेड़खानी है. इसलिए कपड़े का केवल उतना उपयोग किया जाए जितनी आपकी जरूरत है. यदि खरीदने के स्तर पर ही लोग थोड़े सचेत हो जाए तो इस रीसायकल करने की जरूरत ही नहीं रहेगी और बचा हुआ कपड़ा जरूरतमंदों तक अपने आप पहुंच जाएगा.''