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कहां चले गए बस्तर के 10 हजार से ज्यादा आदिवासी, क्या इनको मान लिया कश्मीरी पंडितों की तरह विस्थापित - displaced tribals of Bastar - DISPLACED TRIBALS OF BASTAR

बस्तर के विस्थापित आदिवासियों का एक बार फिर मुद्दा गर्मा रहा है. इस बार राज्य सभा में सांसद फूलो देवी नेताम ने इस मुद्दे को उठाया और सरकार से जवाब भी मांगा. फूलो देवी नेताम के सवाल पर जनजातीय मंत्री ने जवाब दिया है.

10 thousand tribals missing in bastar
10 हजार आदिवासी लापता (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jul 28, 2024, 5:12 PM IST

कोरबा: बस्तर में नक्सलियों और सरकारी सिस्टम के बीच वहां की आम जनता सालों से पिसती आ रही है. हाल ही में राज्यसभा में भी इससे जुड़ा मुद्दा उठा. छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सदस्य फूलो देवी नेताम ने बस्तर के विस्थापित आदिवासियों को लेकर सवाल पूछा. सांसद के सवाल के जवाब में केंद्र सरकार के जनजातीय मंत्री ने जवाब दिया. जनजातीय मंत्री ने बताया कि बस्तर में 10 हजार से अधिक लोग आंतरिक रूप से विस्थापन का दंश झेल रहे हैं.

10 हजार से ज्यादा आदिवासी विस्थापन का दंश झेल रहे: आंतरिक रूप से विस्थापित वो लोग होते हैं जिन्हें राजनीतिक, जाति, हिंसा या अन्य तरह के उत्पीड़न के कारण अपना मूल निवास छोड़ना पड़ता है. आंतरिक विस्थापन के चलते कोई देश नहीं छोड़ता है. इस तरह के विस्थापन में माइग्रेट होने वाले लोग देश के ही किसी दूसरी जगह पर अपना ठिकाना बनकर बस जाते हैं. ठीक वैसे ही जैसे की जम्मू और कश्मीर में कश्मीरी पंडितों ने किया था. जम्मू कश्मीर के कश्मीरी पंडितों की तरह ही बस्तर के विस्थापित आदिवासियों को भी आंतरिक रूप से विस्थापित(आईडीपी) कहा जाता है.

103 गांव के 10 हजार से अधिक लोग आईडीपी: आंतरिक विस्थापन के जो आंकड़े सामने आए हैं उसके मुताबिक 10 हजार से ज्यादा लोग बस्तर से विस्थापित हुए हैं. राज्यसभा सदस्य फूलो देवी नेताम ने सवाल पूछा कि ''छत्तीसगढ़ के कौन-कौन से आदिवासी संप्रदाय आंतरिक रूप से विस्थापितों की श्रेणी में हैं''. नेताम ने ये भी पूछा कि ''इनकी क्या स्थिति है''? जवाब में केंद्रीय जनजातीय कार्य राज्य मंत्री दुर्गादास उईके ने जवाब दिया. राज्य मंत्री ने सदन में बताया कि ''सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा के 103 गांव के 2389 परिवार के कुल 10489 व्यक्ति आंतरिक रूप से विस्थापन की श्रेणी में हैं, जिन्होंने अपना मूल निवास त्याग दिया है. इनमें सबसे अधिक संख्या सुकमा के लोगों की है. सुकमा के 85 गांव के 2229 परिवार से ताल्लुक रखने वाले 9772 लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हैं.''

लौटने को तैयार नहीं है लोग: राज्य मंत्री दुर्गादास उईके बताया कि ''यह सभी दोरला, मुरिया, धुर्वा, गोंड, माडिया और हल्बा, जनजातियो से ताल्लुक रखते हैं. जो छत्तीसगढ़ की पिछड़ी जनजातियां हैं. विस्थापित हुए लोगों को वापस बुलाने का प्रयास भी किया गया लेकिन वो वापस नहीं आना चाहते हैं. छत्तीसगढ़ सरकार ने सूचित किया है कि पड़ोसी राज्य तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के निकटवर्ती जिलों में गांव में सर्वेक्षण दल गठित कर सर्वे कराया गया. जहां आंतरिक रूप से विस्थापित लोग बसे हुए हैं. इन प्रभावित परिवार के लोगों को छत्तीसगढ़ राज्य की पुनर्वास योजना की जानकारी और सुरक्षा शिविरों के माध्यम से सुरक्षा व्यवस्था का भी भरोसा दिलाया गया. इसके बावजूद भी वह अपने मूल निवास पर लौटने को तैयार नहीं हैं.''

पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन की जिम्मेदारी राज्य सरकार की: केंद्रीय मंत्री ने अपने जवाब में यह भी कहा कि ''भारत के संविधान के तहत भूमि और उसका प्रबंधन राज्यों के विशेष विधि और प्रशासनिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है. जब भी बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के लिए किसी भूमि का अधिग्रहण किया जाता है, तब वहां "भूमि अर्जन, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013" का पालन करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है. इसलिए अनुसूचित जनजाति की आबादी के विस्थापन के बारे में केंद्र स्तर पर कोई डाटा नहीं रखा जाता. लेकिन पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन के लिए प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है, जिसमें भूमि मालिकों के लिए मुआवजा, आजीविका, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन के साथ ही रहने योग्य उचित बंदोबस्त के लिए ढांचागत सुविधा उपलब्ध कराने का स्पष्ट प्रावधान है. पुनर्वास नीति में जनजाति समुदाय से आने वाले लोगों के लिए विस्थापन के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने का भी नियम है.''

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10 हजार से ज्यादा आदिवासी विस्थापन का दंश झेल रहे: आंतरिक रूप से विस्थापित वो लोग होते हैं जिन्हें राजनीतिक, जाति, हिंसा या अन्य तरह के उत्पीड़न के कारण अपना मूल निवास छोड़ना पड़ता है. आंतरिक विस्थापन के चलते कोई देश नहीं छोड़ता है. इस तरह के विस्थापन में माइग्रेट होने वाले लोग देश के ही किसी दूसरी जगह पर अपना ठिकाना बनकर बस जाते हैं. ठीक वैसे ही जैसे की जम्मू और कश्मीर में कश्मीरी पंडितों ने किया था. जम्मू कश्मीर के कश्मीरी पंडितों की तरह ही बस्तर के विस्थापित आदिवासियों को भी आंतरिक रूप से विस्थापित(आईडीपी) कहा जाता है.

103 गांव के 10 हजार से अधिक लोग आईडीपी: आंतरिक विस्थापन के जो आंकड़े सामने आए हैं उसके मुताबिक 10 हजार से ज्यादा लोग बस्तर से विस्थापित हुए हैं. राज्यसभा सदस्य फूलो देवी नेताम ने सवाल पूछा कि ''छत्तीसगढ़ के कौन-कौन से आदिवासी संप्रदाय आंतरिक रूप से विस्थापितों की श्रेणी में हैं''. नेताम ने ये भी पूछा कि ''इनकी क्या स्थिति है''? जवाब में केंद्रीय जनजातीय कार्य राज्य मंत्री दुर्गादास उईके ने जवाब दिया. राज्य मंत्री ने सदन में बताया कि ''सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा के 103 गांव के 2389 परिवार के कुल 10489 व्यक्ति आंतरिक रूप से विस्थापन की श्रेणी में हैं, जिन्होंने अपना मूल निवास त्याग दिया है. इनमें सबसे अधिक संख्या सुकमा के लोगों की है. सुकमा के 85 गांव के 2229 परिवार से ताल्लुक रखने वाले 9772 लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हैं.''

लौटने को तैयार नहीं है लोग: राज्य मंत्री दुर्गादास उईके बताया कि ''यह सभी दोरला, मुरिया, धुर्वा, गोंड, माडिया और हल्बा, जनजातियो से ताल्लुक रखते हैं. जो छत्तीसगढ़ की पिछड़ी जनजातियां हैं. विस्थापित हुए लोगों को वापस बुलाने का प्रयास भी किया गया लेकिन वो वापस नहीं आना चाहते हैं. छत्तीसगढ़ सरकार ने सूचित किया है कि पड़ोसी राज्य तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के निकटवर्ती जिलों में गांव में सर्वेक्षण दल गठित कर सर्वे कराया गया. जहां आंतरिक रूप से विस्थापित लोग बसे हुए हैं. इन प्रभावित परिवार के लोगों को छत्तीसगढ़ राज्य की पुनर्वास योजना की जानकारी और सुरक्षा शिविरों के माध्यम से सुरक्षा व्यवस्था का भी भरोसा दिलाया गया. इसके बावजूद भी वह अपने मूल निवास पर लौटने को तैयार नहीं हैं.''

पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन की जिम्मेदारी राज्य सरकार की: केंद्रीय मंत्री ने अपने जवाब में यह भी कहा कि ''भारत के संविधान के तहत भूमि और उसका प्रबंधन राज्यों के विशेष विधि और प्रशासनिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है. जब भी बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के लिए किसी भूमि का अधिग्रहण किया जाता है, तब वहां "भूमि अर्जन, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013" का पालन करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है. इसलिए अनुसूचित जनजाति की आबादी के विस्थापन के बारे में केंद्र स्तर पर कोई डाटा नहीं रखा जाता. लेकिन पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन के लिए प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है, जिसमें भूमि मालिकों के लिए मुआवजा, आजीविका, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन के साथ ही रहने योग्य उचित बंदोबस्त के लिए ढांचागत सुविधा उपलब्ध कराने का स्पष्ट प्रावधान है. पुनर्वास नीति में जनजाति समुदाय से आने वाले लोगों के लिए विस्थापन के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने का भी नियम है.''

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