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इस गांव में बाघ का नहीं डर; ग्रामीणों का दोस्त बनकर रहता, फसलों को नुकसान होने से बचाता - International Tiger Day 2024

बात बाघ की हो तो जेहन में डर आना लाजमी है. लेकिन, क्या कभी आपने सुना है कि बाघ किसी गांव वालों के साथ दोस्ताना रूप में रहता है. वैसे तो ट्रेंड करके बाघ और अन्य खतरनाक जानवरों को रिंग मास्टर अपने इशारों पर नचाते हैं. ऐसा अक्सर सर्कस में देखा जाता है. लेकिन, यूपी के लखीमपुर खीरी के गांव में बाघ किसानों के दोस्त के रूप में रहते हैं. आईए सुनते हैं बाघ और किसानों की दोस्ती की कहानी ग्रामीणों की जुबानी.

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ग्रामीणों का दोस्त बनकर रहता, फसलों को नुकसान होने से बचाता (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jul 29, 2024, 3:10 PM IST

Updated : Jul 29, 2024, 5:27 PM IST

लखीमपुर खीरी: यूपी का लखीमपुर जनपद पीलीभीत टाइगर रिजर्व के क्षेत्र में आता है. दक्षिण खीरी वन प्रभाग के मोहम्मदी रेंज के बिहारीपुर फार्म के किसान और ग्रामीण बाघों को अपना दोस्त मानते हैं. राजपाल सिंह मुस्कुराते हुए कहते हैं कि टाइगर कभी हमें देखता है तो कभी हम टाइगर को देखते हैं. कभी कभी आमना-सामना हो जाता. कभी हम साइकिल पर होते कभी पैदल या ट्रैक्टर पर, लेकिन टाइगर अपने रस्ते चला जाता और हम अपने. जब से हमारे इलाके में बाघ बढ़े हैं खेतों में फसलों का नुकसान भी काफी कम हो गया है. हमारे लिए तो टाइगर 'फ्रेंड' ही हो गया है.

बाघों की संख्या 2014 के बाद से बढ़नी शुरू हुई: यूपी के लखीमपुर खीरी जिले के दक्षिण खीरी वन प्रभाग के मोहम्मदी रेंज के बिहारीपुर फार्म के रहने वाले राजपाल सिंह कहते हैं हमारा फार्म जंगल से सटा हुआ है. 2014 में हमने जंगल में एक बड़ा बाघ देखा था. इस इलाके में बाघों को इससे पहले कम ही देखा गया. शायद वो भारी भरकम बाघिन थी. इसके बाद बाघों के शावक खेतों में दिखने लगे.

कभी हमला नहीं करते बाघ: एक दिन तो हद ही हो गई. एक साथ छह बाघ देखे गए. ये बात जब हमने जंगल के एक अफसर को बताई वो भी मानने को तैयार नहीं थे. राजपाल सिंह कहते हैं कि बाघों से हमें कोई दिक्कत नहीं और ना ही उनको हमसे. हमारे खेतों, यहां तक कि फार्म के आंगन तक में कभी-कभी बाघ आ जाते पर कभी हमला नहीं किया. हमारे तो दोस्त बन गए हैं ये टाइगर.

जंगल में मस्ती करते बाघों का वीडियो. (Video Credit; ETV Bharat)

कैसा है बाघों और इंसान का रिश्ता: बाघों और मनुष्य का रिश्ता इतिहास में कभी बहुत मधुर नहीं रहा. लेकिन, राजपाल सिंह की बात बाघ और मनुष्य के सहअस्तित्व की एक नई इबारत लिखती हुई दिख रही. यूपी के तराई में बाघों की संख्या अच्छी है पर 1974 के पहले यहां बाघों की दुनिया सिमट सी गई थी. अंधाधुंध शिकार और जंगलों के कटान ने बाघों के अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर दिया था.

प्रोजेक्ट टाइगर ने बाघों की बढ़ाई सुरक्षा: प्रोजेक्ट टाइगर और नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) ने बाघों की सुरक्षा और संवर्धन पर तेजी से काम शुरू किया. जिसका नतीजा है कि बाघ अपने पुरखों की धरती पर लौट रहे हैं. खीरी जिले का मोहम्मदी इलाका भी कभी जंगलों से आबाद था पर अब जंगलों के कुछ पैच ही बचे हैं. बाघ कभी इन छोटे-छोटे जंगलों में तो कभी किसानों के गन्नों के खेतों को अपना आशियाना बना कुनबा बढ़ा रहे.

मन की बात में पीएम मोदी ने बाघों की बात की: देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में भी ग्लोबर टाइगर-डे के पहले रविवार को मन की बात में बाघमित्रों की बात की. वन विभाग विश्व प्रकृति निधि (WWF) के साथ मिलकर तराई में बाघ मित्र योजना चला रही, जिसमें जंगल किनारे गांवों में रहने वाले किसानों युवाओं को बाघ मित्र के रूप में चयनित कर बाघों के बिहेवियर और उनसे सुरक्षा के बारे में ट्रेनिंग दी जाती. बाघ मानव का दुश्मन नहीं ये बात गांव वालों को समझाई जाती है.

बाघों की सुरक्षा में बाघमित्रों की भूमिका: खीरी जिले के ही मूड़ा गालिब गांव के बाघ मित्र मोहित गुप्ता कहते हैं, 2018 से हम बाघ मित्र के रूप में काम कर रहे. कहीं बाघ का मूवमेंट हो या किसी पर हमला हो तो हम पहुंचकर लोगों को समझाते हैं कि पहले अपनी सुरक्षा करें फिर बाघ की सुरक्षा. क्योंकि दोनों ही जरूरी हैं. जंगल किनारे रहने वाले लोगों पर हमेशा बाघों के हमले का खतरा मंडराता रहता पर हमारा काम है दोनों की सुरक्षा.

यूपी में बढ़ा बाघ का कुनबा: यूपी में भी बाघ अपना दायरा बढ़ा रहे और कुनबा भी. भीरा इलाके के किशनपुर सेन्चुरी के पास रहने वाले किसान गुरजीत सिंह कहते हैं,"हमारे फार्म और खेतों में बाघ रहते हैं, ब्रीडिंग भी करते, हमें कोई हानि नहीं पहुंचाते, बल्कि बाघों के आने से जंगली सुअर, नीलगाय आदि से हमारी फसलें सुरक्षित हो रहीं हैं. बाघ बिल्कुल हमारे दोस्त जैसे हैं. हाल ही में एक बाघिन शावकों संग आई थी खेतों में."

बाघ कब करता है हमला: नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) के 2023 में जारी आंकड़ों के मुताबिक दुधवा टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या 43% तक बढ़ गई थी. वहीं दुधवा टाइगर रिजर्व के अंदर बाघों की संख्या 2018 की तुलना में 64 फीसदी तक बढ़ गई है. यह बढ़ोतरी देश के सभी टाइगर रिजर्व की तुलना में सबसे ज्यादा थी. बाघ जिसे धारीवाला संत (striped monk) कहा जाता, स्वभाव से बहुत शांत होता है. आम तौर पर बाघ मनुष्यों पर ऐसे हमला भी नहीं करता. जब तक उसे अपनी जान या शावकों की जान का खतरा न लगे.

कैसा होता है बाघों का व्यवहार: बाघों के व्यवहार को जानने वाले सीनियर आईएफएस अधिकारी रमेश पाण्डेय कहते हैं,"बाघों के संरक्षण की अलग चुनौतियां हैं, पर बाघ मनुष्य का दोस्ताना रिश्ता ही बाघों को बढ़ा रहा है. बिना दोस्त बने सह-अस्तित्व कैसा?"

क्या है टाइगर गार्जियन अभियान: दुधवा टाइगर रिजर्व की स्थापना और प्रोजेक्ट टाइगर की लॉन्चिंग के बाद बाघों और दुधवा के किनारे रह रहे किसानों को दोस्त बनाने को 'टाइगर गार्जियन' नाम से एक अभियान चलाया गया था, जिसके फायदे भी मिले. बाघों की संख्या भी बढ़ी.

बाघों के संरक्षण में टूरिस्ट का योगदान: वाइल्ड लाइफ को जानने वाले और दुधवा के किशनपुर सेन्चुरी के पास रहने वाले वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर फजलुर्रहमान कहते हैं,"मेरा मानना है कि बाघों के संरक्षण में जितना वन विभाग का योगदान उतना ही टूरिस्ट का भी है. जब लोग बाघ को देखेंगे उसके बारे में जानेंगे तभी उनका बाघों में इंटरेस्ट बढ़ेगा. टूरिस्ट भी बाघों के मूवमेंट पर नजर रखते और बेहतरीन तस्वीरें भी जंगल से बाहर आती जो देश दुनिया में भारत के टाइगरों के नाम से जाती हैं. इससे देश का मान बढ़ता है. जरूरी है बाघों के प्रति लोगों में रेस्पेक्ट की भावना का होना. "

एनटीसीए के 2023 में जारी आंकड़ों में दुधवा टाइगर रिजर्व में बाघों की आबादी में रिकार्ड बढ़ोतरी हुई है. 2018 में दुधवा में बाघों की तादात 107 थी. 2022 में हुए टाइगर इस्टीमेशन में बढ़कर 153 हो गई है. दुधवा टाइगर रिजर्व और बफर जोन में भी बाघों की संख्या में शानदार बढ़ोतरी दर्ज हुई है. पर दुधवा के जंगलों से इतर बाघों ने जंगलों से निकल खीरी जिले के छोटे-छोटे जंगलों और गन्ने के खेतों में होते हुए अपना दायरा बढ़ाया है और कुनबा भी.

खीरी के जंगलों में हो रही बाघों की ब्रीडिंग: टाइगर रिजर्व से इतर बाघों की संख्या बफर जोन और यहां तक दक्षिण खीरी के कई जंगलों तक आ गई. आंवला जंगल हो या महेशपुर और गोला इलाके के जंगल बाघ हर जगह पाए जा रहे और उनकी ब्रीडिंग भी हो रही.

बाघों की सुरक्षा में ग्रामीणों का योगदान: डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के कोऑर्डिनेटर दबीर हसन कहते हैं, "बाघों को बचाने में आसपास के गांव वालों का ही सबसे बड़ा योगदान है. हम बाघ मित्रों के जरिए सह-अस्तित्व पर ही जोर देते हैं. क्योंकि, बाघ बचेंगे तभी जंगल बचेंगे और हमारी ये मुहिम काम आ रही. मनुष्य बाघ संघर्ष कम हुआ दोनों दोस्त बन रहे."

भारत में विश्व के 70 फीसदी बाघ जंगलों में विचरण कर रहे. बाघों की संख्या करीब 3600 है जो बाघों के संरक्षण के लिए चलाए जा रहे प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता की कहानी खुद बयां करती है.

यूपी में खीरी जिले में दक्षिण खीरी वन प्रभाग के युवा डीएफओ संजय बिस्वाल कहते हैं, "हम आमतौर पर जंगलों में ही बाघों के होने का अनुमान रखते हैं पर तराई में बाघ अब अपना कुनबा बढ़ा रहे, वो जंगलों के साथ-साथ गन्ने के खेतों में भी रह रहे. जो बाघों और किसानों की दोस्ती की कहानी कह रहे. ये एक नई कहानी है बाघों की संतति के विकास की. हमारा संयुक्त प्रयास ही सह-अस्तित्व को बढ़ा सकता और बाघों को भी."

कब और कैसे हुई थी अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस की शुरुआत: अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने की शुरुआत साल 2010 में हुई थी. रूस के पीटर्सबर्ग की एक इंटरनेशनल कांफ्रेंस में 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस मनाने का फैसला लिया गया था. क्रांफेंस में 13 देशों ने हिस्सा लिया था. बाघ दिवस मनाने का फैसला लेते हुए इन सभी देशों ने बाघों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य रखा था.

अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने का क्या है उद्देश्य: बाघ दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों को बाघों के संरक्षण के प्रति जागरूक करना है. इसके साथ ही उनके आवास की रक्षा और उन्हें कैसे बढ़ाया जाए, इस पर भी प्रकाश डालना है. पर्यावरण को होने वाले नुकसान, जलवायु परिवर्तन के अलावा अवैध शिकार जैसे कई कारण हैं, जिनकी वजह से आज बाघों की संख्या लगातार कम हो रही है.

ये भी पढ़ेंः Watch: गजब! ये बाघ हफ्ते में एक दिन रखता व्रत, 24 घंटे कुछ भी नहीं खाता-पीता, ये है वजह...

ये भी पढ़ेंः प्रोजेक्ट टाइगर का कमाल, दुनिया के तीन चौथाई बाघ भारत में, कौन-सा राज्य नंबर वन, जानें

लखीमपुर खीरी: यूपी का लखीमपुर जनपद पीलीभीत टाइगर रिजर्व के क्षेत्र में आता है. दक्षिण खीरी वन प्रभाग के मोहम्मदी रेंज के बिहारीपुर फार्म के किसान और ग्रामीण बाघों को अपना दोस्त मानते हैं. राजपाल सिंह मुस्कुराते हुए कहते हैं कि टाइगर कभी हमें देखता है तो कभी हम टाइगर को देखते हैं. कभी कभी आमना-सामना हो जाता. कभी हम साइकिल पर होते कभी पैदल या ट्रैक्टर पर, लेकिन टाइगर अपने रस्ते चला जाता और हम अपने. जब से हमारे इलाके में बाघ बढ़े हैं खेतों में फसलों का नुकसान भी काफी कम हो गया है. हमारे लिए तो टाइगर 'फ्रेंड' ही हो गया है.

बाघों की संख्या 2014 के बाद से बढ़नी शुरू हुई: यूपी के लखीमपुर खीरी जिले के दक्षिण खीरी वन प्रभाग के मोहम्मदी रेंज के बिहारीपुर फार्म के रहने वाले राजपाल सिंह कहते हैं हमारा फार्म जंगल से सटा हुआ है. 2014 में हमने जंगल में एक बड़ा बाघ देखा था. इस इलाके में बाघों को इससे पहले कम ही देखा गया. शायद वो भारी भरकम बाघिन थी. इसके बाद बाघों के शावक खेतों में दिखने लगे.

कभी हमला नहीं करते बाघ: एक दिन तो हद ही हो गई. एक साथ छह बाघ देखे गए. ये बात जब हमने जंगल के एक अफसर को बताई वो भी मानने को तैयार नहीं थे. राजपाल सिंह कहते हैं कि बाघों से हमें कोई दिक्कत नहीं और ना ही उनको हमसे. हमारे खेतों, यहां तक कि फार्म के आंगन तक में कभी-कभी बाघ आ जाते पर कभी हमला नहीं किया. हमारे तो दोस्त बन गए हैं ये टाइगर.

जंगल में मस्ती करते बाघों का वीडियो. (Video Credit; ETV Bharat)

कैसा है बाघों और इंसान का रिश्ता: बाघों और मनुष्य का रिश्ता इतिहास में कभी बहुत मधुर नहीं रहा. लेकिन, राजपाल सिंह की बात बाघ और मनुष्य के सहअस्तित्व की एक नई इबारत लिखती हुई दिख रही. यूपी के तराई में बाघों की संख्या अच्छी है पर 1974 के पहले यहां बाघों की दुनिया सिमट सी गई थी. अंधाधुंध शिकार और जंगलों के कटान ने बाघों के अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर दिया था.

प्रोजेक्ट टाइगर ने बाघों की बढ़ाई सुरक्षा: प्रोजेक्ट टाइगर और नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) ने बाघों की सुरक्षा और संवर्धन पर तेजी से काम शुरू किया. जिसका नतीजा है कि बाघ अपने पुरखों की धरती पर लौट रहे हैं. खीरी जिले का मोहम्मदी इलाका भी कभी जंगलों से आबाद था पर अब जंगलों के कुछ पैच ही बचे हैं. बाघ कभी इन छोटे-छोटे जंगलों में तो कभी किसानों के गन्नों के खेतों को अपना आशियाना बना कुनबा बढ़ा रहे.

मन की बात में पीएम मोदी ने बाघों की बात की: देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में भी ग्लोबर टाइगर-डे के पहले रविवार को मन की बात में बाघमित्रों की बात की. वन विभाग विश्व प्रकृति निधि (WWF) के साथ मिलकर तराई में बाघ मित्र योजना चला रही, जिसमें जंगल किनारे गांवों में रहने वाले किसानों युवाओं को बाघ मित्र के रूप में चयनित कर बाघों के बिहेवियर और उनसे सुरक्षा के बारे में ट्रेनिंग दी जाती. बाघ मानव का दुश्मन नहीं ये बात गांव वालों को समझाई जाती है.

बाघों की सुरक्षा में बाघमित्रों की भूमिका: खीरी जिले के ही मूड़ा गालिब गांव के बाघ मित्र मोहित गुप्ता कहते हैं, 2018 से हम बाघ मित्र के रूप में काम कर रहे. कहीं बाघ का मूवमेंट हो या किसी पर हमला हो तो हम पहुंचकर लोगों को समझाते हैं कि पहले अपनी सुरक्षा करें फिर बाघ की सुरक्षा. क्योंकि दोनों ही जरूरी हैं. जंगल किनारे रहने वाले लोगों पर हमेशा बाघों के हमले का खतरा मंडराता रहता पर हमारा काम है दोनों की सुरक्षा.

यूपी में बढ़ा बाघ का कुनबा: यूपी में भी बाघ अपना दायरा बढ़ा रहे और कुनबा भी. भीरा इलाके के किशनपुर सेन्चुरी के पास रहने वाले किसान गुरजीत सिंह कहते हैं,"हमारे फार्म और खेतों में बाघ रहते हैं, ब्रीडिंग भी करते, हमें कोई हानि नहीं पहुंचाते, बल्कि बाघों के आने से जंगली सुअर, नीलगाय आदि से हमारी फसलें सुरक्षित हो रहीं हैं. बाघ बिल्कुल हमारे दोस्त जैसे हैं. हाल ही में एक बाघिन शावकों संग आई थी खेतों में."

बाघ कब करता है हमला: नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) के 2023 में जारी आंकड़ों के मुताबिक दुधवा टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या 43% तक बढ़ गई थी. वहीं दुधवा टाइगर रिजर्व के अंदर बाघों की संख्या 2018 की तुलना में 64 फीसदी तक बढ़ गई है. यह बढ़ोतरी देश के सभी टाइगर रिजर्व की तुलना में सबसे ज्यादा थी. बाघ जिसे धारीवाला संत (striped monk) कहा जाता, स्वभाव से बहुत शांत होता है. आम तौर पर बाघ मनुष्यों पर ऐसे हमला भी नहीं करता. जब तक उसे अपनी जान या शावकों की जान का खतरा न लगे.

कैसा होता है बाघों का व्यवहार: बाघों के व्यवहार को जानने वाले सीनियर आईएफएस अधिकारी रमेश पाण्डेय कहते हैं,"बाघों के संरक्षण की अलग चुनौतियां हैं, पर बाघ मनुष्य का दोस्ताना रिश्ता ही बाघों को बढ़ा रहा है. बिना दोस्त बने सह-अस्तित्व कैसा?"

क्या है टाइगर गार्जियन अभियान: दुधवा टाइगर रिजर्व की स्थापना और प्रोजेक्ट टाइगर की लॉन्चिंग के बाद बाघों और दुधवा के किनारे रह रहे किसानों को दोस्त बनाने को 'टाइगर गार्जियन' नाम से एक अभियान चलाया गया था, जिसके फायदे भी मिले. बाघों की संख्या भी बढ़ी.

बाघों के संरक्षण में टूरिस्ट का योगदान: वाइल्ड लाइफ को जानने वाले और दुधवा के किशनपुर सेन्चुरी के पास रहने वाले वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर फजलुर्रहमान कहते हैं,"मेरा मानना है कि बाघों के संरक्षण में जितना वन विभाग का योगदान उतना ही टूरिस्ट का भी है. जब लोग बाघ को देखेंगे उसके बारे में जानेंगे तभी उनका बाघों में इंटरेस्ट बढ़ेगा. टूरिस्ट भी बाघों के मूवमेंट पर नजर रखते और बेहतरीन तस्वीरें भी जंगल से बाहर आती जो देश दुनिया में भारत के टाइगरों के नाम से जाती हैं. इससे देश का मान बढ़ता है. जरूरी है बाघों के प्रति लोगों में रेस्पेक्ट की भावना का होना. "

एनटीसीए के 2023 में जारी आंकड़ों में दुधवा टाइगर रिजर्व में बाघों की आबादी में रिकार्ड बढ़ोतरी हुई है. 2018 में दुधवा में बाघों की तादात 107 थी. 2022 में हुए टाइगर इस्टीमेशन में बढ़कर 153 हो गई है. दुधवा टाइगर रिजर्व और बफर जोन में भी बाघों की संख्या में शानदार बढ़ोतरी दर्ज हुई है. पर दुधवा के जंगलों से इतर बाघों ने जंगलों से निकल खीरी जिले के छोटे-छोटे जंगलों और गन्ने के खेतों में होते हुए अपना दायरा बढ़ाया है और कुनबा भी.

खीरी के जंगलों में हो रही बाघों की ब्रीडिंग: टाइगर रिजर्व से इतर बाघों की संख्या बफर जोन और यहां तक दक्षिण खीरी के कई जंगलों तक आ गई. आंवला जंगल हो या महेशपुर और गोला इलाके के जंगल बाघ हर जगह पाए जा रहे और उनकी ब्रीडिंग भी हो रही.

बाघों की सुरक्षा में ग्रामीणों का योगदान: डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के कोऑर्डिनेटर दबीर हसन कहते हैं, "बाघों को बचाने में आसपास के गांव वालों का ही सबसे बड़ा योगदान है. हम बाघ मित्रों के जरिए सह-अस्तित्व पर ही जोर देते हैं. क्योंकि, बाघ बचेंगे तभी जंगल बचेंगे और हमारी ये मुहिम काम आ रही. मनुष्य बाघ संघर्ष कम हुआ दोनों दोस्त बन रहे."

भारत में विश्व के 70 फीसदी बाघ जंगलों में विचरण कर रहे. बाघों की संख्या करीब 3600 है जो बाघों के संरक्षण के लिए चलाए जा रहे प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता की कहानी खुद बयां करती है.

यूपी में खीरी जिले में दक्षिण खीरी वन प्रभाग के युवा डीएफओ संजय बिस्वाल कहते हैं, "हम आमतौर पर जंगलों में ही बाघों के होने का अनुमान रखते हैं पर तराई में बाघ अब अपना कुनबा बढ़ा रहे, वो जंगलों के साथ-साथ गन्ने के खेतों में भी रह रहे. जो बाघों और किसानों की दोस्ती की कहानी कह रहे. ये एक नई कहानी है बाघों की संतति के विकास की. हमारा संयुक्त प्रयास ही सह-अस्तित्व को बढ़ा सकता और बाघों को भी."

कब और कैसे हुई थी अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस की शुरुआत: अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने की शुरुआत साल 2010 में हुई थी. रूस के पीटर्सबर्ग की एक इंटरनेशनल कांफ्रेंस में 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस मनाने का फैसला लिया गया था. क्रांफेंस में 13 देशों ने हिस्सा लिया था. बाघ दिवस मनाने का फैसला लेते हुए इन सभी देशों ने बाघों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य रखा था.

अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने का क्या है उद्देश्य: बाघ दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों को बाघों के संरक्षण के प्रति जागरूक करना है. इसके साथ ही उनके आवास की रक्षा और उन्हें कैसे बढ़ाया जाए, इस पर भी प्रकाश डालना है. पर्यावरण को होने वाले नुकसान, जलवायु परिवर्तन के अलावा अवैध शिकार जैसे कई कारण हैं, जिनकी वजह से आज बाघों की संख्या लगातार कम हो रही है.

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Last Updated : Jul 29, 2024, 5:27 PM IST
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