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शहीद अशफाकउल्ला और राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती थी मिसाल, आज भी खाई जाती हैं इनके नाम पर कसमें - independence day 2024

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 15, 2024, 4:58 PM IST

शाहजहांपुर में आज स्वतंत्रता दिवस धूम धाम से मनाया जा रहा है. आज अशफाकउल्ला खान, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह जैसे अमर वीर सपूतों की कुर्बानी को याद किया गया. इनकी दोस्ती पूरे देश में गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करती है. उनकी कुर्बानी पर लोग फक्र महसूस करते हैं.

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शाहजहांपुर: सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजू ए कातिल में है. यह लाइनें उन अमर शहीदों की ज़ुबान से निकली हुई है, जिन्होंने देश की आजादी के खातिर फांसी के फंदे को चूम लिया और हमें आजादी दिलाई. देश की आजादी में शाहजहांपुर के तीन अमर शहीद का विशेष योगदान है. यहां अशफाक उल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने काकोरी कांड को अंजाम देकर अंग्रेजों के दांत खट्टे किए थे.

शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला ने दी जानकारी (video credit- Etv Bharat)

शाहजहांपुर के शहीदों की दोस्ती गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल: यह है शहीदों की नगरी शाहजहांपुर. जिसने अशफाक उल्ला खान, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह जैसे अमर वीर सपूतों को जन्म दिया. यह आजादी के वह दीवाने थे, जिन्होंने हमें आजादी दिलाने के खातिर खुद को कुर्बान कर दिया, और हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए. अशफाक उल्ला खान एक ऐसे अमर शहीद हैं, जिन्होंने पूरे देश में हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल पेश की है. उनकी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल से दोस्ती हकीकत में आज भी इस शहीदों की नगरी में कसमे खाई जाती है.

अमर शहीद अशफाक उल्ला खान का जन्म मोहल्ला एमन ज़ई जलाल नगर में 22 अक्टूबर 1900 में हुआ था. पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म शहर के खिरनीबाग मोहल्ले में 11 जून 1897 को हुआ था. अशफाक उल्ला खान से जुड़ी तमाम यादें आज भी उनके परिवार के पास एक धरोहर के रूप में रखी हुई है. जेल में उनके हाथों से लिखी गई एक डायरी और अपनी मां को लिखी गई कई चिट्ठियां इस बात को भी बयां करती है, कि वह अपनी मां और देश को बहुत प्यार करते थे. अशफाक उल्ला खान और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती पूरे देश में हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करती है. आज इन अमर शहीदों के बलिदान पर उनका परिवार खुद पर फक्र महसूस करता है. उन्हें इस बात पर गर्व है, कि उन्होंने ऐसे परिवार में जन्म लिया है जिन्हें आज पूरा मुल्क सलाम करता है.

काकोरी कांड का इतिहास: देश के आंदोलन में गुलामी की बेड़ियां तोड़ने के लिए पूरा देश व्याकुल था. कुर्बानियां दी जा रही थी. इसी दौरान शाहजहांपुर के आर्य समाज मंदिर में काकोरी कांड की रूपरेखा तैयार की गई. काकोरी कांड को अंजाम देने के लिए अशफाक उल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह ने तय किया, कि सुबह को शाहजहांपुर से सहारनपुर पैसेंजर ट्रेन जाती है. जिसमें अंग्रेजों का खजाना जाता है. हम उस ट्रेन को लूटेंगे और लूटे हुए पैसों से हथियारों को खरीदेंगे. 9 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर से सहारनपुर पैसेंजर में तीनों महानायक सवार हुए. इस ट्रेन में 10 क्रांतिकारियों ने काकोरी के पास अंग्रेजों का खजाना लूटा. जिसके बाद शाहजहांपुर के तीनों महानायक राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को अंग्रेजी हुकूमत ने गिरफ्तार कर लिया और जेल में डाल दिया. जिसके बाद 19 दिसंबर 1927 को अलग-अलग जिलों में तीनों महान नायकों को फांसी दे दी गई. तीनों बलिदानी हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे.

इसे भी पढ़े-लखनऊ की पुरानी इमारते कहती हैं आजादी की कहानी; दीवारों पर आज भी दिखते क्रांति के निशान - Independence Day 2024

ऐसे बना हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन: वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. विकास खुराना का कहना है, कि काकोरी ट्रेन एक्शन भारत में उठी दूसरी क्रांति की लहर का हिस्सा थी. शाहजहांपुर के युवाओं द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर इसका नेतृत्व किया गया था. काकोरी एक्शन के बाद भी यह आंदोलन समाप्त नहीं हुआ, बल्कि राम प्रसाद बिस्मिल और सचिंद्र सान्याल द्वारा बनाई गई हिंदुस्तान रिपब्लिकन संगठन का नेतृत्व भगत सिंह ने अपने हाथ में ले लिया. इसका नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन कर दिया गया. इसी के अंतर्गत सांडर्स की गोली मारकर हत्या हुई और केंद्रीय असेंबली में बम फेके गए थे.

पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की पिस्टल: काकोरी कांड के दौरान प्रयुक्त की गई पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की पिस्टल मिली है. जिसका डेढ़ किलो वजन है. इसमें लकड़ी का हत्ता लगा हुआ है. पिन खींचने पर इसकी चरखी नीचे गिरती है. इसमें 400 बोर का कारतूस लगा हुआ है. अब यह पिस्तौल शाहिद संग्रहालय में रखी गई है. इस पिस्तौल की बहुत धमक रही है. काकोरी ट्रेन एक्शन के समय जब धोखे से गोली लगी थी, तब उसमें एक की मौत भी हो गई थी. जिसकी वजह से काकोरी एक्शन के महान नायकों को फांसी की सजा दी गई थी. काकोरी ट्रेन एक्शन के दौरान एक अंग्रेज भी गाड़ी में बैठा हुआ था. जब पिस्तौल से गोली चली तब वह टॉयलेट में घुस गया और वह तब निकल जब लखनऊ का स्टेशन आ गया.

शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र का ये है कहना: शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला का यह भी कहना है, कि शहीद अशफाक उल्ला खां और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल दोनों बहुत करीबी दोस्त थे. दोनों एक थाली में खाना खाया करते थे और आर्य समाज मंदिर में देश को आजाद करने के लिए रणनीति तैयार करते थे. काकोरी कांड इस रणनीति का एक हिस्सा है. काकोरी कांड को अंजाम देने के बाद शाहजहांपुर के तीनों महानायकों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और 19 दिसंबर 1927 को अलग-अलग जेल में फांसी दे दी गई. अशफाक उल्ला खान फांसी से पहले एक आखरी शेर भी कहा था," कुछ आरजू नहीं है है आरजू तो यह है रख दे कोई जरा सी खाके वतन कफन में."

यह भी पढ़े-यूपी की इस हवेली में अंग्रेजों ने 80 राजपूतों को दी थी सामूहिक फांसी, बच्चों और बुजुर्गों के साथ भी की थी हैवानियत - Independence Day 2024

शाहजहांपुर: सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजू ए कातिल में है. यह लाइनें उन अमर शहीदों की ज़ुबान से निकली हुई है, जिन्होंने देश की आजादी के खातिर फांसी के फंदे को चूम लिया और हमें आजादी दिलाई. देश की आजादी में शाहजहांपुर के तीन अमर शहीद का विशेष योगदान है. यहां अशफाक उल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने काकोरी कांड को अंजाम देकर अंग्रेजों के दांत खट्टे किए थे.

शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला ने दी जानकारी (video credit- Etv Bharat)

शाहजहांपुर के शहीदों की दोस्ती गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल: यह है शहीदों की नगरी शाहजहांपुर. जिसने अशफाक उल्ला खान, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह जैसे अमर वीर सपूतों को जन्म दिया. यह आजादी के वह दीवाने थे, जिन्होंने हमें आजादी दिलाने के खातिर खुद को कुर्बान कर दिया, और हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए. अशफाक उल्ला खान एक ऐसे अमर शहीद हैं, जिन्होंने पूरे देश में हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल पेश की है. उनकी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल से दोस्ती हकीकत में आज भी इस शहीदों की नगरी में कसमे खाई जाती है.

अमर शहीद अशफाक उल्ला खान का जन्म मोहल्ला एमन ज़ई जलाल नगर में 22 अक्टूबर 1900 में हुआ था. पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म शहर के खिरनीबाग मोहल्ले में 11 जून 1897 को हुआ था. अशफाक उल्ला खान से जुड़ी तमाम यादें आज भी उनके परिवार के पास एक धरोहर के रूप में रखी हुई है. जेल में उनके हाथों से लिखी गई एक डायरी और अपनी मां को लिखी गई कई चिट्ठियां इस बात को भी बयां करती है, कि वह अपनी मां और देश को बहुत प्यार करते थे. अशफाक उल्ला खान और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती पूरे देश में हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करती है. आज इन अमर शहीदों के बलिदान पर उनका परिवार खुद पर फक्र महसूस करता है. उन्हें इस बात पर गर्व है, कि उन्होंने ऐसे परिवार में जन्म लिया है जिन्हें आज पूरा मुल्क सलाम करता है.

काकोरी कांड का इतिहास: देश के आंदोलन में गुलामी की बेड़ियां तोड़ने के लिए पूरा देश व्याकुल था. कुर्बानियां दी जा रही थी. इसी दौरान शाहजहांपुर के आर्य समाज मंदिर में काकोरी कांड की रूपरेखा तैयार की गई. काकोरी कांड को अंजाम देने के लिए अशफाक उल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह ने तय किया, कि सुबह को शाहजहांपुर से सहारनपुर पैसेंजर ट्रेन जाती है. जिसमें अंग्रेजों का खजाना जाता है. हम उस ट्रेन को लूटेंगे और लूटे हुए पैसों से हथियारों को खरीदेंगे. 9 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर से सहारनपुर पैसेंजर में तीनों महानायक सवार हुए. इस ट्रेन में 10 क्रांतिकारियों ने काकोरी के पास अंग्रेजों का खजाना लूटा. जिसके बाद शाहजहांपुर के तीनों महानायक राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को अंग्रेजी हुकूमत ने गिरफ्तार कर लिया और जेल में डाल दिया. जिसके बाद 19 दिसंबर 1927 को अलग-अलग जिलों में तीनों महान नायकों को फांसी दे दी गई. तीनों बलिदानी हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे.

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ऐसे बना हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन: वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. विकास खुराना का कहना है, कि काकोरी ट्रेन एक्शन भारत में उठी दूसरी क्रांति की लहर का हिस्सा थी. शाहजहांपुर के युवाओं द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर इसका नेतृत्व किया गया था. काकोरी एक्शन के बाद भी यह आंदोलन समाप्त नहीं हुआ, बल्कि राम प्रसाद बिस्मिल और सचिंद्र सान्याल द्वारा बनाई गई हिंदुस्तान रिपब्लिकन संगठन का नेतृत्व भगत सिंह ने अपने हाथ में ले लिया. इसका नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन संगठन कर दिया गया. इसी के अंतर्गत सांडर्स की गोली मारकर हत्या हुई और केंद्रीय असेंबली में बम फेके गए थे.

पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की पिस्टल: काकोरी कांड के दौरान प्रयुक्त की गई पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की पिस्टल मिली है. जिसका डेढ़ किलो वजन है. इसमें लकड़ी का हत्ता लगा हुआ है. पिन खींचने पर इसकी चरखी नीचे गिरती है. इसमें 400 बोर का कारतूस लगा हुआ है. अब यह पिस्तौल शाहिद संग्रहालय में रखी गई है. इस पिस्तौल की बहुत धमक रही है. काकोरी ट्रेन एक्शन के समय जब धोखे से गोली लगी थी, तब उसमें एक की मौत भी हो गई थी. जिसकी वजह से काकोरी एक्शन के महान नायकों को फांसी की सजा दी गई थी. काकोरी ट्रेन एक्शन के दौरान एक अंग्रेज भी गाड़ी में बैठा हुआ था. जब पिस्तौल से गोली चली तब वह टॉयलेट में घुस गया और वह तब निकल जब लखनऊ का स्टेशन आ गया.

शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र का ये है कहना: शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला का यह भी कहना है, कि शहीद अशफाक उल्ला खां और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल दोनों बहुत करीबी दोस्त थे. दोनों एक थाली में खाना खाया करते थे और आर्य समाज मंदिर में देश को आजाद करने के लिए रणनीति तैयार करते थे. काकोरी कांड इस रणनीति का एक हिस्सा है. काकोरी कांड को अंजाम देने के बाद शाहजहांपुर के तीनों महानायकों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और 19 दिसंबर 1927 को अलग-अलग जेल में फांसी दे दी गई. अशफाक उल्ला खान फांसी से पहले एक आखरी शेर भी कहा था," कुछ आरजू नहीं है है आरजू तो यह है रख दे कोई जरा सी खाके वतन कफन में."

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