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बिहार के मजदूरों की मजबूरी, पापी पेट के लिए पटना के चौक-चौराहों पर रोजाना लगता है मेला - labour day 2024 - LABOUR DAY 2024

Labour Day 2024: मजदूर दिवस पर सभी मजदूरों को बधाई दे रहे हैं. बिहार में मजदूरों की संख्या भी काफी है. घर-परिवार चलाने के लिए मजदूरों को काफी जतन करना पड़ता है. आज छुट्टी लेकर घर में आराम करने के बजाय अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ करने के लिए पटना की सड़कों पर अलग-अलग जिलों से आए मजदूरों का मेला लग गया है. मजदूरों ने अपनी परेशानी ईटीवी भारत के साथ साझा की.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : May 1, 2024, 11:57 AM IST

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पटना: बिहार सदियों से पलायन का डंस झेल रहा है. रोजी रोटी के लिए प्रतिदिन राजधानी का चौक चौराहा सूर्योदय के साथ ही मजदूरों का मेला में तब्दील हो जाता है. आज अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस है, इसके बावजूद राजधानी पटना में रोजाना की तरह मजदूरों का मेला लगा है, जहां मजदूर इस इंतजार में हैं कि उन्हें कुछ काम मिल जाए, ताकि उनके घर में आज चुल्हा जल सके.

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 2024
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 2024

मजदूर दिवस पर मजदूरों का मेला: आज सरकारी छुट्टी है प्राइवेट दफ्तर भी बंद है, लेकिन राजधानी में काम करने आए कई मजदूरों को पता भी नहीं है कि आज मजदूर दिवस है. मजदूर अपने खरीदार के इंतजार में हैं, कि कब खरीदार पहुंचेंगे और मजदूरों को 8 से 9 घंटे के लिए खरीदेंगे. इसी पैसे से मजदूरी करके शाम में मजदूर घर लौटते हैं जिसके बाद इन मजदूरों का घर का चूल्हा जलता है.

चौक-चौराहों पर लगती है मजदूरों की बोली: राजधानी का बेली रोड, पटना जंक्शन गोलंबर, बोरिंग रोड, राजीव नगर ,कंकड़बाग, बाईपास और कई जगहों पर हर दिन मजदूरों का मेला काम की तलाश में लगता है. घंटो खड़ा रहने के बाद जैसे ही इस चौक-चौराहे पर किसी की बाइक या गाड़ी लगती है तो यह मजदूर दौड़ पड़ते है. काम करने वाले लोग मजदूरों से बातचीत करते हैं और कितने मजदूर की जरूरत है उसके हिसाब से इन लोगों की रेट तय की जाती है. उसके बाद काम पर ले जाते हैं, दिनभर काम करवाते हैं और फिर शाम में मजदूरी लेकर अपने घर लौट जाते हैं और इस राशि से शाम का भोजन बनता है.

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 2024
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 2024

मजदूरों की मजबूरी की कहानी: गोपालगंज जिला के रहने वाले मजदूर ब्रिज किशोर महतो ने कहा कि 15 सालों से पटना में राजमिस्त्री का काम कर रहा हूं. राजमिस्त्री को ₹700 और मजदूर को ₹500 मिलता है. इसी से हम लोगों का घर परिवार चलता है. प्रतिदिन सुबह 6:00 बजे बोरिंग रोड चौराहा पर आ जाते हैं, इस उम्मीद में कि यहां पर काम मिल जाता है.

"सभी लोगों को पता है कि पटना में बोरिंग रोड राजीव नगर बेली रोड और कई चौक चौराहों पर प्रतिदिन मजदूर और मिस्त्री रहते हैं. कई बार ऐसी समस्या आती है कि निराश होकर के घर लौटना पड़ता है, क्योंकि काम डेली नहीं मिलता है. सरकार कागजों में काम करती है मजदूरों को आर्थिक स्थिति सुधारने की हर चुनाव में घोषणा किया जाता है लेकिन इसका कुछ नहीं होता है बहुत सारे लोग तो अपने प्रदेश को छोड़कर दूसरे प्रदेश में काम कर रहे हैं."- ब्रिज किशोर महतो, मजदूर

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 2024
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 2024

"हम लोग छह परिवार हैं. इसलिए इस अवस्था में भी मुझे मजदूरी करना पड़ रहा है. परिवार का भरण पोषण महंगाई के जमाने में करना मुश्किल हो रहा है. 33 सालों मजदूरी कर रहा हूं. प्रतिदिन काम नहीं मिलता है. जिस दिन काम मिलता है उस दिन ₹500 लेकर खुशी से घर जाते हैं और घर का राशन खरीदते हैं, जिस दिन काम नहीं मिलता उस दिन निराश होकर के घर लौटना पड़ता है."- लोकनाथ, मजदूर

सुबह से 12 बजे तक खरीदार इंतजार: छपरा जिला के रहने वाले मजदूर रमेश ने कहा कि हम लोग महीना पर नहीं काम करते हैं. डेली कमाना है डेली खाना है. गर्मी का मौसम है तो इसमें काम भी कम मिल रहा है. घर का काम ठंड के मौसम में ज्यादा लोग करवाते हैं. जिस दिन काम नहीं मिलता है उसे दिन पेट बांधकर सो जाते हैं. मजदूर होने के नाते कर्ज भी नहीं मिलता है. सुबह 6 बजे से लगभग 12:00 बजे तक हम लोग इंतजार करते हैं 12:00 बजे के बाद काम नहीं मिलता है तो हम लोग वापस लौट जाते हैं.

सरकार पर लगा अनदेखी का आरोप: वहीं मजदूर बिट्टू कुमार ने कहा कि सरकार मजदूरों पर ध्यान नहीं देती है. मजदूरों पर ध्यान देती तो सरकार के जितने भी योजना चल रहे हैं, उसी में मजदूर काम करते. उन्होंने कहा कि आज मजदूर दिवस है, लेकिन हम लोगों को मजदूर दिवस हो या कोई दिवस हो कोई मतलब नहीं है. बता दें कि राजधानी में प्रतिदिन काम करने वाले मजदूर चौक चौराहा पर पहुंचते हैं. यही कारण है कि चौक-चौराहा सुबह से लेकर दोपहर तक मजदूरों से भरा पड़ा रहता है. लगभग 20 से 25 हजार मजदूर प्रतिदिन राजधानी काम की तलाश में आते हैं.

"हम लोग रोज कमाने वाले लोग है इसी से घर परिवार को चलाते है. बिहार सरकार मजदूरों की भलाई सोचती तो आज ऐसी स्थिति नहीं रहती. दूसरे जगह से आकर के राजधानी में काम करना पड़ता है बल्कि अपने क्षेत्र में ही काम करते और अपने घर परिवार के पास में रहते हैं."- बिट्टू कुमार, मजदूर

ये भी पढ़ें:

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने दी शुभकामनाएं, श्रमिकों को उचित सम्मान और हक देने की अपील - Labour Day 2024

इसे ही कहते हैं 'वोट परदेशी हो गए', प्रवासी वोटर बिहार की राजनीति के लिए हो सकते हैं 'बड़े फैक्टर', सवाल- उन्हें बुथ तक पहुंचाए कौन? - International Labour Day 2024

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पटना: बिहार सदियों से पलायन का डंस झेल रहा है. रोजी रोटी के लिए प्रतिदिन राजधानी का चौक चौराहा सूर्योदय के साथ ही मजदूरों का मेला में तब्दील हो जाता है. आज अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस है, इसके बावजूद राजधानी पटना में रोजाना की तरह मजदूरों का मेला लगा है, जहां मजदूर इस इंतजार में हैं कि उन्हें कुछ काम मिल जाए, ताकि उनके घर में आज चुल्हा जल सके.

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 2024
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 2024

मजदूर दिवस पर मजदूरों का मेला: आज सरकारी छुट्टी है प्राइवेट दफ्तर भी बंद है, लेकिन राजधानी में काम करने आए कई मजदूरों को पता भी नहीं है कि आज मजदूर दिवस है. मजदूर अपने खरीदार के इंतजार में हैं, कि कब खरीदार पहुंचेंगे और मजदूरों को 8 से 9 घंटे के लिए खरीदेंगे. इसी पैसे से मजदूरी करके शाम में मजदूर घर लौटते हैं जिसके बाद इन मजदूरों का घर का चूल्हा जलता है.

चौक-चौराहों पर लगती है मजदूरों की बोली: राजधानी का बेली रोड, पटना जंक्शन गोलंबर, बोरिंग रोड, राजीव नगर ,कंकड़बाग, बाईपास और कई जगहों पर हर दिन मजदूरों का मेला काम की तलाश में लगता है. घंटो खड़ा रहने के बाद जैसे ही इस चौक-चौराहे पर किसी की बाइक या गाड़ी लगती है तो यह मजदूर दौड़ पड़ते है. काम करने वाले लोग मजदूरों से बातचीत करते हैं और कितने मजदूर की जरूरत है उसके हिसाब से इन लोगों की रेट तय की जाती है. उसके बाद काम पर ले जाते हैं, दिनभर काम करवाते हैं और फिर शाम में मजदूरी लेकर अपने घर लौट जाते हैं और इस राशि से शाम का भोजन बनता है.

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 2024
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 2024

मजदूरों की मजबूरी की कहानी: गोपालगंज जिला के रहने वाले मजदूर ब्रिज किशोर महतो ने कहा कि 15 सालों से पटना में राजमिस्त्री का काम कर रहा हूं. राजमिस्त्री को ₹700 और मजदूर को ₹500 मिलता है. इसी से हम लोगों का घर परिवार चलता है. प्रतिदिन सुबह 6:00 बजे बोरिंग रोड चौराहा पर आ जाते हैं, इस उम्मीद में कि यहां पर काम मिल जाता है.

"सभी लोगों को पता है कि पटना में बोरिंग रोड राजीव नगर बेली रोड और कई चौक चौराहों पर प्रतिदिन मजदूर और मिस्त्री रहते हैं. कई बार ऐसी समस्या आती है कि निराश होकर के घर लौटना पड़ता है, क्योंकि काम डेली नहीं मिलता है. सरकार कागजों में काम करती है मजदूरों को आर्थिक स्थिति सुधारने की हर चुनाव में घोषणा किया जाता है लेकिन इसका कुछ नहीं होता है बहुत सारे लोग तो अपने प्रदेश को छोड़कर दूसरे प्रदेश में काम कर रहे हैं."- ब्रिज किशोर महतो, मजदूर

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 2024
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 2024

"हम लोग छह परिवार हैं. इसलिए इस अवस्था में भी मुझे मजदूरी करना पड़ रहा है. परिवार का भरण पोषण महंगाई के जमाने में करना मुश्किल हो रहा है. 33 सालों मजदूरी कर रहा हूं. प्रतिदिन काम नहीं मिलता है. जिस दिन काम मिलता है उस दिन ₹500 लेकर खुशी से घर जाते हैं और घर का राशन खरीदते हैं, जिस दिन काम नहीं मिलता उस दिन निराश होकर के घर लौटना पड़ता है."- लोकनाथ, मजदूर

सुबह से 12 बजे तक खरीदार इंतजार: छपरा जिला के रहने वाले मजदूर रमेश ने कहा कि हम लोग महीना पर नहीं काम करते हैं. डेली कमाना है डेली खाना है. गर्मी का मौसम है तो इसमें काम भी कम मिल रहा है. घर का काम ठंड के मौसम में ज्यादा लोग करवाते हैं. जिस दिन काम नहीं मिलता है उसे दिन पेट बांधकर सो जाते हैं. मजदूर होने के नाते कर्ज भी नहीं मिलता है. सुबह 6 बजे से लगभग 12:00 बजे तक हम लोग इंतजार करते हैं 12:00 बजे के बाद काम नहीं मिलता है तो हम लोग वापस लौट जाते हैं.

सरकार पर लगा अनदेखी का आरोप: वहीं मजदूर बिट्टू कुमार ने कहा कि सरकार मजदूरों पर ध्यान नहीं देती है. मजदूरों पर ध्यान देती तो सरकार के जितने भी योजना चल रहे हैं, उसी में मजदूर काम करते. उन्होंने कहा कि आज मजदूर दिवस है, लेकिन हम लोगों को मजदूर दिवस हो या कोई दिवस हो कोई मतलब नहीं है. बता दें कि राजधानी में प्रतिदिन काम करने वाले मजदूर चौक चौराहा पर पहुंचते हैं. यही कारण है कि चौक-चौराहा सुबह से लेकर दोपहर तक मजदूरों से भरा पड़ा रहता है. लगभग 20 से 25 हजार मजदूर प्रतिदिन राजधानी काम की तलाश में आते हैं.

"हम लोग रोज कमाने वाले लोग है इसी से घर परिवार को चलाते है. बिहार सरकार मजदूरों की भलाई सोचती तो आज ऐसी स्थिति नहीं रहती. दूसरे जगह से आकर के राजधानी में काम करना पड़ता है बल्कि अपने क्षेत्र में ही काम करते और अपने घर परिवार के पास में रहते हैं."- बिट्टू कुमार, मजदूर

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