जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने बीएसएफ के एक बर्खास्त सिपाही के मामले में सुनवाई की. ये सुनवाई जस्टिस जी एस अहलूवालिया की एकलपीठ ने की. पीठ ने अपने आदेश में कहा कि क्षमादान से सिर्फ सजा खत्म होती है. क्षमादान से दोष सिद्धि समाप्त नहीं होती. इस आदेश के साथ ही एकलपीठ ने सीमा सुरक्षा बल द्वारा आपराधिक मामले में दोषी करार होने के कारण एक सिपाही को बर्खास्त करने की कार्रवाई को सही ठहराया है.
आखिर क्या है पूरा मामला?
दरअसल, वर्ष 2005 में रीवा निवासी राम दयाल मिश्रा ने कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. इस याचिका में बताया गया था कि वह (राम दयाल मिश्रा) बीएसएफ में हवलदार के पद पर पदस्थ था. फिर कुछ दिनों बाद राम दयाल के खिलाफ धारा 306 व 498 ए के तहत मामला दर्ज किया गया. इस आपराधिक मामले में कोर्ट ने उसे अधिकतम 7 वर्ष की सजा सुनाई थी. कोर्ट से सजा सुनाए जाने के कारण राम दयाल को बीएसएफ ने सेवा से बर्खास्त कर दिया था. इसके बाद रामदयाल ने इस सजा के खिलाफ राज्यपाल के समक्ष क्षमादान का आवेदन किया था. इसी आवेदन पर राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत प्राप्त विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए उसे साल 2003 में क्षमादान दे दिया था.
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राज्यपाल से क्षमादान मिलने के बाद राम दयाल ने सेवा में वापस लेने के लिए विभागीय स्तर पर यानी बीएसएफ के अधिकारियों को पत्राचार किया था. लेकिन साल 2004 में सीमा सुरक्षा बल ने राम दयाल के आवेदन को अस्वीकार कर दिया था. जिसके कारण रामदयाल ने उक्त याचिका दायर की थी. याचिका में तर्क दिया गया था कि क्षमादान प्रदान किए जाने के कारण सभी आरोप समाप्त हो जाते हैं. इसी मामले पर एकलपीठ ने रामदयाल की याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा है कि क्षमादान सिर्फ न्यायिक दंड को समाप्त करना है. क्षमादान दोषसिद्धि को समाप्त नहीं करना है. कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए आपराधिक प्रकरण में सजा से दंडित होने के कारण बर्खास्त किए जाने के निर्णय को उचित ठहराया है.