रांची: झारखंड की 14 लोकसभा सीटों का नतीजा आने के बाद से इंडिया और एनडीए गठबंधन में मंथन का दौर चल रहा है. खासकर भाजपा को लगता है कि विपक्ष ने संविधान बदलने का जो भ्रम फैलाया, उसकी वजह से तीनों एसटी सीटें गंवानी पड़ी. वहीं झामुमो और कांग्रेस इस बात से खुश है कि उसने सभी पांचों एसटी सीटें जीत ली. वैसे इंडिया गठबंधन नेता कम से कम दस सीटों पर जीत की उम्मीद पाले बैठे थे. अब सवाल है कि क्या इंडिया गठबंधन ने इससे ज्यादा बेहतर परफॉर्म करने का मौका गंवा दिया. क्योंकि भाजपा का वोट प्रतिशत घटने के बाद भी इंडिया गठबंधन उतनी सीटें नहीं जीत पाया, जितनी उसके नेताओं ने उम्मीद की थी.
वरिष्ठ पत्रकार मधुकर के मुताबिक इसमें कोई शक नहीं कि इंडिया गठबंधन और बेहतर कर सकता था. खासकर पांच ऐसी सीटें थीं, जहां कुशल रणनीति की कमी और प्रत्याशियों के चयन में जल्दबाजी हार का कारण बन गई. कांग्रेस और राजद ने एक तरह से पांच सीटों पर भाजपा को वॉक ओवर दे दिया. रांची, धनबाद, चतरा, गोड्डा और पलामू सीट पर थोड़ी संदीजगी दिखाई गई होती तो तस्वीर कुछ और होती. वरिष्ठ पत्रकार मधुकर ने उन पांच सीटों का जिक्र करते हुए वजह भी बताई.
उनके मुताबिक इस बार के चुनावी माहौल में गोड्डा सीट से फुरकान अंसारी ज्यादा कारगर साबित होते. अगर जामताड़ा में कांग्रेस विधायक इरफान ने लीड नहीं दिलायी होती तो दुमका सीट भी इंडिया गठबंधन के हाथ से निकल जाती. प्रदीप यादव का ओवर कॉन्फिडेंस उनके लिए घातक साबित हुआ. उनकी ऐसी हालत रही कि अपने विधानसभा क्षेत्र पोड़ैयाहाट में पिछड़ गये. यही नहीं पहली बार महगामा विधायक दीपिका पांडेय को टिकट मिलने पर उनके विरोध से संगठन दो गुट में बंट गया. सिर्फ स्वार्थ की राजनीति की वजह से गोड्डा सीट फंस गई. फुरकान अंसारी यहां से सांसद रह चुके हैं. वह सारे समीकरण को बारीकी से समझते हैं.
कांग्रेस ने रांची में यशस्विनी सहाय और धनबाद में अनुपमा सिंह को प्रत्याशी बनाकर बड़ा जोखिम उठा लिया था. दोनों पहली बार चुनाव मैदान में उतरीं थी. दोनों सीटों पर कुर्मी वोट बैंक का छिटकना कांग्रेस की हार का कारण बना. अगर रांची में कांग्रेस ने रामटहल चौधरी और धनबाद में मन्नान मलिक पर भरोसा जताया होता तो वोट में बिखराव को रोका जा सकता था.
ऊपर से चतरा में केएन त्रिपाठी की जगह गिरिनाथ सिंह या इंदर सिंह नामधारी पर दाव खेला गया होता तो कांग्रेस और मजबूत होकर उभरती. लेकिन पार्टी ने तीनों सीटों पर एक्सपेरिंट कर दिया. जाहिर है कि रणनीति में गड़बड़ी की वजह से ऐसा हुआ. सभी संभावनाओं को समझने के बावजूद इन प्रत्याशियों के चुनाव के पीछे की कई वजहों को समझा जा सकता है.
वरिष्ठ पत्रकार मधुकर के मुताबिक यही हाल राजद का हुआ. पलामू में वीडी राम के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का लाभ मिल सकता था. बशर्ते, ममता भुइंया की जगह किसी और को टिकट दिया गया होता. मधुकर का मानना है कि ममता भुइंया भी पहली बार चुनाव मैदान में थी. उनको कार्यकर्ताओं से कनेक्ट करने का मौका तक नहीं मिला. अगर घूरन राम को राजद ने साधा होता तो फायदा मिलने की संभावना बढ़ जाती.
पांचों सीटों पर हार जीत का अंतर
गोड्डा सीट से भाजपा के निशिकांत दूबे लगातार चौथी बार जीते हैं. उन्होंने कांग्रेस के प्रदीप यादव को 1,01,813 वोट के अंतर से हराया. निशिकांत को 6,93,140 वोट तो प्रदीप को 5,91,327 वोट मिले. इसी तरह रांची सीट पर भाजपा के संजय सेठ ने कांग्रेस की यशस्विनी सहाय को 1,20,512 वोट के अंतर से हराया. यहां कुर्मी समाज के छात्र नेता देवेंद्रनाथ महतो को 1,32,647 वोट मिले थे. अगर रामटहल चौधरी होते तो कुर्मी वोट उनके साथ होता.
धनबाद में भाजपा के ढुल्लू महतो ने कांग्रेस की अनुपमा सिंह को 3,51,583 वोट के अंतर से हराया. यहां निर्दलीय प्रत्याशी मो. एकलाक अंसारी को 79,653 वोट मिले थे. यहां मन्नान मल्लिक कांग्रेस के लिए समीकरण बदल सकते थे क्योंकि भाजपा में गुटबाजी चरम पर थी. चतरा में भाजपा ने कालीचरण सिंह को मौका दिया था. इस सीट पर पिछले दो चुनाव से लगातार भाजपा जीतती आ रही है. पहली बार भाजपा ने स्थानीय को तरजीह दी. लेकिन कांग्रेस ने केएन त्रिपाठी को डाल्टनगंज से लाकर खड़ा कर दिया. चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी 2,20,959 वोट से हार गये. इस क्षेत्र में इंदर सिंह नामधारी की अच्छी पकड़ रही है. वह यह गिरिनाथ सिंह बेहतर ऑप्शन साबित हो सकते थे.
जहां तक राजद की बात है तो पार्टी ने ममता भुइंया को लगातार दो बार चुनाव जीतने वाले भाजपा के वीडी राम के सामने खड़ा कर दिया. उनके पास अनुभव की भी कमी थी. सिर्फ नाम भर से कास्ट पॉलिटिक्स को नहीं साधा जा सकता. लिहाजा, पलामू में ममता भुइंया 2,88,807 वोट से हार गईं. यहां बसपा से कामेश्वर बैठा, लोकहित अधिकार पार्टी के सनन राम, निर्दलीय गणेश रवि और राष्ट्रीय समानता दल के ब्रजेश राम तूरी और वृंदा राम ने सम्मिलित रूप से 1,04,410 वोट काटे थे. यहां राजद ने मजबूत प्रत्याशी दिया होता तो जीत की संभावना बन सकती थी.
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