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बरगी डैम के 17 गेट खुलने से ग्वारीघाट में बाढ़ जैसे हालात, घाट किनारे रहने वाले बेहाल - Gwarighat flood like situation - GWARIGHAT FLOOD LIKE SITUATION

जबलपुर के साथ-साथ बरगी डैम के कैचमेंट एरिया में हुई भारी बारिश से डैम में पानी की रफ्तार काफी तेज हो चुकी है. फुल टैंक लेवल से ऊपर पानी जाने की स्थिति में डैम से अताह जलराशि 17 गेटों से छोड़ी जा रही है. इससे जबलपुर के ग्वारीघाट समेत कई घाट डूब गए हैं.

GWARIGHAT FLOOD LIKE SITUATION
बरगी डैम के 17 गेट खुलने से ग्वारीघाट में बाढ़ जैसे हाला (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 11, 2024, 9:26 PM IST

जबलपुर : बरगी बांध के 17 गेट खोल दिए गए हैं और बांध से 8000 क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है. पानी की रफ्तार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ग्वारीघाट में नर्मदा नदी अपने सामान्य जल स्तर से लगभग 50 फीट ऊपर बह रही है. बरगी बांध प्रबंधन का कहना है कि बांध में अधिकतम जल स्तर से 1 मीटर ज्यादा पानी है. इसलिए जब तक जल स्तर नियंत्रित नहीं हो जाता तबतक पानी लगातार छोड़ा जाएगा.

देखें वीडियो (Etv Bharat)

घाट पर रहने वाले बेसहारा बुजुर्ग परेशान

नर्मदा नदी में अचानक आई इस बाढ़ की वजह से सामान्य तौर पर आम जनजीवन बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं होता लेकिन जबलपुर के ग्वारीघाट में बाढ़ जैसे हालात हैं, जिसकी वजह से कई बेसहारा बुजुर्गों के सामने जीवन यापन का संकट खड़ा हो जाता है. जबलपुर के ग्वारीघाट में घाट पर ही 200 से ज्यादा बेसहारा बुजुर्ग अपनी जिंदगी काट रहे हैं. इन्हें नर्मदा नदी के दर्शन करने वाले श्रद्धालु जो दान दक्षिणा दे जाते हैं, उसी के सहारे इनका जीवन चल रहा है. इनमें कई संन्यासी भी हैं.

घाट छोड़ सड़क पर रात गुजार रहे संन्यासी

गिरधारी नाम के एक संन्यासी से यहां हमारी मुलाकात हुई. वे सड़क पर एक तखत पर बैठे हुए थे. गिरधारी कहते हैं कि उन्होंने कई साल पहले अपना घर छोड़ दिया था और वे लगातार नर्मदा परिक्रमा करते हैं और कई सालों से ग्वारीघाट में रह रहे हैं. यहां भक्तगण जो दे जाते हैं उससे उनका जीवन यापन होता है. रात को घाट पर ही उनका डेरा होता है लेकिन जब पानी बढ़ा तो उन्हें अपना डेरा समेट कर सड़क पर आना पड़ा और पूरी रात पॉलिथीन के सहारे गुजारनी पड़ रही है.

पानी कम होने का इंतजार

लगभग 60 साल की उम्र के शंकर भी ग्वारीघाट में ही रहते हैं और घाट ही उनका ठिकाना है. यही यदि कोई काम मिल गया तो कम कर लिया, नहीं तो भक्तों की दान दक्षिणा पर उनका जीवन चल रहा है. वे कोल्हापुर के रहने वाले हैं उनके परिवार में कोई नहीं है. इसलिए 16 साल पहले जबलपुर आ गए थे और जबलपुर में ग्वारीघाट ही उनका ठिकाना है. अब जब घाट पर बाढ़ जैसे हालात हैं तो उन्हें आश्रम में सहारा मिला जहां उन्होंने रात काटी. अब वे इंतजार कर रहे हैं कि पानी कम हो और घाट की जिंदगी दोबारा बहाल हो सके.

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ऐसे कई बुजुर्ग लाचार महिलाएं घाट पर अपने छोटे-छोटे साधन लेकर बैठे रहते हैं और यही रात गुजारते हैं. इनके लिए नर्मदा में आई बाढ़ उनके घर में पानी घुसने जैसी स्थिति है. अब ये सभी टकटकी लगाए नर्मदा को देख रहे हैं कि कब नर्मदा का पानी कम होगा.

जबलपुर : बरगी बांध के 17 गेट खोल दिए गए हैं और बांध से 8000 क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है. पानी की रफ्तार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ग्वारीघाट में नर्मदा नदी अपने सामान्य जल स्तर से लगभग 50 फीट ऊपर बह रही है. बरगी बांध प्रबंधन का कहना है कि बांध में अधिकतम जल स्तर से 1 मीटर ज्यादा पानी है. इसलिए जब तक जल स्तर नियंत्रित नहीं हो जाता तबतक पानी लगातार छोड़ा जाएगा.

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घाट पर रहने वाले बेसहारा बुजुर्ग परेशान

नर्मदा नदी में अचानक आई इस बाढ़ की वजह से सामान्य तौर पर आम जनजीवन बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं होता लेकिन जबलपुर के ग्वारीघाट में बाढ़ जैसे हालात हैं, जिसकी वजह से कई बेसहारा बुजुर्गों के सामने जीवन यापन का संकट खड़ा हो जाता है. जबलपुर के ग्वारीघाट में घाट पर ही 200 से ज्यादा बेसहारा बुजुर्ग अपनी जिंदगी काट रहे हैं. इन्हें नर्मदा नदी के दर्शन करने वाले श्रद्धालु जो दान दक्षिणा दे जाते हैं, उसी के सहारे इनका जीवन चल रहा है. इनमें कई संन्यासी भी हैं.

घाट छोड़ सड़क पर रात गुजार रहे संन्यासी

गिरधारी नाम के एक संन्यासी से यहां हमारी मुलाकात हुई. वे सड़क पर एक तखत पर बैठे हुए थे. गिरधारी कहते हैं कि उन्होंने कई साल पहले अपना घर छोड़ दिया था और वे लगातार नर्मदा परिक्रमा करते हैं और कई सालों से ग्वारीघाट में रह रहे हैं. यहां भक्तगण जो दे जाते हैं उससे उनका जीवन यापन होता है. रात को घाट पर ही उनका डेरा होता है लेकिन जब पानी बढ़ा तो उन्हें अपना डेरा समेट कर सड़क पर आना पड़ा और पूरी रात पॉलिथीन के सहारे गुजारनी पड़ रही है.

पानी कम होने का इंतजार

लगभग 60 साल की उम्र के शंकर भी ग्वारीघाट में ही रहते हैं और घाट ही उनका ठिकाना है. यही यदि कोई काम मिल गया तो कम कर लिया, नहीं तो भक्तों की दान दक्षिणा पर उनका जीवन चल रहा है. वे कोल्हापुर के रहने वाले हैं उनके परिवार में कोई नहीं है. इसलिए 16 साल पहले जबलपुर आ गए थे और जबलपुर में ग्वारीघाट ही उनका ठिकाना है. अब जब घाट पर बाढ़ जैसे हालात हैं तो उन्हें आश्रम में सहारा मिला जहां उन्होंने रात काटी. अब वे इंतजार कर रहे हैं कि पानी कम हो और घाट की जिंदगी दोबारा बहाल हो सके.

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