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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने नाबालिग रेप पीड़िता को दी नवजात की कस्टडी, प्रीमेच्योर अबॉर्शन का मामला - JABALPUR HIGH COURT ABORTION CASE

अबॉर्शन की अनुमति देने के बाद अब हाईकोर्ट ने अपने आदेश में संशोधन करते हुए नवजात की कस्टडी नाबालिग मां को दे दी.

JABALPUR HIGH COURT on PREMATURE ABORTION CASE
प्रीमेच्योर अबॉर्शन मामले में हाईकोर्ट ने अपने आदेश में किया संशोधन (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 12, 2025, 7:41 PM IST

Updated : Jan 12, 2025, 8:05 PM IST

जबलपुर: रेप पीड़ित किशोरी को समय से पहले गर्भपात या प्रसव की अनुमति हाईकोर्ट के द्वारा प्रदान की गई थी. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि बच्चा यदि जिंदा पैदा होता है तो उसकी देखभाल राज्य सरकार द्वारा की जाएगी. बच्चे के जिंदा पैदा होने पर नाबालिग और उसके माता-पिता ने बच्चे की कस्टडी के लिए आवेदन पेश किया था. हाईकोर्ट जस्टिस ए के सिंह की एकलपीठ ने आवेदन की सुनवाई करते हुए पूर्व में पारित आदेश में संशोधन करते हुए नाबालिग और उसके माता-पिता को बच्चे की कस्टडी देने के आदेश जारी किये है.

प्रीमेच्योर अबॉर्शन की मांगी थी अनुमति

बता दें कि रेप पीड़िता नाबालिग ने प्रीमेच्योर अबॉर्शन के लिए विशेष न्यायाधीश की कोर्ट में आवेदन दायर किया था. विशेष न्यायाधीश ने आवेदन को खारिज कर दिया था. हाईकोर्ट ने मामले को संज्ञान में लेते हुए याचिका के रूप में सुनवाई के आदेश जारी किये थे. हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए पीड़ित की मेडिकल रिपोर्ट हमीदिया हॉस्पिटल भोपाल को प्रस्तुत करने के निर्देश दिये थे.

मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया था कि पीड़िता की गर्भावस्था 32 सप्ताह 6 दिन की है. मेडिकल रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद 27 दिसंबर 2024 को समय पूर्व पीड़िता के प्रसव या गर्भपात की अनुमति हाईकोर्ट ने प्रदान की थी. एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा था कि बच्चा जिंदा पैदा होता है तो उसकी देखभाल सरकार के द्वारा की जाएगी.

नवजात की कस्टडी के लिए दिया था आवेदन

नाबालिग पीड़िता ने 1 जनवरी 2025 को अस्पताल में एक स्वस्थ लड़के को जन्म दिया था. एकलपीठ ने अपने आदेश में पहले ही कहा था कि बच्चा जिंदा पैदा होता है तो उसकी देखभाल सरकार के द्वारा की जाएगी. इसके बाद बच्चे की कस्टडी के लिए पीड़ित और उसके माता-पिता ने हाईकोर्ट में आवेदन दायर किया था.

आवेदन में कहा गया था कि बच्चे का पालन-पोषण करना चाहते हैं. माता-पिता की तरफ से कहा गया था कि वह बेटी और उसके बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे और हर संभव पालन पोषण और देखभाल प्रदान करने का वचन देते हैं. ऐसे में बच्चे की कस्टडी उसकी मां को प्रदान की जाए. जिससे नवजात बच्चे को उचित प्राकृतिक स्तनपान कराया जा सके. जिसकी वर्तमान में अनुमति नहीं दी जा रही है.

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हुई सुनवाई

शनिवार को जस्टिस ए के सिंह की विशेष एकलपीठ ने याचिका की सुनवाई की. इस दौरान वीडियो कॉल के माध्यम से पीड़िता और उसकी मां तथा मौजूद डॉक्टर से संपर्क किया. इस दौरान पीड़ित और उसकी मां ने बच्चे की अभिरक्षा (कस्टडी) अपने पास रखने और उसका पालन-पोषण करने की इच्छा जताई.

हाईकोर्ट ने नाबालिग मां को दी नवजात की कस्टडी

जस्टिस ए के सिंह ने अपने आदेश में कहा कि "इसमें कोई संदेह नहीं है कि नवजात शिशु की मां ही उसकी देखभाल करने के लिए दुनिया में सबसे अच्छी व्यक्ति है. वह अपने बच्चे की देखभाल करना चाहती है तो यह मां के साथ-साथ नवजात बच्चे के हित में भी है. एकलपीठ ने नवजात बच्चे की कस्टडी नाबालिग मां तथा उनके माता-पिता को प्रदान करने के आदेश जारी किए."

स्तनपान कराने के दिए निर्देश

जस्टिस ए के सिंह ने यह भी निर्देश जारी किये हैं कि "बच्चे को मां के दूध का प्राकृतिक स्तनपान कराने की तत्काल व्यवस्था की जाए, जो नवजात शिशु के लिए अमृत के समान है. राज्य सरकार अभियोक्ता और उसके माता-पिता को इस संबंध में कानून के अनुसार जहां भी और जब भी आवश्यक हो, सहायता प्रदान करेगी. नवजात शिशु और उसकी नाबालिग मां के सभी चिकित्सा खर्च राज्य सरकार द्वारा वहन किए जाएंगे."

जबलपुर: रेप पीड़ित किशोरी को समय से पहले गर्भपात या प्रसव की अनुमति हाईकोर्ट के द्वारा प्रदान की गई थी. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि बच्चा यदि जिंदा पैदा होता है तो उसकी देखभाल राज्य सरकार द्वारा की जाएगी. बच्चे के जिंदा पैदा होने पर नाबालिग और उसके माता-पिता ने बच्चे की कस्टडी के लिए आवेदन पेश किया था. हाईकोर्ट जस्टिस ए के सिंह की एकलपीठ ने आवेदन की सुनवाई करते हुए पूर्व में पारित आदेश में संशोधन करते हुए नाबालिग और उसके माता-पिता को बच्चे की कस्टडी देने के आदेश जारी किये है.

प्रीमेच्योर अबॉर्शन की मांगी थी अनुमति

बता दें कि रेप पीड़िता नाबालिग ने प्रीमेच्योर अबॉर्शन के लिए विशेष न्यायाधीश की कोर्ट में आवेदन दायर किया था. विशेष न्यायाधीश ने आवेदन को खारिज कर दिया था. हाईकोर्ट ने मामले को संज्ञान में लेते हुए याचिका के रूप में सुनवाई के आदेश जारी किये थे. हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए पीड़ित की मेडिकल रिपोर्ट हमीदिया हॉस्पिटल भोपाल को प्रस्तुत करने के निर्देश दिये थे.

मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया था कि पीड़िता की गर्भावस्था 32 सप्ताह 6 दिन की है. मेडिकल रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद 27 दिसंबर 2024 को समय पूर्व पीड़िता के प्रसव या गर्भपात की अनुमति हाईकोर्ट ने प्रदान की थी. एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा था कि बच्चा जिंदा पैदा होता है तो उसकी देखभाल सरकार के द्वारा की जाएगी.

नवजात की कस्टडी के लिए दिया था आवेदन

नाबालिग पीड़िता ने 1 जनवरी 2025 को अस्पताल में एक स्वस्थ लड़के को जन्म दिया था. एकलपीठ ने अपने आदेश में पहले ही कहा था कि बच्चा जिंदा पैदा होता है तो उसकी देखभाल सरकार के द्वारा की जाएगी. इसके बाद बच्चे की कस्टडी के लिए पीड़ित और उसके माता-पिता ने हाईकोर्ट में आवेदन दायर किया था.

आवेदन में कहा गया था कि बच्चे का पालन-पोषण करना चाहते हैं. माता-पिता की तरफ से कहा गया था कि वह बेटी और उसके बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे और हर संभव पालन पोषण और देखभाल प्रदान करने का वचन देते हैं. ऐसे में बच्चे की कस्टडी उसकी मां को प्रदान की जाए. जिससे नवजात बच्चे को उचित प्राकृतिक स्तनपान कराया जा सके. जिसकी वर्तमान में अनुमति नहीं दी जा रही है.

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हुई सुनवाई

शनिवार को जस्टिस ए के सिंह की विशेष एकलपीठ ने याचिका की सुनवाई की. इस दौरान वीडियो कॉल के माध्यम से पीड़िता और उसकी मां तथा मौजूद डॉक्टर से संपर्क किया. इस दौरान पीड़ित और उसकी मां ने बच्चे की अभिरक्षा (कस्टडी) अपने पास रखने और उसका पालन-पोषण करने की इच्छा जताई.

हाईकोर्ट ने नाबालिग मां को दी नवजात की कस्टडी

जस्टिस ए के सिंह ने अपने आदेश में कहा कि "इसमें कोई संदेह नहीं है कि नवजात शिशु की मां ही उसकी देखभाल करने के लिए दुनिया में सबसे अच्छी व्यक्ति है. वह अपने बच्चे की देखभाल करना चाहती है तो यह मां के साथ-साथ नवजात बच्चे के हित में भी है. एकलपीठ ने नवजात बच्चे की कस्टडी नाबालिग मां तथा उनके माता-पिता को प्रदान करने के आदेश जारी किए."

स्तनपान कराने के दिए निर्देश

जस्टिस ए के सिंह ने यह भी निर्देश जारी किये हैं कि "बच्चे को मां के दूध का प्राकृतिक स्तनपान कराने की तत्काल व्यवस्था की जाए, जो नवजात शिशु के लिए अमृत के समान है. राज्य सरकार अभियोक्ता और उसके माता-पिता को इस संबंध में कानून के अनुसार जहां भी और जब भी आवश्यक हो, सहायता प्रदान करेगी. नवजात शिशु और उसकी नाबालिग मां के सभी चिकित्सा खर्च राज्य सरकार द्वारा वहन किए जाएंगे."

Last Updated : Jan 12, 2025, 8:05 PM IST
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