सरगुजा: जैव विविधता की कमी से प्राकृतिक आपदा आती है. जैसे बाढ़, सूखा और तूफान आदि आने का खतरा और अधिक बढ़ जाता है. ऐसे में हमारे लिए जैव विविधता का संरक्षण बेहद जरूरी है. 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैविक विविधता दिवस है. इस मौके पर ईटीवी भारत आपको भारत के एक ऐसे जंगल के बारे में बताने जा रहा है, जहां इतनी अधिक जैव विविधता है कि इसे मध्यभारत का फेफड़ा कहा जाता है. इस जंगल की खासियत के कारण ही यहां कोल खदानों को खोलने का विरोध विश्व स्तर पर हो रहा है.
आइये जानते हैं छत्तीसगढ़ का हसदेव जंगल क्यों इतना महत्वपूर्ण है?
पर्यावरण प्रेमी कर रहे इसका विरोध: दरअसल, इस क्षेत्र में सरकार ने कोल परियोजना स्वीकृत कर दी है. एक खदान परसा कोल ब्लॉक में संचालित है. साथ ही यहां केते ईस्ट बासेन के एक्सटेंशन की स्वीकृति मिल चुकी है. एक्सटेंशन के दायरे में आने वाली खदान का पूरा हिस्सा ही घने वन क्षेत्र का है. लिहाजा ग्रामीण समेत दुनिया भर के तमाम पर्यावरण प्रेमी इसका विरोध कर रहे हैं.
हसदेव के जंगलों में अधिकतर साल के पेड़: इस बारे में ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान वरिष्ठ पत्रकार मनोज गुप्ता ने कहा कि, "इस जंगल में ज्यादातर पेड़ साल के हैं. इसलिए ये बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि साल के वृक्ष को कृतिम रूप से नहीं लगाया जा सकता है. साल के पेड़ प्राकृतिक रूप से ही लगते हैं. इसके बीज जब पेड़ से गिरते हैं तो उस दौरान अगर वो 24 घंटे के अंदर खुद से अंकुरित हो गए, तभी एक साल का वृक्ष तैयार हो सकता है. आप चाहें तो इसे प्लांटेशन करके लगा दें तो ये संभव नहीं है, इसलिए कोल खदानों के लिए काटे गए पेड़ों के एवज में प्लांटेशन किया जाना न्याय संगत नहीं है, क्योंकि जितनी ऑक्सीजन साल का पेड़ दे सकता है, कोई अन्य पेड़ नहीं दे सकता."
साल का पेड़ पर्यावरण की दृष्टि से और भी उपयोगी इसलिए हो जाता है क्योंकि यह पानी काफी कम अवशोषित करता है. इसकी उम्र 150 से 200 साल तक होती है. इसके अलावा हसदेव का जंगल हाथियों का पुराना रहवास है. कई जीव-जंतु और पक्षी यहां रहते हैं. कई पक्षियों पर रिसर्च चल रही है. हसदेव के जंगल में मिलने वाले दुर्लभ जीव और वृक्षों पर रिसर्च अब भी चल ही रही है.-मनोज गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार
हसदेव के जंगलों में जैव विविधता पाई जाती है: सरकारों के साथ ही शासन के विभागों ने भी ये माना है कि हसदेव के क्षेत्र के अंतर्गत ही लेमरू का भी क्षेत्र है. इस जंगल को लेमरू एलिफेंट कॉरिडोर के नाम पर संरक्षित करने का फैसला लिया गया है, क्योंकि कोयला वहीं पर निकलता है, जहां जंगल होते हैं. इसलिए कोयले की आपूर्ति के लिए जंगल तो काटने ही पड़ेंगे. लेकिन सवाल ये है कि कोयला तो अन्य स्थानों पर भी मिल जाएगा. फिर इतने महत्वपूर्ण जंगल को काटने की क्या जरूरत है, क्योंकि इस जंगल में सर्वाधिक जैव विविधता पाई जाती है.