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रोडवेज की खटारा बसों की 'सर्जन' हैं ये चार बेटियां, हाथ लगाते ही दौड़ने लगती बस; सैलरी चपरासी से भी कम, पढ़िए पूरी स्टोरी - up roadways special women mechanic

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jul 2, 2024, 1:01 PM IST

Updated : Jul 2, 2024, 1:35 PM IST

बेटियां खुद को सशक्त बनाने के लिए उन सभी क्षेत्र में हाथ आजमा रही हैं, जिसपर पुरुषो का वर्चस्व रहा है. अपने सौंदर्य की परवा न करते हुए आईटीआई होल्डर यह बेटियां बसों की सुरक्षा और रफ्तार में अपना योगदान दे रही है. लेकिन, फिर भी अकुशल श्रमिकों से भी काफी कम वेतन उन्हें मिल रहा है.

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इन बेटियों के हुनर की कब कद्र होगी? (photo credit- Etv Bharat)

आईटीआई होल्डर बेटियों ईटीवी भारत से साझा की जानकारी (video credit- etv bharat)



गोरखपुर: देश और दुनिया में कोई ऐसी फील्ड नहीं जहां बेटियां अपना हाथ न आजमा रही हों. यही नहीं वह विभिन्न क्षेत्रों में बड़े मुकाम हासिल कर पुरुषों से भी आगे निकल चुकी हैं. लेकिन, कुछ ऐसी भी बेटियां हैं जो अच्छे मुकाम के लिए आज भी संघर्ष कर रही हैं. बेटियां खुद को सशक्त बनाने के लिए, उन सभी क्षेत्र में हाथ आजमा रही हैं, जिसपर पुरुषो का वर्चस्व रहा है. काम छोटा हो या बड़ा, व्हाइट कॉलर जॉब हो या कचरे और ग्रीस में लिपटा हुआ हाथ. बात हो रही है, ऐसे ही काम में जुटी बेटियों की जो गोरखपुर परिवहन निगम में बसों को सुरक्षा और रफ्तार देने के काम में जुटी रहती हैं.



हाथ कचरे में लिपा- पुता होता है. न कपड़े की परवाह और न ही अपने सौंदर्य को लेकर कोई चिंता. आईटीआई होल्डर यह बेटियां अपने इस हुनर को पिछले दो साल से अंजाम दे रहीं हैं. यह तकनीकी रूप से कुशल श्रमिक हैं, लेकिन उन्हें मानदेय मात्र 78 सौ रुपये मासिक मिलता है, जो श्रम कानून का उलंघन है. लेकिन इनका हौसल भविष्य को बेहतर बनाने में लगा है. वह नफा नुकसान की ज्यादा चिंता नहीं करतीं, लेकिन सवाल तो खड़ा होता ही है.

कुशल श्रमिक होने पर भी मिल रही कम सैलरी: आईटीआई का फॉर्म भरने के साथ इन बेटियों को मोटर मैकेनिक और डीजल ट्रेनिंग में पढ़ाई करने का अवसर मिला. परीक्षा पास करने के बाद इन्हें गोरखपुर के राप्ती नगर डिपो के वर्कशॉप में बतौर एक बार प्रशिक्षु के रूप में शामिल किया गया. तब इन्हें प्रशिक्षण के साथ ₹5000 का मानदेय भी मिलता था. लेकिन, प्रशिक्षण अवधि पूरी होने के बाद फिर इन्हें अनुबंध के आधार पर बस के कल पुर्जों के मरम्मत के लिए नियुक्त कर लिया गया. लेकिन, अनुबंध की राशि इन्हें मात्र 7800 देना ही निश्चित की गई, जो श्रम कानून का वेज बोर्ड का उल्लंघन है. क्योंकि यह बेटियां तकनीकी रूप से दक्ष हैं. यह अकुशल श्रमिक नहीं हैं. इनका मानदेय कम से कम ₹12 हजार या इससे अधिक होना चाहिए. लेकिन, बेरोजगारी के दौर में बेहतर भविष्य की संभावना को देखते हुए यह बेटियां, अपने काम में पूरे मनोयोग से जुटी हैं. यह किसी तरह का कोई विरोध भी नहीं करती. लेकिन, मन ही मन कम वेतन पाने से दुखी हैं.

इसे भी पढ़े-ड्राइवर न होने के कारण वर्कशॉप और डिपो में खड़ी हैं 76 रोडवेज बसें, रोज हो रहा 10 लाख रुपये का नुकसान - Negligence in Transport Corporation

परिवहन निगम के कर्मचारी नेता भी कर रहे विरोध: परिवहन निगम के कर्मचारी नेता इसका खुलकर विरोध करते हैं. वह कहते हैं, कि कई बार इस बात को उच्च अधिकारियों तक उठाया गया. लेकिन, कोई सुनवाई नहीं करता. अजय कुमार कहते हैं, कि वह परिवहन से जुड़े कर्मचारी संगठन के नेता हैं. समस्याओं को उपर तक ले जाते हैं. लेकिन सुनवाई नहीं हो रही. वर्कशॉप में काम करने करने वाली बेटियों में रीमा चौहान बस के गेयर बॉक्स को बनाने का काम करती है, तो प्रिया पटवा इंजन का रिकंडीशनिंग करती है. इंजन का कहा जाए तो, पूरा ओवरहालिंग प्रिया पटवा करने में सक्षम है. गोल्डी सिंह क्लच प्लेट, प्रेशर प्लेट, डीटीयू यूनिट, ब्रेक, स्टेरिंग सभी को दुरुस्त करके बसों को सड़क पर रफ्तार भरने के लायक बना देती है. वहीं, प्रीति भारती का काम भी बहुत ही महत्वपूर्ण है. वह फ्यूल इंजेक्टर पंप बनाने का कार्य करती है. इसी पंप के जरिए इंजन को डीजल सप्लाई मिलती है और इंजन गतिमान होता है.

कर्मचारी नेता अजय कुमार कहते हैं, कि उनके वर्कशॉप में करीब 29 कर्मचारी ऐसे ही हैं, जिसमें इन चार लड़कियों के अलावा 25 लड़के भी हैं, जो 2014 से लेकर अभी तक काम कर रहे हैं. इनके मानदेय में समय के साथ तो बढ़ोतरी हुई, लेकिन मौजूदा समय जो मानदेय दिया जा रहा है, उससे वेज बोर्ड का मजाक ही उड़ता है. इसको लेकर अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंगता. इस संबंध में रोडवेज के क्षेत्रीय प्रबंधक लव कुमार सिंह से बातचीत की गई, तो उन्होंने कहा कि, इस संबंध में निर्णय लेने का अधिकार निदेशालय को है. जो पारिश्रमिक तय किया जाता है, अनुबंध के आधार पर भारती उसी पर की जाती हैं.


यह भी पढ़े-IAS-IPS के बाद यूपी रोडवेज में तबादला; चारबाग डिपो के एआरएम प्रशांत दीक्षित भेजे गए मुरादाबाद, जितेंद्र प्रसाद नए बने - UP Roadways Officer Transfer

आईटीआई होल्डर बेटियों ईटीवी भारत से साझा की जानकारी (video credit- etv bharat)



गोरखपुर: देश और दुनिया में कोई ऐसी फील्ड नहीं जहां बेटियां अपना हाथ न आजमा रही हों. यही नहीं वह विभिन्न क्षेत्रों में बड़े मुकाम हासिल कर पुरुषों से भी आगे निकल चुकी हैं. लेकिन, कुछ ऐसी भी बेटियां हैं जो अच्छे मुकाम के लिए आज भी संघर्ष कर रही हैं. बेटियां खुद को सशक्त बनाने के लिए, उन सभी क्षेत्र में हाथ आजमा रही हैं, जिसपर पुरुषो का वर्चस्व रहा है. काम छोटा हो या बड़ा, व्हाइट कॉलर जॉब हो या कचरे और ग्रीस में लिपटा हुआ हाथ. बात हो रही है, ऐसे ही काम में जुटी बेटियों की जो गोरखपुर परिवहन निगम में बसों को सुरक्षा और रफ्तार देने के काम में जुटी रहती हैं.



हाथ कचरे में लिपा- पुता होता है. न कपड़े की परवाह और न ही अपने सौंदर्य को लेकर कोई चिंता. आईटीआई होल्डर यह बेटियां अपने इस हुनर को पिछले दो साल से अंजाम दे रहीं हैं. यह तकनीकी रूप से कुशल श्रमिक हैं, लेकिन उन्हें मानदेय मात्र 78 सौ रुपये मासिक मिलता है, जो श्रम कानून का उलंघन है. लेकिन इनका हौसल भविष्य को बेहतर बनाने में लगा है. वह नफा नुकसान की ज्यादा चिंता नहीं करतीं, लेकिन सवाल तो खड़ा होता ही है.

कुशल श्रमिक होने पर भी मिल रही कम सैलरी: आईटीआई का फॉर्म भरने के साथ इन बेटियों को मोटर मैकेनिक और डीजल ट्रेनिंग में पढ़ाई करने का अवसर मिला. परीक्षा पास करने के बाद इन्हें गोरखपुर के राप्ती नगर डिपो के वर्कशॉप में बतौर एक बार प्रशिक्षु के रूप में शामिल किया गया. तब इन्हें प्रशिक्षण के साथ ₹5000 का मानदेय भी मिलता था. लेकिन, प्रशिक्षण अवधि पूरी होने के बाद फिर इन्हें अनुबंध के आधार पर बस के कल पुर्जों के मरम्मत के लिए नियुक्त कर लिया गया. लेकिन, अनुबंध की राशि इन्हें मात्र 7800 देना ही निश्चित की गई, जो श्रम कानून का वेज बोर्ड का उल्लंघन है. क्योंकि यह बेटियां तकनीकी रूप से दक्ष हैं. यह अकुशल श्रमिक नहीं हैं. इनका मानदेय कम से कम ₹12 हजार या इससे अधिक होना चाहिए. लेकिन, बेरोजगारी के दौर में बेहतर भविष्य की संभावना को देखते हुए यह बेटियां, अपने काम में पूरे मनोयोग से जुटी हैं. यह किसी तरह का कोई विरोध भी नहीं करती. लेकिन, मन ही मन कम वेतन पाने से दुखी हैं.

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परिवहन निगम के कर्मचारी नेता भी कर रहे विरोध: परिवहन निगम के कर्मचारी नेता इसका खुलकर विरोध करते हैं. वह कहते हैं, कि कई बार इस बात को उच्च अधिकारियों तक उठाया गया. लेकिन, कोई सुनवाई नहीं करता. अजय कुमार कहते हैं, कि वह परिवहन से जुड़े कर्मचारी संगठन के नेता हैं. समस्याओं को उपर तक ले जाते हैं. लेकिन सुनवाई नहीं हो रही. वर्कशॉप में काम करने करने वाली बेटियों में रीमा चौहान बस के गेयर बॉक्स को बनाने का काम करती है, तो प्रिया पटवा इंजन का रिकंडीशनिंग करती है. इंजन का कहा जाए तो, पूरा ओवरहालिंग प्रिया पटवा करने में सक्षम है. गोल्डी सिंह क्लच प्लेट, प्रेशर प्लेट, डीटीयू यूनिट, ब्रेक, स्टेरिंग सभी को दुरुस्त करके बसों को सड़क पर रफ्तार भरने के लायक बना देती है. वहीं, प्रीति भारती का काम भी बहुत ही महत्वपूर्ण है. वह फ्यूल इंजेक्टर पंप बनाने का कार्य करती है. इसी पंप के जरिए इंजन को डीजल सप्लाई मिलती है और इंजन गतिमान होता है.

कर्मचारी नेता अजय कुमार कहते हैं, कि उनके वर्कशॉप में करीब 29 कर्मचारी ऐसे ही हैं, जिसमें इन चार लड़कियों के अलावा 25 लड़के भी हैं, जो 2014 से लेकर अभी तक काम कर रहे हैं. इनके मानदेय में समय के साथ तो बढ़ोतरी हुई, लेकिन मौजूदा समय जो मानदेय दिया जा रहा है, उससे वेज बोर्ड का मजाक ही उड़ता है. इसको लेकर अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंगता. इस संबंध में रोडवेज के क्षेत्रीय प्रबंधक लव कुमार सिंह से बातचीत की गई, तो उन्होंने कहा कि, इस संबंध में निर्णय लेने का अधिकार निदेशालय को है. जो पारिश्रमिक तय किया जाता है, अनुबंध के आधार पर भारती उसी पर की जाती हैं.


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Last Updated : Jul 2, 2024, 1:35 PM IST
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