ETV Bharat / state

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता परिवर्तनकारी युग की शुरुआत है: दिल्ली हाईकोर्ट - BNSS NEW CRIMINAL LAWS

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता परिवर्तनकारी युग की शुरुआत है. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता तकनीक के आधार पर पारदर्शी और जिम्मेदार न्याय सुनिश्चित करता है.

दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट (Etv Bharat)
author img

By ETV Bharat Delhi Team

Published : Jul 11, 2024, 8:46 PM IST

नई दिल्ली: नया आपराधिक कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) एक परिवर्तनकारी युग की शुरुआत है. ये बात दिल्ली हाईकोर्ट ने कही है. एनडीपीएस एक्ट के तहत एक आरोपी को जमानत देते हुए जस्टिस अमित महाजन ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता तकनीक के आधार पर पारदर्शी और जिम्मेदार न्याय सुनिश्चित करता है.

दरअसल, मामला 28 दिसंबर 2019 का है. दिल्ली पुलिस को सूचना मिली कि आरोपी बंतु हिमाचल प्रदेश से लाकर दिल्ली के मंजू का टीला के पास संजय अखाड़ा में दिन के साढ़े तीन बजे से साढ़े चार बजे के बीच चरस की सप्लाई करने वाला है. इस सूचना को डायरी में दर्ज करने के बाद पुलिस ने शाम करीब चार बजकर 10 मिनट पर छापा मारा और आरोपी को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस के मुताबिक, आरोपी के पास से बरामद बैग में 1.1 किलोग्राम चरस बरामद किया गया. चरस की इतनी बड़ी मात्रा में बरामदगी कानून के मुताबिक व्यवसायिक श्रेणी में आता है. पुलिस ने इस मामले में चार्जशीट दाखिल किया, जिस पर 12 जनवरी 2022 को ट्रायल कोर्ट ने संज्ञान लिया. सुनवाई के दौरान आरोपी की ओर से पेश वकील ने कहा कि उसे झूठे तरीके से फंसाया गया है. उन्होंने कहा कि अभियोजन की ओर से जांच में गंभीर खामियां हैं. आरोपी के वकील ने कहा कि बरामदगी दिन में हुई है उसके बावजूद पुलिस के बाद स्वतंत्र गवाह नहीं है.

आरोपी के वकील ने कहा कि दिल्ली पुलिस के सीडीआर के मुताबिक आरोपी के नंबर से बरामदगी वाले दिन 6 बजे शाम तक बात हुई है. जबकि, अभियोजन पक्ष कह रहा है कि आरोपी को करीब सवा चार बजे गिरफ्तार किया गया. उन्होंने कहा कि एनडीपीएस कानून की धारा 50 का पुलिस ने पालन नहीं किया. पहले से सूचना मिलने के बावजूद छापे की कार्रवाई की वीडियोग्रॉफी नहीं की गई.

हाईकोर्ट ने कहा कि अब विधायिका ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता पारित किया है. इसमें फोटोग्राफी और वीडियोग्रॉफी को अनिवार्य बनाया गया है. इस कानून के पहले भी कई बार कोर्ट ने स्वतंत्र गवाह और अतिरिक्त साक्ष्य के तौर पर ऑडियो वीडियो के महत्व को स्वीकार किया है. कोर्ट ने कहा कि आजकल हर व्यक्ति के पास मोबाइल है, जो वीडियो बना सकता है. वैसे में छापे की कार्रवाई के दौरान वीडियो क्यों नहीं बनाया गया. जबकि, पहले से सूचना मिल चुकी थी. कोर्ट ने कहा कि भले ही पुलिस ये कहे कि छापे के दौरान मोबाइल नहीं होना अभियोजन के केस के लिए घातक नहीं है. लेकिन इससे आरोपी को संदेह का लाभ तो दिया ही जा सकता है.

नई दिल्ली: नया आपराधिक कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) एक परिवर्तनकारी युग की शुरुआत है. ये बात दिल्ली हाईकोर्ट ने कही है. एनडीपीएस एक्ट के तहत एक आरोपी को जमानत देते हुए जस्टिस अमित महाजन ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता तकनीक के आधार पर पारदर्शी और जिम्मेदार न्याय सुनिश्चित करता है.

दरअसल, मामला 28 दिसंबर 2019 का है. दिल्ली पुलिस को सूचना मिली कि आरोपी बंतु हिमाचल प्रदेश से लाकर दिल्ली के मंजू का टीला के पास संजय अखाड़ा में दिन के साढ़े तीन बजे से साढ़े चार बजे के बीच चरस की सप्लाई करने वाला है. इस सूचना को डायरी में दर्ज करने के बाद पुलिस ने शाम करीब चार बजकर 10 मिनट पर छापा मारा और आरोपी को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस के मुताबिक, आरोपी के पास से बरामद बैग में 1.1 किलोग्राम चरस बरामद किया गया. चरस की इतनी बड़ी मात्रा में बरामदगी कानून के मुताबिक व्यवसायिक श्रेणी में आता है. पुलिस ने इस मामले में चार्जशीट दाखिल किया, जिस पर 12 जनवरी 2022 को ट्रायल कोर्ट ने संज्ञान लिया. सुनवाई के दौरान आरोपी की ओर से पेश वकील ने कहा कि उसे झूठे तरीके से फंसाया गया है. उन्होंने कहा कि अभियोजन की ओर से जांच में गंभीर खामियां हैं. आरोपी के वकील ने कहा कि बरामदगी दिन में हुई है उसके बावजूद पुलिस के बाद स्वतंत्र गवाह नहीं है.

आरोपी के वकील ने कहा कि दिल्ली पुलिस के सीडीआर के मुताबिक आरोपी के नंबर से बरामदगी वाले दिन 6 बजे शाम तक बात हुई है. जबकि, अभियोजन पक्ष कह रहा है कि आरोपी को करीब सवा चार बजे गिरफ्तार किया गया. उन्होंने कहा कि एनडीपीएस कानून की धारा 50 का पुलिस ने पालन नहीं किया. पहले से सूचना मिलने के बावजूद छापे की कार्रवाई की वीडियोग्रॉफी नहीं की गई.

हाईकोर्ट ने कहा कि अब विधायिका ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता पारित किया है. इसमें फोटोग्राफी और वीडियोग्रॉफी को अनिवार्य बनाया गया है. इस कानून के पहले भी कई बार कोर्ट ने स्वतंत्र गवाह और अतिरिक्त साक्ष्य के तौर पर ऑडियो वीडियो के महत्व को स्वीकार किया है. कोर्ट ने कहा कि आजकल हर व्यक्ति के पास मोबाइल है, जो वीडियो बना सकता है. वैसे में छापे की कार्रवाई के दौरान वीडियो क्यों नहीं बनाया गया. जबकि, पहले से सूचना मिल चुकी थी. कोर्ट ने कहा कि भले ही पुलिस ये कहे कि छापे के दौरान मोबाइल नहीं होना अभियोजन के केस के लिए घातक नहीं है. लेकिन इससे आरोपी को संदेह का लाभ तो दिया ही जा सकता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.