जबलपुर. गढ़ा इलाके के पचमठा मंदिर में भगवान महावीर को अनोखा प्रसाद चढ़ाया जाता है. यहां मोतीचूर के लड्डू का भोग लगाया जाता है लेकिन ये कोई सामान्य लड्डू नहीं होता. यहां 1100 किलो के लड्डू से भगवान महावीर को भोग लगाया जाता है. इसे बनान में भी कई क्विंटल सामग्री लगती है. गोंडवाना कल के इस मंदिर में उत्साह में शुरू किया गया है यह आयोजन अब एक परंपरा बन चुका है और लोग हर्षोल्लास से हर साल भगवान को इस विशालकाय लड्डू का भोग लगाते हैं.
गोंडवाना काल से चली आ रही परंपरा
जबलपुर के गढ़ा इलाके का पचमठा मंदिर गोंडवाना काल का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है. गोंडवाना काल के दौरान यहां एक व्यवस्थित नगरी हुआ करती थी और पचमठा मंदिर गोंड राजाओं का धार्मिक स्थल था. यहां उस जमाने के कई मंदिर बनाए गए थे इन्हीं में से एक मंदिर हनुमान जी का भी है इस मंदिर में हर साल महावीर जयंती पर धार्मिक अनुष्ठान होते हैं. सैकड़ो सालों की यह परंपरा अभी भी लोग निभा रहे हैं.
3 क्विंटल तो केवल शक्कर का ही इस्तेमाल
इस मोतीचूर के लड्डू में 300 किलो बेसन, 200 लीटर वनस्पति घी, 25 किलो ड्राय फ्रूट्स का इस्तेमाल होता है और तो ओर तीन क्विंटल तो लगभग शक्कर ही लग जाती है. तब जाकर भगवान महावीर का प्रसाद तैयार होता है. लोगों का कहना है कि ये बेहद स्वादिष्ट होता है और सभी इस प्रसाद को लेने के लिए आतुर रहते हैं. आने वाले दो दिनों तक मंदिर में आने वाले हर भक्त को इस लड्डू का प्रसाद दिया जाएगा.
इतना बड़ा होता है ये लड्डू
सामान्य तौर पर बड़े से बड़े लड्डू का आकार किसी गेंद के बराबर होता है. लेकिन इस मंदिर में जो लड्डू हनुमान जी के प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है किसी फुटबॉल के आकार से 100 गुना तक बड़ा होता है. इस लड्डू का व्यास लगभग 4 फीट होता है और इसका वजन 10 क्विंटल से ज्यादा होता है.
कई रंगों से सजाया जाता है लड्डू
बताते हैं कि शुरुआत में इस लड्डू को बनाने के लिए नागपुर से मिठाई बनाने वाले कलाकार आते थे लेकिन अब जबलपुर के ही मिठाई बनाने वाले कलाकारों ने इसमें महारत हासिल कर ली. इस लड्डू को बनाने में आसपास के लोगों का भी पूरा सहयोग रहता है. लड्डू की साज सज्जा में कलाकारी भी की जाती है और मोतीचूर को अलग-अलग रंगों में डालकर लड्डू के ऊपर सुंदर कलाकृतियां बनाई जाती हैं.