जबलपुर। मध्य प्रदेश के जबलपुर का 64 योगिनी मंदिर कला का अद्भुत नमूना है. इसमें आज से लगभग 1000 साल पुरानी ऐसी शानदार कलाकृतियां मौजूद हैं जिन्हें आज के जमाने में तो बनाया ही नहीं जा सकता. जानकार बताते हैं कि यह तंत्र विद्या का केंद्र था, लेकिन तांत्रिक कैसे साधना करते थे, 64 योगिनियों को यहां एक साथ क्यों बैठाया गया था, इन मूर्तियों के पीछे क्या रहस्य है, क्या कभी यहां एक फलती फूलती संस्कृति रही होगी. इन सारे रहस्यों को हमने जानने की कोशिश की और यहां की कुछ देवी देवताओं की मूर्तियों के बारे में जानकारी ली. इस मंदिर में कामाख्या देवी महाकाली, इंद्राणी, एंग्रली, फानेंद्र नाम की देवियों की मूर्तियां हैं, जो अद्भुत हैं और इनका अपना तांत्रिक महत्व है.
मंदिर में 81 मूर्तियां मौजूद थी
जबलपुर का 64 योगिनी मंदिर इसे गोलकी मठ भी कहा जाता है. इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर कलचुरी राजाओं के समय बनाया गया है. जिसका समय काल 11वीं शताब्दी के आसपास है. उस जमाने में यहां त्रिपुरी राजवंश का शासन रहा होगा, लेकिन कुछ इतिहासकारों का ऐसा भी मानना है कि यहां पर संस्कृति उसके पहले से विकसित रही है और यहां लगभग डेढ़ हजार साल पहले भी एक विकसित राज्य था. यह 64 योगिनी का मंदिर इस शासनकाल में राजाओं द्वारा बनवाया गया था. इस मंदिर के अंदर कुल मिलाकर 81 मूर्तियां थी. जिन्हें मुगल आक्रांताओं ने तोड़ दिया, लेकिन अभी भी खंडित मूर्तियां यहां मौजूद हैं.
मंदिर में होती थी तंत्र साधना
64 योगिनी की मूर्तियां सामान्य नहीं है. बल्कि इन मूर्तियों के बारे में कहा जाता है कि यह तंत्र साधना की 64 देवियों की मूर्तियां हैं. कोई भी मूर्ति दूसरी मूर्ति से नहीं मिलती. पूरी मूर्तियों के बारे में किसी को पूरी जानकारी नहीं है. कुछ मूर्तियों के बारे में इतिहासकार भी बता पाते हैं और यहां पर साधना करने वाले लोग भी बता पाते हैं. बाकी मूर्तियों का तांत्रिक महत्व किसी को पता नहीं है. इस मंदिर के पुजारी धर्मेंद्र पुरी का कहना है कि देशभर से तांत्रिक साधना करने वाले लोग यहां आते हैं और अपने अपने ढंग से पूजा पाठ करते हैं.
कामाख्या देवी की मूर्ति
कामाख्या देवी तांत्रिक साधना की सबसे बड़ी देवी मानी जाती हैं, इनका मंदिर असम में है लेकिन बहुत ही कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि कामाख्या देवी की डेढ़ हजार साल पुरानी प्रतिमा 64 योगिनी मंदिर जबलपुर में है. किस्मत से यही प्रतिमा सही सलामत है. कामाख्या देवी की पूजा करने वाले लोग यहां आकर पूजा पाठ करते हैं.
नारी रूप में गणेश जी की प्रतिमा
गणेश जी के स्वरूप को तो लगभग सभी लोग जानते हैं. लेकिन गणेश जी की स्त्री रूपेण प्रतिमा केवल इस मंदिर में है. भगवान गणेश की कथा आज जितनी प्रचलित है आज से हजार साल पहले उससे कहीं ज्यादा प्रचलित रही होगी. इसीलिए मूर्तिकार ने भगवान गणेश की ही प्रतिमा बनाई. इस प्रतिमा में बाकी सब कुछ वैसा ही है जैसा आज हम सुनते हैं. इसमें मूषक भी है और मोदक भी है. लेकिन यह प्रतिमा स्त्री रूपेण है इसके पीछे क्या रहस्य है उसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं.
चंडिका या महाकाली की मूर्ति
चंडिका या महाकाली की पूजा तो बंगाल में होती है, लेकिन महाकाली का स्वरूप उस समय भी वैसा ही था जैसा अब देखने को मिलता है. महाकाली के इस मूर्ति में महाकाली के रूद्र रूप को दिखाया गया है और भगवान शंकर उनके पैरों तले हैं.
महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति
यहां महिषासुर मर्दिनी की एक मूर्ति है. इस मूर्ति में कलाकार ने दुर्गा के हर स्वरूप को बारीकी से उकेरा है. जैसे महिषासुर मर्दिनी ने महेश के रूप में आए रक्षा की बलि ली थी. वह बल्कि इस मूर्ति में स्पष्ट दिखती है.
फनिंद्री की मूर्ति से नहीं हटती नजरें
64 योगिनी में एक मूर्ति फनिंद्री की भी है. इस मूर्ति को देखकर ऐसा एहसास होता है कि जैसे पूरी मूर्ति पर सर्प अपने फन फैलाए हुए हैं. इन मूर्तियों में कुछ मूर्तियां इतनी सुंदर है कि उनको देखकर उनसे नजरें नहीं हटती. उनके नयन नक्श के साथ-साथ उसे जमाने में महिलाएं जो कपड़े पहनती थी जो श्रृंगार करती थी उनको इन मूर्तियों में महसूस किया जा सकता है. वह कलाकार भी गजब के रहे होंगे, जिन्होंने पत्थर पर इतनी कलाकृतियां उकेरी है कि मूर्तियों में जान फूंक दी. ऐसा लगता है कि मानों यह मूर्तियां बोल पड़ेंगी. इन मूर्तियों में अद्भुत आकर्षण है और यहां आने वाले लोग इन मूर्तियों से मंत्र मुगध हो जाते हैं. इसीलिए यहां पर ऐसा एहसास होता है कि यह जगह सामान्य नहीं है. जानकार आज भी यहां से तांत्रिक शक्तियां एकत्रित करते हैं.
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मंदिर के अजीबो-गरीब रहस्य
64 योगिनी की 81 मूर्तियों में से कोई भी एक दूसरे से मिल नहीं खाती. यह गोलाकार मठ क्या था, इसका उपयोग क्या था, क्यों इन देवियों की मूर्तियों को एक साथ यहां बनाया गया था, क्या यहां किसी किस्म की शिक्षा दी जाती थी, वह कलाकार कौन थे जिन्होंने इतनी बारीकी से इन मूर्तियों को बनाया था. वह जमाना कैसा रहा होगा, वे लोग कहां चले गए, यह संस्कृत कैसे नष्ट हो गई और क्या तंत्र विद्या आज भी जिंदा है, क्या इन मूर्तियों के पीछे कोई तंत्र विज्ञान है. यह सारे सवाल आपके मन में होंगे, लेकिन इनका जवाब किसी के पास नहीं है. महंत धर्मेंद्र पुरी कहते हैं कि 'हर मूर्ति में रहस्य छुपा है. फिलहाल यह मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग के पास में है और सरकार इसकी सुरक्षा करती है. पूजा पाठ करने वाले लोग यहां आते हैं और पर्यटक इन मूर्तियों को देखकर आश्चर्यचकित होते हैं.